बांग्लादेश की नई चुनौती
द्विपक्षीय संबंधों के पक्ष से भारत के पड़ोसी बांग्लादेश की चुनौती बरकरार है। शेख हसीना 15 वर्ष तक वहां की प्रधानमंत्री रहीं। इस समय दोनों देशों के संबंध मैत्रीपूर्ण तथा सुखद बने रहे। दक्षिण एशिया के देशों में भारत के साथ इसके व्यापारिक संबंध सबसे अधिक बेहतर बने रहे हैं। वर्ष 2023-24 में दोनों का आपसी व्यापार 14 बिलियन डालर (1,19,780 करोड़ रुपये) से अधिक रहा है, परन्तु विगत वर्ष अगस्त माह में बांग्लादेश में उठी बड़ी बगावत के कारण शेख हसीना को कुर्सी छोड़ कर अपनी सुरक्षा के लिए भारत आना पड़ा। उसके बाद इस्लामिक जेहादी संगठनों की ओर से तथा शेख हसीना की पार्टी अवामी लीग के विरोध में खड़ी अन्य पार्टियों द्वारा फैली इस गड़बड़ के दौरान वहां के अल्पसंख्यक हिन्दू समुदाय के घरों तथा व्यापारिक संस्थानों को निशाना बनाया गया, जिस संबंधी भारत ने लगातार शिकायतें भेजीं, परन्तु वहां तुरंत स्थापित की गई अस्थायी सरकार, जिसके मुख्य सलाहकार नोबल ईनाम विजेता मुहम्मद यूनुस को बनाया गया था, इस स्थिति को नियंत्रित नहीं कर सके।
एक अनुमान के अनुसार अगस्त 2024 से फरवरी, 2025 तक वहां लगभग अढ़ाई हज़ार हिंसक घटनएं हुईं, जिनमें हिन्दुओं को निशाना बनाया गया, परन्तु इसके बावजूद बांग्लादेश की अस्थायी सरकार ने इस प्रकार की बहुत-सी घटनाओं से इन्कार ही किया। ऐसी घटनाओं की संख्या सिर्फ 1254 ही बताई गई। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने बांग्लादेश के 26 मार्च को मनाए जाते राष्ट्रीय दिवस के संदर्भ में मुहम्मद यूनुस को एक पत्र लिखा है, जिसमें उन्होंने बांग्लादेश से पहले जैसे संबंध स्थापित करने की इच्छा व्यक्त की है, ताकि दक्षिण एशिया के इस क्षेत्र में शांति एवं स्थिरता बरकरार रहे। जहां तक इस पड़ोसी देश का संबंध है, भारत के साथ इसकी सीमाएं 4 हज़ार किलोमीटर की लम्बाई तक जुड़ी हुई हैं। भारत ने बांग्लादेश की आज़ादी के लिए बड़ा योगदान भी डाला था और वहां की आज़ादी के लिए लड़ने वाले संगठन मुक्ति वाहिनी की पूरी मदद की थी, जिस कारण ही पाकिस्तानी सेना द्वारा किए गए बड़े कत्लेआम के बाद इस देश को आज़ादी मिली थी, परन्तु इस देश की बुरी किस्मत के कारण कुछ सैनिकों ने देश के मुक्तिदाता मुजीब-उर-रहमान, जो कि उस समय देश के प्रधानमंत्री थे, को और उनके परिवार के बहुत से सदस्यों को वर्ष 1975 में ब़गावत करके मार दिया था। शेख हसीना और उनकी एक बहन जो उस समय देश से बाहर थीं, वह इस कत्लेआम से बच गई थीं। उस समय भी शेख हसीना को 6 वर्ष तक भारत में शरण लेनी पड़ी थी परन्तु पिछले वर्ष दिसम्बर के बाद वहां का राजनीतिक दृश्य पूरी तरह बदला नज़र आ रहा है।
अस्थायी सरकार ने वहां की विपक्षी पार्टियों से बातचीत के साथ पाकिस्तान और चीन से दोस्ती के हाथ बढ़ाने शुरू किये हुए हैं। मुहम्मद यूनुस इन दिनों में चीन के दौरे पर हैं। पाकिस्तान के साथ भी इस अस्थायी सरकार ने हर स्तर पर संबंध स्थापित कर लिये हैं। मुहम्मद यूनुस की अस्थायी सरकार के अस्तित्व में आने के बाद पिछले वर्ष दिसम्बर के माह में उसने बारत को यह कहा था कि वह शेख हसीन को बांग्लादेश वापिस भेज दे, जिसका भारत ने अभी तक कोई जवाब नहीं दिया। अब आगामी अप्रैल के माह में थाईलैंड की राजधानी बैंकाक में दक्षिण और पूर्वी एशियाई देशों की कांफ्रैंस हो रही है, जिसमें भारत और बांग्लादेश के प्रमुखों के मिलने की सम्भावना बन गई है। भारत के लिए शेख हसीना के नेतृत्व वाली अवामी लीग पार्टी इस समय के राजनीतिक हालात के कारण वहां हाशिये पर खड़ी नज़र आ रही है। उसकी विरोधी रही बांग्लादेश नैशनलिस्ट पार्टी और अब नयी बनी नैशनल सिटीजन पार्टी ने देश में नये चुनाव करवाने की मांग शुरू कर दी है। होने वाले इन संभावित चुनावों के क्या परिणाम आते हैं, क्या इन चुनावों के परिणाम देश में बनी अस्थिरता को दूर करके उसको सही रास्ते पर चलाने में सहायक हो सकेंगे, यह तो आने वाला समय ही बताएगा, पर बांग्लादेश में अस्थिरता के कारण भारत को बेहद पेचीदा स्थिति में से गुज़रना पड़ सकता है, क्योंकि इस नयी स्थिति का लाभ उठाने के लिए चीन और पाकिस्तान बेहद सक्रिय हो गये हैं, जो भारत के साथ बांग्लादेश के लम्बे समय से स्थापित संबंधों में बड़ी रुकावटें पैदा कर सकते हैं। भारत को जहां बड़ा संयम दिखाते हुए, बांग्लादेश के साथ अपनी सीमाओं पर ज्यादातर निगरानी रखनी होगी, वहां समुचित रणनीति के साथ उससे दोबारा से रिश्ते बेहतर बनाने के लिए भी यत्न जारी रखने पड़ेंगे।
—बरजिन्दर सिंह हमदर्द