खतरे में अरावली पर्वत शृंखला

अरावली पर्वत शृंखला के अन्तर्गत विगत लम्बे समय से हो रहे अवैध खनन को रोकने और इस क्षेत्र के संरक्षण के नाम पर हुए एक फैसले ने गुजरात, राजस्थान, हरियाणा और दिल्ली तथा आस-पास के क्षेत्रों में सुरक्षा-दीवार के तौर पर खड़ी इस पर्वतीय शृंखला को ़खतरे में डाल दिया है। ऐसा होने पर नि:संदेह राजधानी दिल्ली और उत्तर भारत के एक बड़े क्षेत्रफल में पर्यावरणीय प्रदूषण और वातावरण तथा मौसमों में बदलाव संबंधी संकट बेहद बढ़ जाएगा। लगभग 692 किलोमीटर लम्बी इस अरावली पर्वत शृंखला के लगभग 1,47,000 वर्ग किलोमीटर दायरे के तीन ओर से हो रहे अवैध खनन ने इस पूरे क्षेत्र के अस्तित्व को खतरे में डाल दिया है। सर्वोच्च न्यायालय द्वारा विगत 20 नवम्बर को अनुमोदित केन्द्र सरकार के 13 अक्तूबर 2025 के लिए गये एक फैसले के अनुसार अरावली पर्वत शृंखला के ज़मीनी आधार से एक सौ फुट ऊंची पहाड़ियों को वैध-अवैध खनन से मुक्त कर दिया गया है। इसका अभिप्राय यह होगा कि सौ फुट से ऊंचे पहाड़ ही अरावली शृंखला का संरक्षित हिस्सा रहेंगे। इस फैसले के गम्भीर परिणामों की एक झलक इस एक तथ्य से पता चल जाती है कि अरावली के एक अकेले हरियाणा प्रांत से सम्बद्ध एक क्षेत्र में दो ज़िलों के कुल 12 पहाड़ आते हैं, और यदि इस फैसले पर अमल होता है, तो ऊंचाई के हिसाब से ये सभी पहाड़ वैध-अवैध खनन की ज़द में आ जाएंगे।
अरावली पर्वत शृंखला में लाखों छोटे-बड़े पहाड़ हैं। राष्ट्रीय वन सर्वेक्षण की एक रिपोर्ट के अनुसार अरावली में 20 से 100 मीटर ऊंचाई वाली लगभग 1,18,000 छोटी-बड़ी पहाड़ियां हैं। इनमें से 1,07,000 पहाड़ियां तो 10 से 20 मीटर की ऊंचाई को सिर्फ छू भर पाती हैं अर्थात इस फैसले के लागू होते ही ये सभी पहाड़ियां धराशायी हो जाएंगी या कर दी जाएंगी। यह भी तय है कि जिस व्यापक स्तर पर अरावली पर्वत शृंखला में वैध-अवैध खनन हो रहा है, उसे देख कर ऐसा लगता है मानो अवैध खनन-कर्ता और छोटे-बड़े बिल्डर इस क्षेत्र पर टूट पड़ेंगे। इस भावी स्थिति का अनुमान लगाने के लिए इन आंकड़ों को देखा जा सकता है कि हरियाणा के केवल एक गांव के इर्द-गिर्द 150 जगहों पर खनन करने के लिए 300 क्रशर दिन-रात काम पर जुटे हैं और यहां से खनन किया माल उठाने के लिए सैंकड़ों ट्रक सदैव मौजूद रहते हैं। इसके अतिरिक्त आवासीय और व्यावसायिक भवनों के निर्माण के लिए यहां अनेक छोटे-बड़े बिल्डर भी तेज़ी से सक्रिय हैं।
पर्यावरणीय और वातावरणीय संकट से हालांकि पूरा विश्व प्रभावित है, किन्तु भारत में यह समस्या इतनी गम्भीर है कि इसने वर्षा, मॉनसून की गति और अन्य कई पक्षों को प्रभावित किया है। इससे पूरा प्राकृतिक चक्र भी अस्त-व्यस्त हुआ है। फिर भी, यदि इस चक्र को तेज़ी से घूमने से यदि कोई उत्तर भारतीय क्षेत्र को बचा रहा था, तो वह अरावली पर्वत शृंखला ही थी। अब केन्द्र सरकार के अरावली की पर्वतीय सीमा निर्धारण संबंधी फैसले और सर्वोच्च न्यायालय द्वारा इसके अनुमोदन से इस पूरी पर्वत शृंखला का अस्तित्व खतरे में पड़ गया है। यहां पर अनेक पहाड़ियों को धरती के आधार से भी 500 फुट  नीचे तक खोद दिया गया है। इन इलाकों में घरों, दफ्तरों, उद्योगों की दीवारों में दरारें आ चुकी हैं।  स्थितियों के आकलन का एक गम्भीर पक्ष यह है कि बहुत शीघ्र हरियाणा, राजस्थान, पंजाब और दिल्ली के बड़े इलाके रेगिस्तान में परिवर्तित होने लगेंगे। वनों का कटाव बढ़ने से, धरती पर स्वत: क्षरण बढ़ने लगेगा। यहां तक कि हरियाणा, पंजाब तथा दिल्ली के कुछ क्षेत्रों में अकाल तक पड़ने की नौबत आ सकती है।
नि:संदेह इस सम्पूर्ण परिदृश्य के दृष्टिगत एक यक्ष प्रश्न यह है कि राष्ट्रीय वन-संरक्षण की रिपोर्ट के बावजूद, केन्द्र सरकार ने ऐसा फैसला क्यों किया। तिस पर तुर्रा यह है कि केन्द्रीय पर्यावरण मंत्री भूपेन्द्र यादव ने इस फैसले को खनन-प्रक्रिया हेतु उचित करार दिया है। अरावली पर्वत शृंखला विश्व की एक प्राचीनतम और संरक्षणीय धरोहर रही है। अरावली केवल देश के सम्पूर्ण उत्तर भारत को ही नहीं, विश्व के कई अन्य देशों के पर्यावरण और मौसम को भी प्रभावित करती है। हालिया फैसले को देख-समझ कर ऐसा लगता है कि इसके पीछे नि:संदेह एक प्रभावशाली लॉबी काम कर रही प्रतीत होती है। तथ्य यह भी है कि इतने बड़े स्तर पर खनन और आवासीय भवन निर्माण से पहाड़ों का प्राकृतिक रूप और उनका अस्तित्व बचा रह नहीं सकता। इसका मतलब प्रकृति के स्वाभाविक पथ को बाधित और अवरुद्ध करना ही हो सकता है। इस कारण अन्य प्राकृतिक स्रोतों मॉनसून और वायु-शुद्धता जैसे पक्षों पर भी ़खतरा उत्पन्न होगा। वैसे भी, अरावली में खनन और निर्माण प्रक्रिया बढ़ने से वन्य संरक्षण भी प्रभावित होगा। वन्य जानवरों और पशु-पक्षियों का बड़े स्तर पर विनाश होगा। नि:संदेह हम समझते हैं कि अरावली संबंधी इस फैसले पर अंकुश लगना चाहिए। यदि इसे वापिस नहीं लिया जा सकता तो इसे कानूनी प्रक्रिया के अन्तर्गत इस प्रकार संतुलित किया जाना चाहिए कि इस पर्वत-शृंखला की मूल आत्मा पर आंच न आने पाये। सरकार और सत्ता पक्ष को यह जान लेना चाहिए कि अरावली पर संकट उपजने का मतलब पूर्ण वातावरणीय प्रक्रिया को पथ-बाधित करने जैसा होगा।

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