पंजाबी रंग मंच की ताज़ा बरकतें
आज की बात पटियाला शहर से शुरू करते हैं। एक समय था जब यह शहर दीवान खाना, मोती बाग, बारांदरी पहल, राजिन्द्र अस्पताल, महिन्द्रा कॉलेज और भाषा विभाग की वजह से बड़े आकर्षण का केन्द्र होता था। 1965 में पंजाबी यूनिवर्सिटी की स्थापना ने यहां के सांस्कृतिक गढ़ को कुछ हद तक चोट ज़रूर पहुंची, लेकिन पिछले वर्षों में सरबत दा भला चैरिटेबल ट्रस्ट और कला कृति पटियाला की गतिविधियां पुन: शुरू की हैं और यहां का माहौल एक बार फिर से गर्माता हुआ प्रतीत होता है।
नवम्बर के अंतिम दिनों में सरबत दा भला और कला कृति के प्रबंधकों ने भारत सरकार के उत्तरी ज़ोन कल्चरल सेंटर के सहयोग से जो सात दिवसीय नैशनल थिएटर फेस्टिवल आयोजित किया, वह उक्त धारणा पर मुहर लगाता है। इतना ही नहीं, पटियाला के सार्थक रंग मंच ने भी चंडीगढ़ वाले गुरशरण सिंह नाट्य उत्सव में उपस्थित होकर पटियाला के सांस्कृतिक कद को बढ़ाया है। यह नाट्य उत्सव पंजाब आर्ट्स काउंसिल के रंधावा ऑडिटोरियम में आयोजित किया गया था, जिसने पंजाबी संस्कृति के शाहजहां कहे जाने वाले एम.एस. रंधावा की याद को भी पहले की तरह ताज़ा किया है।
जहां तक नैशनल थिएटर फेस्टिवल 2025 का संबंध है, तो इस संस्था ने न सिर्फ नए कलाकारों की मंच सजावट, पाठ-भूमिका और बोलचाल की भाषा को एक कला वेद ही नहीं दिया, बल्कि शख्सियत भी दी है। इसकी देख-रेख और योजना सरबत दा भला चैरिटेबल ट्रस्ट के मैनेजिंग ट्रस्टी डॉ. एस. पी. सिंह ओबेरॉय कर रहे हैं, जो कला को सामाजिक बदलाव का एक बड़ा हथियार मानते हैं। इस बार के फेस्टिवल में भी उनकी प्रतिबद्धता और कड़ी मेहनत साफ दिखाई दी। यह कोई अतिकथनी नहीं होगी कि यह फेस्टिवल रंगमंच की एक रूहानी यात्रा जैसा था। इसमें हर रात एक नई कहानी, एक नई आवाज़ और एक नया मुद्दा दर्शकों के सामने पेश किया गया।
श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी की 350वीं शहीदी शताब्दी को समर्पित नाटक ‘हिंद दी चादर’ थिएटर के ज़रिए सिख शहादत और त्याग की भावना को जीवित करता दिखाई दिया। इतिहास के गौरवशाली झरोखे खोलते हुए, अगले दिन दिखाया गया नाटक ‘अजीब दास्तान’ (26 नवम्बर, 2025) सामाजिक हकीकतों के आधार पर इंसानी मन की मुश्किलों को बहुत अच्छे से दिखाता है। यह नाटक दर्शकों को यह सोचने पर मजबूर करता है कि सही रास्ता अपनाने के लिए क्या करना चाहिए और यह कैसे किया जा सकता है।
27 नवम्बर को ‘छल्ला’ नाटक का किया गया मंचन पंजाबी प्रेमियों की विदेश जाने की रुचि की पोल खोल कर पीछे रह गए परिवारों के साथ जो कुछ घटित होता है, उसे अतंयत नाटकीय अंदाज़ में पेश करता है। इसमें ऐसे नौजवान के घर लौटने का दृश्य विदेश जाने की दौड़ में फंसे एक इंसान के अंदर की भावनाओं को बहुत ही बारीकी से पेश करता है। इसी तरह नाटक ‘तुम्हें कौन सा रंग पसंद है’ ज़िन्दगी के उन मोड़ों पर प्रकाश डालता है जिनमें फंस कर सचेत मनुष्य किस तरह की कठिनाइयों का शिकार हो जाता है और उनसे निकलने के लिए कौन-सा खेल खेलता है।
इसी क्रम को आगे बढ़ाते हुए ‘रिलेशनशिप रिदम्स’ (29 नवम्बर, 2025) भी आधुनिक दुनिया के संबंधों, ठोकरों तथा मनोवैज्ञानिक टकराव को अच्छे अंदाज़ में पेश करने वाला ऐसा नाटक था जिसमें वर्तमान मानवीय ताने-बाने से पर्दा उठाया गया है। इस नाटक मेले के आखिरी दिनों में सयादत हसन मंटो के अ़फसाने ‘बादशाहत का खात्मा’ पर आधारित एक नाटक का मंचन किया गया जिसमें राजनीतिक ढांचे की ध्वस्त हो रही हकीकत चुभन भरे तरीके से पेश किया गया है।
उत्सव का अंत अशोक सिंह के नाटक ‘कोई इक रात’ से हुआ। इसमें भी उस वर्तमान इंसान की बात की गई है जो अपनी इच्छाओं की पूर्ति के लिए ऐसे कार्य करता है, जो उसे बिल्कुल ही शोभा नहीं देते।
इन नाटकों में वर्तमान इंसान की नियति को उभारा गया है जिसे भविष्य की सांस्कृतिक कीमतों का आइना भी कहा जा सकता है। एक तरह से यह नाटक वर्तमान इंसान के लिए मार्ग दर्शक भी हैं, जिसका श्रेय प्रबंधकों को जाता है।
वैसे इस उत्सव की महानता को सही दर्शाने वाला नाटक ‘हिंद की चादर’ ही था, जिसकी लोकप्रियता को देखते हुए इस नाटक का 18 दिसम्बर को चंडीगढ़ के टैगोर थिएटर में भी मंचन किया गया। इसे आयोजित करने की ज़िम्मेदारी भी सरबत दा भला चैरिटेबल ट्रस्ट के मैनेजिंग ट्रस्टी एस.पी. सिंह ओबेरॉय ने ली थी जिन्होंने इसे अपने समाजसेवी पिता सरदार प्रीतम सिंह की याद को समर्पित किया। इस नाटक की खूबी यह भी है कि इसकी पेशकारी से भाई मती दास, भाई सती दास और भाई दयाला की शहादत पर भी ताज़ा मुहर लगती है।

