राजनीतिक और आर्थिक उथल-पुथल वाला रहा यह वर्ष

प्रत्येक वर्ष बहुत कुछ ऐसा होता है जो न केवल वर्तमान को प्रभावित करता है, बल्कि भविष्य में होने वाली घटनाओं पर भी अपना प्रभाव डालता है। इस संदर्भ में ही यदि हम विश्व स्तर पर 2025 में घटित राजनीतिक और आर्थिक घटनाओं का लेखा-जोखा करें तो यह बात उभर कर सामने आती है कि यह वर्ष दुनिया के लिए बेहद अस्थिरता भरा रहा है। विश्व की प्रबंधकीय व्यवस्था को यदि किसी शख्सियत ने इस वर्ष में सबसे ज्यादा प्रभावित किया है, वह है अमरीका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प। डोनाल्ड ट्रम्प ने इस वर्ष 20 जनवरी को राष्ट्रपति के तौर पर दोबारा पद संभाला था और अपना पद संभालने के साथ ही उन्होंने अमरीका की राजनीति और आर्थिक नीतियों में बड़े परिवर्तन लाने के लिए एक के बाद एक तेज़ी के साथ फैसले किए, जिस कारण पूरी दुनिया में हलचल मच गई। यहां यह भी वर्णनीय है कि 2024 में राष्ट्रपति के पद के लिए चलाई अपनी चुनाव मुहिम में उन्होंने ‘अमेरिका फर्स्ट’ का नारा दिया था। अपने देशवासियों और खासतौर पर अपने मतदाताओं को उन्होंने यकीन दिलाया कि वह अमरीका को राजनीतिक और आर्थिक तौर पर मज़बूत करके फिर से महान बनाएंगे। अमरीका को महान बनाने के लिए उन्होंने दूसरे देशों द्वारा अमरीका को भेजी जाने वाली चीज़ों-वस्तुओं पर बड़े टैरिफ (टैक्स) लगाने का ऐलान किया, ताकि अमरीका की तिजोरी भरी जा सके। दुनिया के लगभग 60 देशों पर उन्होंने 10 प्रतिशत से लेकर 50 प्रतिशत तक एकतरफा टैक्स लगा दिया। इसके साथ ही दुनिया के लगभग सभी देशों को यह चेतावनी भी दी कि यदि अमरीका के साथ वह उसकी शर्तों पर व्यापारिक समझौते करने के लिए आगे नहीं आए तो वह उन पर और भी ज्यादा टैक्स लगा सकते हैं। दुनिया के कई देशों ने डोनाल्ड ट्रम्प के आगे झुककर उनकी शर्तों अनुसार अमरीका के साथ व्यापारिक समझौते कर लिये। परन्तु चीन, भारत और कुछ पश्चिमी देशों ने अमरीका के साथ व्यापारिक समझौतों संबंधी मोल भाव करने की कोशिश जारी रखी। चीन जैसे बड़े देश ने अपने ढंग-तरीके के साथ अमरीका पर जवाबी टैरिफ भी लगाये और कुछ चीज़ों वस्तुओं की सप्लाई रोकने का ऐलान भी किया। वर्तमान में भी भारत द्वारा अमरीका के साथ एक संतुलित व्यापारिक समझौते करने के लिए बातचीत का सिलसिला जारी है।
दुनिया के आर्थिक और व्यापारिक क्षेत्रों में अस्थिरता और हलचल पैदा करने के साथ ही अमरीका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने राजनीतिक क्षेत्रों में भी खूब हलचल पैदा की। इस वर्ष अलग-अलग समय पर उन्होंने बार-बार यह दावा भी किया कि उन्होंने दुनिया के अलग-अलग 8 देशों में चल रहे युद्धों को रुकवाने के लिए अहम भूमिका निभाई है और इसलिए उनको दुनिया का नोबेल शांति पुरस्कार मिलना चाहिए। रूस और यूक्रेन के बीच चल रहे युद्ध को रोकने के लिए उन्होंने यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की और पश्चिमी देशों के साथ बार-बार बातचीत की। इस संबंध में जो उन्होंने शांति का प्रस्ताव पेश किया, उसमें कहा गया था कि रूस ने यूक्रेन के क्रीमिया सहित जो 20 प्रतिशत इलाके पर कब्ज़ा कर लिया है, यूक्रेन उस पर पक्के तौर पर अधिकार मान ले और नाटो सेना संगठन में शामिल होने का इरादा भी छोड़ दे। यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की ऐसा समझौता करने के लिए तैयार नहीं हुए और इसके साथ ही पश्चिमी देशों ने भी ऐसे समझौते का समर्थन करने से इन्कार कर दिया, जिसके निष्कर्ष के तौर पर अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की और पश्चिमी देशों के साथ तीखा मतभेद भी सामने आया। इन मतभेदों के कारण अभी तक यह जंग नहीं रुक सकी।
इज़रायल-हमास टकराव
इज़रायल ने इस वर्ष हमास के खिलाफ अपने विनाशकारी हमले जारी रखे। इन हमलों के दृष्टिगत गाज़ा पट्टी का 53 प्रतिशत इलाका एक तरह से खंडहर बन गया, 70,000 के लगभग फिलिस्तीनी इस जंग में मारे गये, बहुत सारे फिलिस्तीनियों को दूसरे देशों में जाकर शरण लेनी पड़ी। इज़रायल के 1200 आम शहरी और 913 के लगभग सैनिक भी इस जंग में मारे गये हैं। इस जंग को रुकवाने के लिए भी अमरीका, जॉर्डन और पश्चिमी देशों द्वारा यत्न किए गये। कई बार इज़रायल और गाज़ा पट्टी पर हमास के बीच युद्धबंदी भी हुई परन्तु कोई न कोई बहाना बनाकर इज़रायल द्वारा यह युद्धबंदी तोड़ दी जाती रही जिसके कारण गाज़ा में भुखमरी वाले हालात पैदा हो गये। इस समय इज़रायल और हमास की बीच युद्धबंदी चल रही है और दोनों पक्षों द्वारा एक-दूसरे के बंदी और मारे गये लोगों के शवों का भी एक-दूसरे के बीच आदान-प्रदान किया गया। यह टकराव इज़रायल और ईरान के बीच टकराव में भी बदल गया था। दोनों ने एक दूसरे पर हमले किए। अमरीका द्वारा भी ईरान पर हमले किए गये।
भारत-पाकिस्तान जंग
इस वर्ष भारत और पाकिस्तान के बीच भी तीखा टकराव देखने को मिला। कश्मीर के पहलगाम क्षेत्र में पाकिस्तान समर्थक आतंकवादियों द्वारा पर्यटकों पर अचानक हमला करके 26 लोगों को बेरहमी के साथ मार दिया गया था। इसकी प्रतिक्रिया के तौर पर भारत ने पाकिस्तान के आतंकी ठिकानों पर मिसाइलों, हवाई जहाज़ों और ड्रोनों के साथ हमले किए। पाकिस्तान स्थित जैश-ए-मोहम्मद और लश्कर-ए-तैयबा के ठिकानों को नष्ट कर दिया गया। पाकिस्तान के कई हवाई अड्डों का भी भारत ने बहुत नुकसान किया। इसकी प्रतिक्रिया के तौर पर पाकिस्तान ने भी ड्रोनों और मिसाइलों के साथ भारत पर जवाबी हमला किया और यह भी दावा किया कि उसने भारत के 6 हवाई जहाज़ों को नष्ट कर दिया है।
आसिम मुनीर का उभार
भारत और पाकिस्तान के बीच कुछ दिनों तक हुई जंग का सबसे अधिक लाभ पाकिस्तानी थल सेना मुखी आसिम मुनीर ने उठाया। वह पाकिस्तान में यह प्रभाव देने में सफल रहे थे कि उन्होंने भारत द्वारा ‘आपरेशन सिंदूर’ के नाम पर किए गये हमले का मुहतोड़ जवाब दिया है और भारत के कई युद्धक विमान नष्ट कर दिए हैं। पाकिस्तान की शहबाज़ शरीफ की सरकार आसिम मुनीर के इन दावों को झुठलाने की जगह पर उसके दबाव के आगे झुकती नज़र आई और आसिम मुनीर को फील्ड मार्शल का रैंक दिया गया। इसके साथ ही पाकिस्तान संविधान में 27वां संशोधन करके संविधान की धारा 243 में अहम तबदीली की गई है। इसके निष्कर्ष के तौर पर आसिम मुनीर को चीफ ऑफ डिफैंस फोर्स (सी.डी.एस.) भी बना दिया गया।
बांग्लादेश में अस्थिरता और हिंसा
इस वर्ष भारत के पड़ोसी देश बांग्लादेश में भी काफी उथल-पुथल देखने को मिली। पिछले वर्ष के विद्यार्थी आंदोलन के कारण बांग्लादेश की प्रधानमंत्री और अवामी लीग की मुखी शेख हसीना को बांग्लादेश छोड़कर भारत में शरण लेने के लिए मज़बूर होना पड़ा था। उसके बाद नोबेल पुरस्कार हासिल कर चुके मोहम्मद यूनुस को अंतरिंम सरकार का सलाहकार बनाया गया था। इस सरकार में अधिकतर कार्यकारी शक्तियां उनके हाथ में थीं परन्तु वह बांग्लादेश की स्थिति को सम्भालने में बहुत सफल नहीं हुए। उनके प्रशासन में भारत विरोधी कट्टरपंथी शक्तियां अधिक उग्र होते नज़र आईं। इनके द्वारा बांग्लादेश में जहां अवामी लीग के वर्करों, पार्टी के कार्यालयों और समाचार पत्रों के दफ्तरों को निशाना बनाया जा रहा है, वहीं अल्पसंख्यक हिन्दुओं पर भी हमले किए जा रहे हैं। पिछले दिनों दो विद्यार्थी नेताओं पर हुए हमले जिनमें से एक की मृत्यु हो गई, के बाद वहां स्थिति और भी गम्भीर हो गई है।
नेपाल में जैन.जी. आंदोलन
इस वर्ष भारत के एक और पड़ोसी देश नेपाल में भी बड़ी राजनीतिक उथल-पुथल देखने को मिली। नेपाल की सरकार ने सितम्बर में फेसबुक, यू-ट्यूब और एक्स सोशल मीडिया प्लेटफार्म के नेपाल में उपयोग पर पाबंदी लगाने का ऐलान किया था, ताकि सोशल मीडिया द्वारा सरकार की हो रही आलोचना को रोका जा सके। इसके निष्कर्ष के तौर पर नेपाल के नौजवानों ने सड़कों पर प्रदर्शन शुरू कर दिए। इस आंदोलन को जैन.जी. का नाम दिया गया। आंदोलन के निष्कर्ष के तौर पर 9 सितम्बर को नेपाल के प्रधानमंत्री के.पी. शर्मा ओली को त्याग-पत्र देना पड़ा और उनके स्थान पर पूर्व चीफ जस्टिस सुशीला कार्की को अंतरिम सरकार का मुखी बना दिया गया।
पाकिस्तान और अफगानिस्तान के बीच झड़पें
इस वर्ष भारत के दो अन्य पड़ोसी देशों पाकिस्तान और अफगानिस्तान के बीच भी टकराव देखने को मिला। पाकिस्तान द्वारा यह आरोप लगाए जा रहे हैं कि अफगानिस्तान की तालिबान सरकार तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान के लड़ाकों का समर्थन करती है। वह अफगानिस्तान की धरती को पाकिस्तान पर हमले करने के लिए प्रयोग कर रहे हैं। इसको मुख्य रखते हुए पाकिस्तान ने अफगानिस्तान के सीमावर्ती इलाकों में अनेक हवाई हमले भी किए हैं, जिनमें अफगानिस्तान का काफी जानी और माली नुकसान हुआ है। मुकाबले के तौर पर अफगानिस्तान ने भी पाकिस्तान की सीमावर्ती चौकियों को कई बार निशाना बनाया है। इस समय भी दोनों देशों के बीच सीमावर्ती व्यापार ठप्प है, जिसके कारण पाकिस्तान को करोड़ों रुपये का नुकसान हो रहा है।
वातावरण संकट
जिस तरह कि इस लेख के शुरू में ज़िक्र किया गया है कि दुनिया में लागू किए गये कार्पोरेट विकास माडल के कारण और ज्यादातर सरकारों की वातावरण से संबंधित मामलों के प्रति उदासीनता के कारण धरती का तापमान लगातार बढ़ रहा है, जिसका निष्कर्ष दुनिया के लोगों को भयानक आग, बाढ़ और समुद्री तूफानों के रूप में भुगतना पड़ रहा है। इस कारण इस वर्ष भी बहुत सारी प्राकृतिक आपदाएं आई हैं। अमरीका के प्रदेश लॉस ऐंजलस में भयानक आग लगी, जो कई दिनों तक जारी रही और अमरीका को वातावरण संकट संबंधी विचार करने के लिए इस वर्ष ब्राज़ील में संयुक्त राष्ट्र संघ की पहल पर ‘कॉप-30’ कांफ्रैंस हुई, जिसमें विससित देशों ने धरती की तपिश घटाने के लिए ज़रूरी तकनीकी बदलाव करने के लिए विकासशील देशों को 2035 तक 1.3 ट्रिलीयन डॉलर देने का वायदा किया है। 80 अन्य देशों ने कोयला, पैट्रोल और अन्य रिवायती ऊर्जा के साधनों का उपयोग चरणबद्ध ढंग से घटाने पर भी सहमति जताई है।
यदि तकनीकी क्षेत्र की बात करें तो इस वर्ष ए.आई. (आर्टीफिशियल इंटैलीजैंस) का उभार कई दशकों पहले हुई कम्प्यूटर क्रांति के बाद तकनालोजी के क्षेत्र में एक और बड़ी छलांग है। इससे बहुत सारे क्षेत्रों में हैरानीजनक तबदीलियां होंगी। ऐसे संशय भी प्रकट किए जा रहे हैं कि शिक्षा, मीडिया और कई अन्य क्षेत्रों में इसका दुरुपयोग नुकसानदायक भी सिद्ध हो सकता है। इस संबंधी अभी अंतिम निष्कर्ष नहीं निकाला जा सकता।

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