पिछेती गेहूं का उत्पादन कैसे बढ़ाया जाए ?

पंजाब में 2025-26 के रबी सीज़न में कृषि के लिए 35 लाख हेक्टेयर का लक्ष्य रखा गया है। कृषि और किसान कल्याण विभाग के निदेशक डॉ. जसवंत सिंह के अनुसार इस पूरे 35 लाख हेक्टेयर रकबे में गेहूं की बुआई हो चुकी है। उनका कहना है कि अब तक फसल की हालत बहुत अच्छी है। हालांकि अभी उत्पादन का सही अनुमान नहीं लगाया जा सकता क्योंकि मौसम में बदलाव आ सकते हैं, जिनका फसल पर प्रभाव पड़ेगा। जो ठंड का मौसम चल रहा है, वह गेहूं के लिए बहुत लाभदायक है। बुआई अधीन पराली वाले व्यापक रकबे (बिना जलाए) पर सुपरसीडर और स्मार्टसीडर आदि से बुआई हुई है, जिससे फसल को सुंडी की समस्या आने का डर है। इसे खत्म करने के लिए ठंड और बारिश बहुत प्रभावशाली है।
कुछ चुनिंदा किसान लोहड़ी तक भी मोटे मटर, आलू, गन्ना और सब्ज़ियों वाले रकबे में गेहूं की बुआई करेंगे। ऐसे रकबे पर बुआई के लिए पंजाब कृषि विश्वविद्यालय (पी.ए.यू.), लुधियाना द्वारा विकसित पीबीडब्ल्यू-757 और पीबीडब्ल्यू-752 किस्मों तथा भारतीय कृषि खोज संस्थान (आईसीएआर), नई दिल्ली द्वारा जारी एचडी-3298 किस्मों की सिफारिश की गई है। कृषि विशेषज्ञों के अनुसार देर से बोए गए गेहूं को जल्दी बोए गए गेहूं के मुकाबले 25 प्रतिशत कम यूरिया डालना चाहिए, जबकि कलराठी ज़मीन में बोए गए गेहूं को 25 प्रतिशत ज़्यादा यूरिया डालने की सिफारिश है। अगर नवम्बर या दिसम्बर के शुरू में बोए गए गेहूं में 110 किलो प्रति एकड़ यूरिया समय पर डालने के बाद भी फसल में नाइट्रोजन की कमी के लक्षण दिखें, तो 3 प्रतिशत यूरिया घोल (9 किलो यूरिया 300 लीटर पानी में) का दो तरफा छिड़काव करना चाहिए। गेहूं फास्फोरस खाद को अधिक मानती है। इसे फास्फोरस खाद या डीएपी बताई गई मात्रा में डालनी चाहिए। 
भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (आईसीएआर) के सीनियर व्हीट ब्रीडर डॉ. राजबीर यादव का कहना है कि देर से बोए गए गेहूं के पौधों में 15 सैंटीमीटर का अंतर रखना चाहिए और नदीनों को प्रभावशाली तरीकों और यूपीएल जैसी प्रसिद्ध कंपनियों के अच्छे नदीननाशकों का इस्तेमाल करके नियंत्रित करना चाहिए। किसानों को इस समय बोई जा रही गेहूं की पिछेती किस्मों में 45 किलो प्रति एकड़ यूरिया और सारा फास्फोरस और पोटाश बोते समय डाल देना चाहिए। डीएपी 55 किलो प्रति एकड़ इस्तेमाल किया जाए। यूरिया अर्ध-लेपित ही इस्तेमाल करना चाहिए।
कृषि एवं किसान कल्याण विभाग के निदेशक कहते हैं कि चाहे देर से बोने से पैदावार कम हो जाती है, लेकिन अगर तापमान सही रहे और विशेषज्ञों की सिफारिशों मानी जाए तो उत्पादन में 1.5 क्ंिवटल प्रति एकड़ प्रत्येक सप्ताह पैदावार कम होने की संभावना है। बीज को साफ और ग्रेड करके बोना चाहिए। दीमक से प्रभावित जमीनों में क्लोरोपाइरोफास का इस्तेमाल किया जाए। बीज को प्रोवैक्स, इलेक्ट्रॉन, रेक्सेल या वीटावैक्स से संशोधिक कर लेना चाहिए। यह संशोधन बुआई के एक महीने से पहले का नहीं होना चाहिए। अधिक उपज प्राप्त करने के लिए दोतरफा तरीका अपनाकर बआई करनी चाहिए। पानी के समुचित उपयोग के लिए भारी मिट्टी में 8 और रेतीली मिट्टी में 16 क्यारी प्रति एकड़ बनानी चाहिए। देरी से बोए गए गेहूं को पहला पानी चार सप्ताह बाद देना चाहिए, दूसरा पानी पौधे की जड़ें फैलने और तीसरा पानी दाने में बूर पड़ने पर देना चाहिए। 
पिछेती गेहूं को सही वृद्धि और विकास के लिए तत्वों की आवश्यकता होती है। आमतौर पर किसान फसल में नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटाश आदि मुख्य तत्व डाल देते हैं, लेकिन फसल में लघु और द्वितीयक तत्वों की कमी हो जाती है। फसल में अक्सर मैंगनीज और सल्फर की कमी हो जाती है। इन पौष्टिक तत्वों का उपयोग आवश्यकतानुसार कर लेना चाहिए। 
धान की फसल वाली ज़मीन में आमतौर पर मैंगनीज़ की कमी हो जाती है, जिससे पौधे सूख जाते हैं। ऐसी ज़मीनों में पहली सिंचाई से 2-4 दिन पहले 0.5 प्रतिशत मैंगनीज़ सल्फेट का एक छिड़काव करना चाहिए और धूप वाले दिनों में हफ्ते के अंतराल पर तीन छिड़काव फिर करने चाहिए। विशेषज्ञों के मुताबिक मैंगनीज़ सल्फेट के छिड़काव से ही इसकी कमी दूर करनी चाहिए, ज़मीन में डाल कर नहीं। पंजाब में गेहूं की काश्त के रकबे में कोई खास बढ़ोतरी नहीं हुई। कृषि निदेशक के अनुसार गत वर्ष भी इतने ही रकबे में गेहूं की काश्त हुई थी। हालांकि साल 2023-24 के दौरान गेहूं की काश्त के अधीन 35.16 लाख हेक्टेयर रकबा था, जबकि औसत उत्पादन 20.92 क्ंिवटल प्रति एकड़ तक रहा था। वैसे डॉ. राजबीर यादव के अनुसार भारत में गेहूं की काश्त का रकबा बढ़ा है। विशेषज्ञों के अनुसार इस वर्ष भारत में 33-34 मिलियन हेक्टेयर रकबा गेहूं की काश्त के अधीन आने की संभावना है।
किसान इस बात से निराश हैं कि खुले बाज़ार में गेहूं 2600 रुपये प्रति क्ंिवटल बिक रहा है, जो समर्थन मूल्य से भी कम है। इस साल गेहूं का बीज बहुत कम मात्रा में बिकने की वजह से किसान, उत्पादक और विक्रेता खुले बाज़ार में साफ और ग्रेडेड गेहूं घाटे में बेच रहे हैं। उपभोक्ताओं को आटे की ज़्यादा कीमत देनी पड़ रही है।
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