क्रिसमस की काट और जाति मिलन समारोह
नया साल आने से पहले पहले पुरानी बातें दोहराई जाने लगीं हैं। इन्हीं पुरानी बातों में है जाति मिलन समारोह। सब लोग उछल-उछल कर जाति मिलन समारोह में आचमन करने के लिए कूदने लगे हैं। सब लोग जातियों पर गौरव कर रहें हैं। और जातियों का सम्मेलन नववर्ष की पूर्व संध्या पर शुरू होने ही वाला है। आचमन पर आचमन, चर्चे पर चर्चे।
और ले जाति दे जाति के चर्चे जोरों-शोर पर हैं। बात चंदे को लेकर हो रही है, कि इस साल एक हजार रूपये का चंदा लग रहा है। चंदे पर चर्चा से मसला कुछ ज्यादा ही गर्मा गया है। लोग खाने-पीने की चर्चा कर रहें हैं। हर चाल की कु व्यवस्था पर चर्चा चल पड़ी है। बैग वाले भाई साहब पचास किलो आलू खरीदते हैं। और चार सौ किलो का बिल बना देते हैं। स्पंजी रसगुल्ला की जगह कम दाम का रसगुल्ला पिछले साल चला दिया गया था? बैग वाले रोकड़िया भाई साहब पर हर साल गबन का आरोप लगता है। वो हजार हजार का चंदा लेते हैं। और सब पैसे डकार जाते हैं। पिछले साल पुड़ी ठंडी मिली थी। जाति सम्मेलन ना हुआ बाल का खाल खींचने का प्रोग्राम चल रहा है। जब सब लोग हजार-हजार चंदा दे रहा हैं, तो अलग-अलग लोगों को अलग-अलग ढ़ंग से क्यों पूछा जा रहा है। किसी को कुर्सी पर बैठाया जा रहा है, तो किसी को पानी भी नहीं पूछा जा रहा है। चाय बेचने वाले चहवड़ियों और पान बेचने वाले पनवड़ियों की कोई नहीं पूछ रहा है। ये अपनी ही जाति में हजार रूपये देकर जैसे जाति से खारिज किए हुए लोग हैं। जमीन पर बैठने वाले। जैसे देश निकाला हों, अंत्यज।
आज भी देश में एक ही चाय वाले की पूछ है। दूसरे चाय वाले और पान वालों की हालत बुरी है। कोई काहे जाएगा अगर आप बुलाकर नहीं पूछेंगें। ये तो वही बात हो गई कि जिसके माथे में तेल है। उसको ही लोग तेल दे रहें हैं। पैसे वाले की इज्जत हो रही है। और बिना पैसे वालों की कोई बात नहीं पूछता। और पिछली बार तो खाने के लिए लूट मच गई थी। पनवड़िये, चायवड़िये को पुड़ी तक नसीब नहीं हुई थी। लिहाजा ये तय हुआ है कि इस सम्मेलन में जाना ही नहीं है तो चंदा क्यों देना। खैर जो असली वजह है उसको जानना ज़रूरी है। असली वजह काट देने की है। हर समस्या का जब समाधान है तो इसका ना होगा। इस बार क्रिसमस को काट देना है। काट-काट कर लोगों को बांट देना है। भले ही हम एक्सीडेंट में छटपटाते रहे। कोई जाति वाला ही आएगा तभी हमको उठाएगा। चाहे हमारे शरीर में खून घट जाए। खून शरीर में एक्सीडेंट के बाद खत्म हो जाए। हम खून अपनी ही जाति वालों से लेंगे। अभी हाथ-पैर ठीक है तो अभी हम शेखी बघारेंगें ही। लिहाजा जाति-सम्मेलन क्रिसमस पर यानी तुलसी पूजन के दिन ही करेंगें। वाह क्या आइडिया है। मानना पड़ेगा गुरू। भले ही जाति में कोई पूछ ना रहा हो। जाति की टोकरी सिर पर उठाए घूमेंगें।
-मेघदूत मार्केट फुसरो
बोकारो झारखंड, पिन 829144



