बहुत मुश्किल है गांधी जी की हस्ती को मिटा पाना
महात्मा गांधी के नाम से नफरत करने व इसे मिटाने की कोशिशों का एक और प्रयास पिछले दिनों संसद में उस समय देखने को मिला जब केंद्र सरकार ने महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी अधिनियम अर्थात ‘मनरेगा’ का नाम बदलकर ‘विकसित भारत-गारंटी फॉर रोज़गार एंड आजीविका मिशन (ग्रामीण)’ अथवा संक्षेप में ‘वी बी जी राम जी’ कर दिया। हालांकि पहले यह खबरें थीं कि इसे ‘पूज्य बापू ग्रामीण रोज़गार योजना’ का नाम दिया जायेगा परन्तु आखिरकार इस योजना से सरकार ने महात्मा गांधी का नाम हटा ही दिया। गौरतलब है कि मनरेगा की शुरुआत 2005 में कांग्रेस के नेतृत्व वाली संप्रग सरकार द्वारा की गयी थी। प्रारंभ में इसका नाम जवाहर रोज़गार योजना था परन्तु बाद में कांग्रेस ने ही इस योजना को महात्मा गांधी का नाम दे दिया था। अब विपक्ष इसे गांधी का नाम हटाने और मिटाने की भाजपाई कोशिश बता रहा है, जबकि सरकार के अनुसार वह गांधी के विचारों को और मज़बूत कर रही है। हालांकि सरकार ने योजना का नाम बदलने के साथ ही इस योजना में कुछ सुधार और विस्तार करने का भी दावा किया है परन्तु कांग्रेस व अन्य विपक्षी दल इसे गांधी का अपमान बता रहे हैं। कांग्रेस के अनुसार इससे योजना की मूल भावना ही बदल रही है। विपक्ष आरोप लगा रहा है कि जिस तरह अन्य कई योजनाओं,कानूनों, मार्गों, शहरों, स्टेशन आदि के नाम बदलना भाजपा की रणनीति का एक हिस्सा है, उसी तरह महात्मा गांधी का नाम हटाना भी उसी मुहिम का एक हिस्सा है।
भाजपा गांधी का सम्मान करती है, सम्मान करने का दिखावा करती है या सम्मान करते हुये नज़र आना उसकी मजबूरी है, यह एक ऐसी वैचारिक बहस का मुद्दा है जो गांधी की हत्या के बाद से ही छिड़ा हुआ है। गांधी का हत्यारा कौन था, उसकी विचारधारा क्या थी? आज उस विचारधारा के अलमबरदार कौन लोग हैं? सत्ता से उनके क्या रिश्ते हैं? ये बातें किसी से छुपी नहीं हैं। विगत दस वर्षों से तो खासतौर पर जिस तरह सत्ता समर्थित अनेक सांसदों द्वारा व इसी से जुड़े अनेक संगठनों के लोगों द्वारा जिस तरह गांधी का बार-बार अपमान क्या गया, यहां तक कि उन्हें गोली मारने का दृश्य तक दोहराया गया, गांधी जी के हत्यारे नाथू राम गोडसे का महिमामंडन किया गया, उसकी प्रतिमा लगाने तक के प्रयास किये गये यह सब इस निष्कर्ष पर पहुँचने के लिये काफी हैं कि वर्तमान सत्ता के साये तले महात्मा गांधी के प्रति नफरत खूब फली फूली है।
यह पहला मौका नहीं है जब मनरेगा से गांधी का नाम हटाया गया है। याद कीजिये 2017 में खादी ग्रामोद्योग आयोग ने हमेशा छपने वाले अपने कैलेंडर में महात्मा गांधी की चरखा घुमाती हुई तस्वीर की जगह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की समान मुद्रा वाली फोटो लगा दी थी। उस समय खादी ग्रामोद्योग के कर्मचारियों और विपक्ष ने भी इसे गांधी जी की विरासत का अपमान बताया था। अमित शाह ने महात्मा गांधी को जून 2017 को छत्तीसगढ़ के रायपुर में आयोजित एक कार्यक्रम के दौरान कहा था कि ‘गांधी एक चतुर बनिया था।’ उस समय भी कांग्रेस ने अमित शाह पर राष्ट्रपिता के लिए ‘चतुर बनिया’ शब्द का इस्तेमाल कर गांधी का अपमान करने का आरोप लगाया था। उस समय भी कांग्रेस ने कहा था कि आज़ादी के बाद, भाजपा ऐसा कर रही है, जैसा अंग्रेजों ने किया था। 31 अक्तूबर 2013 को गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री के रूप में नरेंद्र मोदी ने सरदार वल्लभभाई पटेल को समर्पित दुनिया की सबसे ऊंची प्रतिमा स्टैच्यू ऑफ यूनिटी का शिलान्यास गुजरात के नर्मदा ज़िले में केवड़िया के पास नर्मदा नदी के किनारे किया था। बाद में जब इसका निर्माण 2018 में पूरा हुआ तो नरेंद्र मोदी ने ही प्रधानमंत्री के रूप में इसका उद्घाटन भी किया। मूर्ति की ऊंचाई 182 मीटर है, जो आधार सहित कुल 240 मीटर बनती है। इस प्रतिमा को स्थापित करके भाजपा ने एक तीर से कई शिकार करने की कोशिश की। उनमें एक कोशिश यह साबित करना भी थी कि गुजरात का सबसे ऊंचा व्यक्तित्व गांधी का नहीं बल्कि सरदार पटेल का है। दूसरी यह कि नेहरू के मुकाबले में वह पटेल को बड़ा दिखाना चाहती थी परन्तु अपने उन प्रयासों में वह न तो गांधी को छोटा कर सकी, न ही नेहरू-पटेल के कथित मतभेदों को हवा दे सकी। हां, पटेल की प्रतिमा लगाने से यह ज़रूर साबित हो गया कि संघ-भाजपा के पास अपना कोई नेता ऐसा नहीं था जिसकी इतनी ऊंची प्रतिमा बनवाई जा सकती। गांधी-नेहरू को पटेल से छोटा दिखाने की छटपटाहट में वह यह भी भूल गयी कि स्वतंत्र भारत के पहले गृह मंत्री सरदार वल्लभभाई पटेल ने ही 30 जनवरी, 1948 को महात्मा गांधी की हत्या के तुरंत बाद राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर बैन लगा दिया था। यह बैन 4 फरवरी, 1948 को तब लगाया गया था। सर्वविदित है कि गांधी की हत्या हिंदू महासभा से जुड़े आरएसएस के ही पूर्व सदस्य नाथूराम गोडसे ने की थी, जिसके बाद सरकार ने उन संगठनों के खिलाफ तुरंत कार्रवाई की जिन्हें नफरत फैलाने वाला माना जाता था। पटेल ने संघ को अस्थिर करने वाला संगठन माना व इसकी विचारधारा को साम्प्रदायिक बताया।
बहरहाल दुनिया भर से दिल्ली पहुंचने वाले राष्ट्राध्यक्षों व राष्ट्र प्रमुखों के दिल्ली आगमन पर राजघाट पहुंचकर उन्हें नमन करना या विश्व शांति व बंधुत्व के लिये दुनिया भर में बुलाये जाने वाले मार्च व प्रदर्शनों में गांधी के चित्रों व उनके सद्भावनापूर्ण विचारों को सर्वोपरि रखना या फिर दुनिया के अनेक देशों में प्रमुख स्थलों पर गांधी जी की आदम़कद प्रतिमाओं को सम्मान दिया जाना इस नतीजे पर पहुँचने के लिये काफी है कि महात्मा गांधी का नाम किसी योजना से हटाने से न तो गांधी जी का ़कद घटने वाला है न ही उनका नाम मिटने वाला है।



