वायदों की झड़ी
लोकसभा तथा विधानसभा में सदस्यों की संख्या के आधार पर महाराष्ट्र उत्तर प्रदेश के बाद दूसरे नम्बर पर आता है। इसकी विधानसभा के 288 सदस्य हैं। आगामी 20 नवम्बर को यहां विधानसभा के चुनाव होने जा रहे हैं। इसके शहर मुम्बई को देश की आर्थिक राजधानी भी कहा जाता है, जिसका प्रभाव पूरे देश में स्वीकार किया जाता है। विगत वर्षों में यहां की राजनीति भी बेहद गर्मायी रही है। पार्टियों में तोड़फोड़ होती रही है। वफादारियां बदलती रही हैं। राजनीतिक तनाव बेहद बढ़ता रहा है।
इस समय वहां महायुति गठबंधन की सरकार है। शिवसेना से टूटे एक बड़े गुट ने एकनाथ शिंदे के नेतृत्व में तथा शरद पवार की नैशनलिस्ट कांगे्रस पार्टी से टूटे एक गुट जिसका नेतृत्व अजित पवार कर रहे हैं, ने मध्य काल में पार्टियों के भीतर तोड़फोड़ करके भाजपा की मदद से सत्ता पर कब्ज़ा किया हुआ है। शिवसेना के एकनाथ शिंदे को प्रदेश का मुख्यमंत्री बनाया गया है। भाजपा के देवेन्द्र फडनवीस तथा नेशनलिस्ट कांग्रेस पार्टी के अजित पवार, दो उप-मुख्यमंत्री बने हुए हैं। दूसरी ओर ऐसी ही तोड़फोड़ से महाविकास अघाड़ी गठबंधन अस्तित्व में आया है। जिसमें कांग्रेस के अतिरिक्त शरद पवार के नेतृत्व वाली नैशनलिस्ट कांग्रेस पार्टी तथा उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली शिवसेना आदि शामिल हैं।
चाहे पिछले सम्पन्न हुए लोकसभा चुनावों में भाजपा के नेतृत्व वाले महायुति गठबंधन का प्रभाव काफी कम हुआ दिखाई दिया है। भाजपा की लोकसभा की सीटें भी महाराष्ट्र में कम हो गई हैं, जिससे कांग्रेस के नेतृत्व वाले महा विकास अघाड़ी गठबंधन के हौसले बढ़े नज़र आए हैं। अब विगत समय में सम्पन्न हुए हरियाणा के विधानसभा चुनावों में भाजपा की जीत से वह पुन: हौसले में आई प्रतीत होती है। एक ओर मल्लिकार्जुन खड़गे, राहुल गांधी तथा शरद पवार अपने गठबंधन के लिए पूरा ज़ोर लगा रहे हैं। दूसरे पक्ष की कमान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी तथा गृह मंत्री अमित शाह ने सम्भाली हुई है। इस चुनाव के परिणाम को कुछ माह बाद होने वाले दिल्ली विधानसभा चुनावों से भी जोड़ा जा रहा है, जहां आम आदमी पार्टी की सरकार है, परन्तु भाजपा वहां भी सत्ता हासिल करने के लिए अपना पूरा ज़ोर लगा रही है। चाहे महाराष्ट्र के चुनाव के साथ झारखंड के चुनाव भी हो रहे हैं, परन्तु इस समय मुख्य केन्द्र बिन्दु महाराष्ट्र के चुनाव को ही माना जा रहा है।
विगत दिवस प्रशासन चला रहे महायुति गठबंधन तथा विपक्षी महाविकास अघाड़ी गठबंधन के नेताओं ने अपने-अपने चुनाव घोषणा-पत्र जारी किये हैं, जिनमें इन गठबंधनों की ओर से पहले की भांति ही ऐसे बड़े-बड़े वायदे किये गये हैं, जिन्हें बाद में क्रियात्मक रूप दे सकना बेहद कठिन होगा। प्रशासन चला रहे महायुति गठबंधन द्वारा महिलाओं के लिए लागू की गई पहली ‘लाडली बहना’ योजना के अनुसार 1500 रुपये प्रति महिला दी जा रही राशि को बढ़ा कर 2100 रुपये करना, बुज़ुर्गों की पैन्शन 1500 रुपये से बढ़ा कर 2100 तक लाना, आगामी पांच वर्षों में युवाओं को 25 लाख नौकरियां उपलब्ध करवाना, बिजली बिलों में कटौती करना, किसानों के ऋण माफ करना आदि वायदे शामिल हैं। दूसरी ओर महाविकास अघाड़ी गठबंधन द्वारा महिलाओं को प्रत्येक माह 3000 रुपये देना, मुफ्त बस सेवा, महिलाओं को वर्ष में 6 सिलेण्डर 500 रुपये प्रति देना, किसानों को राहत देने के लिए 3 लाख रुपये तक का ऋण माफ करना तथा युवाओं को प्रत्येक माह 4000 रुपये का बेरोज़गारी भत्ता देना आदि वायदे शामिल हैं। ऐसे वायदे राजनीतिक पार्टियां वर्षों से करती आई हैं। क्रियात्मक रूप में ये कितने वफा होते हैं, यह तो बाद में देखने वाली बात होगी, परन्तु ऐसा करते हुए देश के अधिकतर राज्य अक्सर ऋण के जाल में ऐसे फंस जाते हैं, जिससे इस प्रकार का चक्रव्यू बनता है, जिसमें बहुत-से राज्य उलझ कर रह जाते हैं और सही अर्थों में विकास कार्य बड़ी सीमा तक रुक जाते हैं, जो आखिर में राज्य के लिये बड़े घाटे की बात होती है। फिर ऐसे चंगुल में से बाहर निकलना बेहद कठिन हो जाता है, परन्तु जिस प्रकार आम तौर पर देखा गया है कि राजनीतिक पार्टियां तथा राजनीतिज्ञ चुनाव जीतने के लिए हर तरह का हथकंडा इस्तेमाल करने से गुरेज नहीं करते, जो अंत में राज्य तथा देश के लिए घाटे का सौदा सिद्ध होते हैं। चुनाव निकट आने के कारण प्रत्येक तरह के वायदों की ये कड़ियां लम्बी होती चली जाती हैं। ऐसी कमज़ोर कड़ियां आखिर में टूटने लगती हैं और जन-जीवन में उथल-पुथल को ही जन्म देती हैं।
—बरजिन्दर सिंह हमदर्द