जीवन से खिलवाड़ है अमानक दवाएं

भले ही यह दावा किया जाता है कि दवाओं की जांच के लिए जो नमूने लिए जाते हैं उनमें से केवल 3 प्रतिशत दवाएं निर्धारित मानकों पर खरी नहीं उतरती, परन्तु हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि दवा के एक भी नमूने में निर्धारित मात्रा व संयोजन में घटक नहीं है तो यह स्वीकार नहीं होनी चाहिए। पिछले कुछ महीनों के समाचारों का ही विश्लेषण किया जाए तो मध्य प्रदेश व राजस्थान सहित देश के कई हिस्सों में अमानक खांसी की दवा के कारण बच्चों की जान न केवल सांसत में आई बल्कि कुछ बच्चों को तो ज़िंदगी से हाथ धोना पड़ा। हालांकि लीपापोती के नाम पर यह सफाई दी गई कि दवा डाक्टर ने नहीं लिखी थी या चिकित्सालय से नहीं दी गई थी। सवाल यह है कि अमानक दवाएं तैयार करके जीवन से खिलवाड़ करने वालों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई नहीं होने से उनके हौसले बढ़ जाते है। माना जाता है कि नकली कीटनाशक बनाने व बेचने वालों के लिए कड़ी सज़ा का प्रावधान है तो फिर दवाओं के नमूने फेल हो जाने पर उस बैच की दवाओं को बाज़ार से हटाने की बात तो कर दी जाती है, पर किसी दवा निर्माता को दवाओं के नमूने फेल होने पर सज़ा मिलने के समाचार लगभग सुनाई ही नहीं देते। गत पांच वर्षों में 14 हज़ार से अधिक दवाओं के नमूने फेल हुए हैं। इनमें से अधिकांश बुखार, खांसी के साथ ब्लड प्रेशर (बी.पी.), शुगर जैसी गंभीर बीमारी के भी है। अब कल्पना की जा सकती है कि बी.पी. या शूगर के रोगियों पर अमानक दवाओं का क्या असर होता है, या हो सकता है। सामान्य से गंभीर बीमारी की दवाओं के नमूने फेल होना इस बात का साफ संकेत है कि दवा निर्माताओं में न तो मरीज़ाें के प्रति गंभीरता है और न ही किसी कानूनी कार्रवाई का डर। यह तो वे आंकड़ें हैं जो सामने आ जाते हैं, नहीं तो बाज़ार में आने वाली दवाओं के सभी के सभी बैच के नमूने जांच के लिए लेना या जांच करना संभव नहीं। ऐसे में लोगों की ज़िंदगी से खिलवाड़ करने वालों में भय पैदा किया जा सकतता है। 
दवाओं के निर्धारित मानकों पर खरी नहीं उतरने के साथ ही जीवनदायिनी दवाओं का तेज़ी से बेअसर होना भी एक समस्या होती जा रही है। इसका एक बड़ा कारण जहां एंटीबायोटिक दवाओं का अत्यधिक सेवन है तो दूसरा कारण दवाएं लेने के तौर-तरीके से अनविज्ञ होना या फिर जान-बूझकर लापरवाही बरतने के साथ ही खान-पान से जुड़ी गलतियां भी है। डॉक्टरों की भाषा में बात करें तो एएमआर (एंटी माइक्रोबाइल रेजिस्टेंस) का चिंतनीय खतरा हो गया है। देश-विदेश के चिकित्सक एएमआर को वैश्विक महामारी का नाम देने लगे हैं। देखा जाए तो आज सबसे अधिक मौतों का कारण दवाओं का अप्रभावी होना है। कोरोना के बाद तो एंटीबायोटिक दवाओं का उपयोग बहुत अधिक बढ़ा है। दरअसल कोरोना के बाद जहां एक और आम व्यक्ति स्वास्थ्य के प्रति अत्यधिक सजग हुआ है तो एंटीबायोटिक दवाओं का उपयोग भी बढ़ा है। सर्दी, जुकाम, खांसी आदि वायरल बीमारियों में यदि भारत की बात की जाए तो 95 प्रतिशत तक एंटीबायोटिक दवाओं को ईलाज में शामिल किया जा रहा है। यह 95 प्रतिशत का आंकड़ा चाहे चिन्ताजनक हो सकता है परन्तु इसमें कोई दो राय नहीं कि चिकित्सकों द्वारा एंटीबायोटिक दवाएं धड़ल्ले से लिखी जा रहा है। यह तो तब है जब मेडिकल से जुड़े विभिन्न मंचों व शोध निष्कर्षों में यह खुलासा हो चुका है कि एंटीबायोटिक दवाओं का अत्यधिक उपयोग स्वास्थ्य को नुकसान ही पहुंचाने लगा है तो दूसरी और बैक्टिरिया में प्रतिरोधी क्षमता विकसित होने से दवाओं का असर कम होने लगा है। 
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