एक पहल 

हमारे पड़ोसी सुधीर सरकारी कॉलेज में प्रोफेसर के पद पर कार्यकर्त हैं। जब भी वह करियाना के स्टोर पर सामान लेने जाते तो सामान खरीदते समय मोलभाव करते। अगर दुकानदार पैसा कम न करता तो वह धक्के से दस-बीस रुपये कम ही देते। एक दिन दुकानदार ने पूछा, ‘सर, आपकी सैलरी तो अच्छी है, फिर भी आप इतना मोलभाव क्यों करते हैं?’
तब प्रोफेसर ने मुस्कराते हुए बताया, ‘मैं हर महीने इन बचे हुए पैसों को इकट्ठा कर पढ़ने वाले गरीब बच्चों के लिए प्रेरणादायक कहानियों की पुस्तकें खरीदता हूं। यह मेरी एक छोटी सी पहल है ताकि बच्चों को पढ़ाई के लिए उत्साहित किया जा सके।’  
दुकानदार यह सुनकर चौंक गया और उसने पूछा, ‘आपको यह विचार कैसे आया?’
प्रोफेसर ने बताया, ‘मेरे कॉलेज में कई ऐसे बच्चे हैं जो पढ़ने में बहुत होशियार हैं लेकिन उनके पास किताबें नहीं होतीं। मुझे लगा कि अगर मैं थोड़ा सा भी योगदान दूं तो उनकी मदद हो सकती है। इन बच्चों के चेहरे पर खुशी देखकर मुझे बहुत संतोष मिलता है।’ यह बात सुनकर दुकानदार नतमस्तक हो गया और उसने भी अपनी तरफ से सहायता देने की पेशकश की।  इसके बाद वह दोनों मिलकर हर महीने पुस्तकें खरीद कर गरीब बच्चों में बांटते। समय के साथ उनकी इस पहल में और व्यक्ति भी जुड़ने लगे और देखते ही देखते यह पहल एक कारवां बन गई। उनकी इस बेजोड़ मेहनत ने बच्चों को न केवल पढ़ाई में साथ दिया बल्कि उनकी मानसिकता में भी सकारात्मक परिवर्तन आ गया। अब बच्चे आंखों में उज्जवल भविष्य के सपने संजोए हुए पढ़ाई में अधिक रुचि लेने लगे।

सहायक प्रोफेसर, भौतिकी विभाग
चंडीगढ़ विश्वविद्यालय
मो. 8979551891

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