‘जी राम जी’ योजना 

सही ढंग से लागू होने पर रुकेगा गांवों से पलायन 

आज़ादी के बाद लगभग आधी सदी तक ग्रामीण क्षेत्रों से शहरों की तरफ रोज़ी-रोटी की तलाश में भारी संख्या में लोग आते रहे और अधिकतर वहीं बस गए, जिसका परिणाम एक ओर कृषि और अन्य कृषि कार्यों के लिए मज़दूरों का मिलना कम होता गया और दूसरी तरफ शहरों में इनके लिए रहने की कोई व्यवस्था न होने से ये जहां ठौर मिला, बसने लगे और झुग्गी-झोंपड़ियों व बस्तियों की तादाद तेज़ी से बढ़ने लगी। परिणाम यह हुआ कि आज हर बड़ा या छोटा शहर इस समस्या से जूझ रहा है। 
ग्रामीण क्षेत्र में रोज़गार 
उल्लेखनीय है कि इस दौरान केंद्र और अधिकतर राज्यों में कांग्रेस या उसके समर्थन से चल रही सरकारें थीं। ज़मींदारी प्रथा के समाप्त होने पर भी दबंग लोगों का बोलबाला था और वे अपने निजी काम-धंधे और कृषि के लिए गरीब लोगों से मुफ्त काम कराते थे। उन्हें पेट भरने के लिए बचा खुचा, बासी खाना दे दिया और पहनने को अपनी उतरन। यदि किसी ने कुछ कहने की हिम्मत की तो उसके साथ मारपीट की जाती थी। इस प्रथा पर फिल्में तक बनी हैं। 
अब सरकार और उसके दल को चुनाव भी जीतने होते हैं तो उसके धुरंधर मंत्रियों ने सोचा कि अपने वोट बैंक का खिसकना रोकने का एक ही रास्ता है कि देहाती इलाकों में लोगों को काम पर लगाया जाए। इसके लिए सरकार अलग-अलग नामों से ग्रामीण रोज़गार योजनाएं लाने लगी। सरकारी फंडों का उपयोग गांव में नेता, सरपंच बनाने के लिए होने लगा। मनरेगा के तहत साल में सौ दिन का काम और प्रतिदिन 271 रुपये की मज़दूरी तो मिलेगी। महात्मा गांधी के नाम पर ग्रामवासियों के लिए योजनाएं बनाई गईं। इन योजनाओं का अधिकतर पैसा भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ता था। उदाहरण के लिए पंचायत ने तय किया कि सामुदायिक भवन, शौचालय या सिंचाई के लिए कुआं बनना है तो पंच-सरपंच वास्तविक खर्च से दोगुना से चार गुना तक की राशि का भुगतान करते और पैसा आपस में बांट लेते थे। यहां तक कि मज़दूरों के रजिस्टर में भी ऐसे नाम लिख लेते थे जिनका कोई अस्तित्व ही नहीं। 
मनरेगा का कायाकल्प 
कहने को तो यह योजना दुनिया में सब से बड़ी बताई जाती है, लेकिन हकीकत में यह दिखावा है। हालांकि यह नहीं कहा जा सकता कि गांव के हालात नहीं बदले हैं। यह जनता के पैसे को उड़ाने की तरह है। बस टारगेट पूरा करने के लिए कुछ न कुछ निर्माण करना है। पैसा बांटने के अतिरिक्त किसी की कोई ज़िम्मेदारी नहीं अर्थात् लूट का पूरा अवसर है। मज़दूरों को समय पर वेतन न देना, लेकिन खानापूर्ति और कागज़ी कार्रवाई एकदम पक्की ताकि कोई सवाल न उठा सके। अब जो मेहनतकश है, उसे अधिक दिन या पूरे साल का काम मिलेगा तो वह गांव में क्यों रहना चाहेगा?
अब हम वर्तमान ‘जी राम जी’ पर आते हैं। अभी तक जितने विवरण उपलब्ध हैं तो यह कोई चमत्कारी या कायापलट करने वाली योजना नहीं है, बल्कि पहले की योजना पर मुलम्मा चढ़ाने जैसा है। काम के दिन सौ से सवा सौ दिन कर देना कोई विशेष बात नहीं, लेकिन हां, अगर अढाई सौ दिन का रोज़गार देने और भ्रष्टाचार रोकने की कोशिश होती तो अलग बात होती। इसकी एक ही विशेषता है कि जबकि पहले कुछ भी कराया जा सकता था, अब वह दायरा सीमित कर दिया है कि इसमें ही रह कर काम कराए जा सकते हैं। इसमें भी जल सुरक्षा और इसका संरक्षण जो किसी भी ग्रामीण क्षेत्र में एक चुनौती है, सबसे पहले करना है।  प्राकृतिक प्रकोप या प्रकृति की उदारता में अंतर होता है। यह न समझ पाने की वजह से ही आपदाएं आती हैं। समय पर काम और मज़दूरी का भुगतान किसी भी कार्य के पूरा होने की गारंटी है। पहले पूरा खर्च केंद्र सरकार का होता था, अब राज्यों को भी हिस्सेदारी करनी होगी और राज्य भी इस योजना के अंतर्गत हो रहे कामों की निगरानी करेंगे। 
ग्रामीण क्षेत्रों में उद्योगों की स्थापना 
हमारी अर्थव्यवस्था कृषि आधारित है और देखा जाए तो आधी आबादी इससे जुड़ी है और बाकी विभिन्न औद्योगिक और सेवा क्षेत्रों में काम करती है। विकसित देशों जैसे कि रूस, चीन या यूरोपीय देश, उनमें कृषि आधुनिक उपकरणों से होती है, उन्नत बीज पर विशेष बल दिया जाता है और प्रोसेसिंग इंडस्ट्री इतनी बड़ी है कि खेत से निकल कर उपज सीधे ज़रूरत के हिसाब से प्रसंस्करण उद्योग में पहुंच जाती है। 
अपने देश में यदि प्रोसेसिंग की सुविधा खेत के पास उपलब्ध हो जाए तो यह किसान और उपभोक्ता के बीच की दूरी को कम कर सकता है। इसका असर वस्तु की गुणवत्ता पर तो पड़ेगा ही, साथ में लागत कम होने से मूल्य भी कम होंगे। एक और फायदा यह होगा कि उस क्षेत्र या फिर राज्य की पहचान जिस विशेष वस्तु या सामग्री से है, उसके भी उद्योग लगने लगेंगे और यह जगह देश-दुनिया में प्रसिद्ध होने लगेगी। इससे शहरों में पलायन करने की ज़रूरत नहीं रहेगी और शहर उनके अतिरिक्त बोझ से मुक्ति पा सकेंगे। एक बार यह पहल हो गई तो फिर दूर शहरों में स्थापित उद्योग भी ग्रामीण क्षेत्रों का रूख करने लगेंगे। ज़बरदस्त इंफ्रास्ट्रक्चर, आवागमन की बेहतरीन सुविधाएं, आवासीय परिसर और उनमें मौजूद सुविधाओं के कारण लोगों को बाहर जाने की ज़रूरत नहीं पड़ेगी। निश्चित ही यह एक नया भारत होगा।
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