न्यूज़ीलैंड में नगर कीर्तन रोके जाने की घटना
वर्तमान स्थितियों में सिख समुदाय क्या करे ?
एक ़ख़ौफ-ए-बे-पनाह है आंखों के आर-पार,
तारीकियों में डूबता लम्हा है सामने।
(तारीकियों = अन्धेरों)
सुल्तान अख्तर का यह शे’अर मुझे इस समय सिख कौम की हालत की ओर देखते हुए याद आया है। वास्तविकता यह है कि चाहे इस समय न तो सिख कौम के समक्ष कोई किला छोड़ने का सवाल है, न ही किसी छोटे-बड़े घल्लूघारे का भय और न ही 1984 जैसे सिख कत्लेआम का माहौल है, परन्तु फिर भी वर्तमान हालात सिख कौम के लिए उस समय से भी ज़्यादा ़खौफ एवं भय वाले तथा अन्धेरे वाले प्रतीत होते हैं, क्योंकि उस समय में सिख कौम नेतृत्व-विहीन कौम नहीं थी, जिस प्रकार कि आज है। इस समय एक ओर विदेशों में रहता सिख समुदाय जो कौम के लिए शान तथा ताकत का प्रतीक है, स्वयं ही देश दर देश मश्किलों में फंसता दिखाई दे रहा है, और दूसरी ओर देश तथा पंजाब में भी कौम के समक्ष इतने मामले हैं कि उनकी गिनती करना भी कठिन प्रतीत होती है।
इनमें से सबसे बड़ा मामला तो सिखों के पास कोई विश्वसनीय रहबर का न होना ही है। कौम के पास कोई ऐसा नेता नहीं जो इन अंधेरे रास्तों पर कौम का नेतृत्व कर सके। कौम की संस्थाओं तथा राजनीतिक पार्टियों की हालत इतनी खराब है कि उनकी विश्वसनीयता गैरों में तो क्या, स्वयं कौम की नज़रों में ही संदिग्ध बन गई है। ़खैर, इस समय सबसे अधिक चिन्ता का मामला न्यूज़ीलैंड की घटना है, जिसने एक भय पैदा किया है कि कहीं विदेशों में सुखद बसते सिख समुदाय के खिलाफ यह नफरत की हवा आंधी न बन जाए और विश्व के अन्य देशों में भी न फैल जाए। न्यूज़ीलैंड में साहिबज़ादों की शहीदी को समर्पित नगर कीर्तन का विरोध न्यूज़ीलैंड के डैस्टिनी चर्च के संस्थापक ब्राइन तमाकी से संबंधित संगठन ‘ट्रू पैट्रियाट आफ न्यूज़ीलैंड’ ने जिस प्रकार हाका डांस करके किया और इस नगर कीर्तन को रोका, तथा उत्तेजक और चुनौती देने वाले इशारे करके सिखों को उकसाने का प्रयास किया, वह सचमुच चिन्ताजनक घटना है। यह अच्छी बात रही कि सिख उकसावे में नहीं आए और स्थानीय पुलिस ने मामला सम्भाल लिया, परन्तु इस घटना को सोशल मीडिया पर जिस प्रकार का प्रचार मिला है और जिस प्रकार की प्रतिक्रियाएं ब्राइन तमाकी ने दी हैं, उनसे प्रतीत होता है कि कहीं ऐसा विश्व के अन्य देशों में भी न होना शुरू हो जाए, क्योंकि इस समय विश्व भर में बहुसंख्यकों में झूठी राष्ट्रवादिता का एक दौर चल रहा है और नस्लीय भेदभाव की हवा चल रही है। तमाकी ने सभी सिखों को खालिस्तानी तथा आतंकवादी चित्रण की कोशिश की है। इस बीच इस हाका डांस के तुरंत बाद भारत तथा न्यूज़ीलैंड की मध्य हुए फ्री ट्रेड एग्रीमैंट (मुक्त व्यापार समझौते) से थोड़ा अच्छा माहौल बना है। इससे जोड़ कर भी देखा जा रहा है। परन्तु हमारी जानकारी के अनुसार कहीं भी तमाकी के साथ भारत के किसी नेता या अधिकारी की मुलाकात या आधिकारिक रूप में तमाकी से किसी लेन-देन की कोई सूचना नहीं है, अपितु जून में तमाकी के लोगों द्वारा हिन्दू ध्वज फाड़ने तथा मुसलमानों व बोधियों का विरोध करने के समाचार भी हैं।
कौन है यह ब्राइन तमाकी?
ब़ेखुदी बे-सबब नहीं ़गालिब,
कुछ तो है जिसकी पर्दे-दारी है।
ब्राइन तमाकी एक कट्टड़ ईसाई नेता है। वह डैस्टिनी चर्च का संस्थापक है और स्वयं को ‘एपोस्टल बिशप’ कहता है। उसकी विचारधारा है कि ‘अमीरी तथा सफलता परमात्मा की बरकत है।’ वह न्यूज़ीलैंड को ‘ईसाई नेशन’ बनाना चाहता है और सभी प्रवासियों तथा उनके धर्मों को ईसाइयत के लिए खतरा बताता है। उसके खिलाफ अदालतों में कई मामले चले, परन्तु हर बार वह सबूतों की कमी या मामला वापस ले लिए जाने के कारण बच निकला है। उसके काले कारनामों के बारे में एक दस्तावेज़ टी.वी. धारावाहिक ‘अंडर हिज़ कमांड’ चर्चा में रहा है, परन्तु अभी तक इस आधार पर उसके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हुई। वह बहुत अमीरी वाला जीवन जीने का आदी है, परन्तु उसकी आर्थिक हालत अच्छी नहीं बताई जाती, जो इस संदेह को और पक्का करती है कि उसका यह दिखावा कहीं किसी पक्ष की ओर से पैसे देकर तो नहीं करवाया गया। प्राप्त जानकारी के अनुसार उसके चर्च से संबंधित ‘हाई ओ नगा मातामुआ होल्ंिडग लिमिटेड’ तथा ‘व्हाकामना इंटरनैशनल ट्रस्ट’ की लिक्वीडेशन (खत्म) कर दी गई है और इनकी सम्पत्तियों लेनदारों को दे दी गई हैं। इन दोनों संस्थाओं पर लगभग 5.08 मिलियन अमरीकी डालर का ऋण था, जो भारतीय रुपये में 45 करोड़ रुपये से अधिक बनता है। उसके चर्च की कई शाखाएं वित्तीय मजबूरियों के कारण बंद हो गई हैं या बंद हो रही हैं। अत: यह प्रभाव बनता है कि वह जो भी कट्टरता फैला रहा है, वह पैसों के लालच में कर रहा हो सकता है।
किसी के ऐब छुपाना सवाब है लेकिन
कभी कभी कई पर्दा उठाना पड़ता है।
(अज़चर इनायती)
सिख क्या-क्या करें?
यहां सबसे अहम सवाल यह है कि इस स्थिति से निपटने के लिए सिख क्या करें। इन कालमों में पहले भी कई बार लिखा है कि सिखों को जुलूसों (जिन्हें अब नगर कीर्तन कहा जाता है) में अपनी ताकत, समय, पैसा बर्बाद नहीं करना चाहिए। यह ठीक है कि एक वक्त था जब रणनीति के तहत यह सिख पहचान तथा सिर्ख धर्म के लिए लाभदायक रणनीति थी, क्योंकि उस समय ताकत तलवार की धार में से निकलती थी, परन्तु अब ताकत सामूहिकता, प्रचार तथा प्यार में अधिक है। इसलिए वर्तमान हालात में सिखों को विदेशों में सभी अल्पसंख्यकों तथा यहां तक कि उस देश की बहुसंख्या से भी निकटता और भाईचारा बनाना तथा बढ़ाना चाहिए ताकि तमाकी जैसे नफरतखोर, इससे पैसा तथा ताकत प्राप्त करने में सफल न हो सकें। सिखों को नगर कीर्तन की बजाय इस पैसे से गुरुद्वारों के समारोहों में सभी धर्मों के प्रमुख लोगों को बुला कर बारी-बारी उन्हें सम्मानित करने की प्रथा भी शुरू करनी चाहिए। अंतर-धर्म विचार-विमर्श करना चाहिए और गुरु नानक देव जी के सरबत दे भले, किरत करो, वंड छको, नाम जपो के सिद्धांतों से जनमानस को अवगत करवाना चाहिए। इस पर क्रियान्वयन करते हुए दसवंध की राशि ज़रूरतमंद सिखों तथा गैर-सिखों पर समान खर्च करनी चाहिए। सिखों को श्री अकाल तख्त साहिब के नेतृत्व में एक सर्व-स्वीकार्य वैश्विक सिख संस्था स्थापित करनी चाहिए और इसमें पहले से चल रहे वर्ल्ड सिख कौंसिल, सिख कुलीश्न तथा अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर चल रहे अन्य संगठनों को भी जोड़ना चाहिए। इसमें विश्व भर के देशों में जीते सिख सांसदों, विधायकों, उच्चाधिकारियों, धनाढ्य सिखों, बुद्धिजीवियों, मीडिया शख्सियतों तथा अन्यों को भी शामिल करना चाहिए। सिखों को इसके तहत एक अंतर्राष्ट्रीय फंड भी स्थापित करना चाहिए, जो विश्व में कहीं भी किसी धर्म के लोगों की मुश्किल में सबसे पहले मदद शुरू करे। सिख नेतृत्व मताकी के विरोधियों से मिल कर जानकारी ले और उसके कारनामों बारे बने धारावाहिक ‘अंडर हिज़ कमांड’ में लगाए गए आरोपों के आधार पर स्थानीय नागरिकों से ‘न्यूज़ीलैंड स्कियोरिटी इंटैलीजैंस सर्विस’ को जांच करवाने के लिए शिकायत करवाए, परन्तु यदि सरकार इन सबूतों को कम मानती है तो सिख स्वयं किसी प्राइवेट एजेंसी से उस की चर्चित कार्रवाइयों तथा उसके पैसे बारे जांच करवाने तथा सबूत इकट्ठा करने के लिए सेवाएं लें। इससे यह भी स्पष्ट हो जाएगा कि कहीं इसके पीछे सिखों के खिलाफ कोई अंतर्राष्ट्रीय साज़िश तो नहीं काम कर रही।
दर्द की आंच में जलता है ये घर क्या कीजै।
खराब होती है तमन्ना की सहर क्या कीजै।
अकाली दल पुनर-सुरजीत
अकाली दल पुनर-सुरजीत ने चुनाव आयोग के पास पार्टी रजिस्टर करवाने के लिए तीन नाम दिए हैं। पहला अकाली दल, दूसरा शिरोमिण अकाली तथा तीसरा शिरोमणि अकाली दल पुनर-सुरजीत। हम समझते हैं कि चाहे नाम का अपना महत्व होता है, परन्तु कोई भी पार्टी सिर्फ नाम से ही सफल नहीं होती, अपितु उसकी कारगुज़ारी के आधार पर ही वह लोगों में स्वीकार्य होती है। हां, प्रचार का युग है और वृत्तांत किसी पार्टी की सफलता में बड़ी भूमिका अदा करते हैं। अब तक यह अकाली दल खरगोश की चाल ही चल रहा है। अब इसके नेता दावा कर रहे हैं कि पार्टी पूरे ज़ोर से आगे बढ़ेगी, परन्तु इस बीच पार्टी में आई दरारों ने पार्टी को काफी नुकसान ही पहुंचाया है। हालत यहां तक पहुंच गई बताई जाती है कि पार्टी की एक बैठक में पार्टी प्रमुख ज्ञानी हरप्रीत सिंह तथा पार्टी के महासचिव गुरप्रताप सिंह वडाला ने इस्तीफों की पेशकश कर दी थी। इस बीच पार्टी के एकमात्र विधायक तथा वरिष्ठ नेता मनप्रीत सिंह इयाली का बयान कि ‘मैं इस पार्टी का अब हिस्सा नहीं’ एक बार तो पार्टी हलकों में हलचल सी मचा गया, परन्तु बाद में इयाली ने इस बयान से मुंह मोड़ लिया।
जो सरगोशियां हम तक पहुंची हैं, उनके अनुसार वास्तव में इयाली की अकाली दल वारिस पंजाब दे के प्रमुख भाई अमृतपाल सिंह के पिता बापू तरसेम सिंह के साथ बात चल रही थी और उनकी ओर से इयाली को पार्टी का कार्यकारी अध्यक्ष बनने की पेशकश की गई थी। उनके साथ चरणजीत सिंह बराड़ को भी पार्टी का महासचिव बनाए जाने की चर्चा थी, परन्तु इयाली के इस बयान के बाद पार्टी नेताओं संता सिंह उमैदपुरी, इकबाल सिंह झूंदा तथा बीबी सतवंत कौर ने उनसे मुलाकात की। दूसरी ओर अकाली दल वारिस पंजाब दे का कार्यकारी अध्यक्ष बनाने की बात भी लटक गई, क्योंकि सरगोशियां हैं कि चरणजीत सिंह बराड़ भी अकाली दल वारिस पंजाब दे के कार्यकारी अध्यक्ष की दौड़ में शामिल हो गए हैं। मामला लटक गया है और इयाली वापस लौट गए, परन्तु अब नई चर्चा शुरू है कि मनप्रीत सिंह इयाली द्वारा ब्लाक समिति तथा जिला परिषद् चुनावों में दिखाई गई अच्छी कारगुज़ारी के कारण उनकी मांग बढ़ गई है। वह दोनों पक्षों में अपनी पकड़ तथा निकटता के कारण दोनों पक्षों में एकता करवा कर साझा नेता बनने की दौड़ में हैं। इस बीच चर्चा है कि बीबी जगीर कौर, चरणजीत सिंह बराड़ को भी पार्टी में सम्मानजनक पद दिलाने के प्रयास कर रहे हैं। इस बीच पहले साबका 5 सदस्यीय समिति के चार सदस्यों की गुप्त बैठक तथा फिर बीबी सतवंत कौर तथा ज्ञानी हरप्रीत सिंह की बैठक भी चर्चा में है, चाहे इसकी पुष्टि कोई भी पक्ष नहीं कर रहा। पता चला है कि इयाली चाहे पहले बयान देकर गलती कर बैठे हैं, परन्तु अब नई स्थिति में उनका महत्व और बढ़ गया है, जबकि ऐसी ही स्थिति चरणजीत सिंह बराड़ की है जो एकता होने की स्थिति में काफी महत्वपूर्ण हो सकते हैं, परन्तु भविष्य के गर्भ में वास्तविकता क्या है, इसके संबंध में सटीक अनुमान लगाना अभी कठिन है।
कारवां सुस्त राहबर ़खामोश,
कैसे गुज़रेगा ये स़फर ़खामोश।
(सागर निज़ामी)
-मो. 92168-60000
E-mail : hslall@ymail.com



