अरबों-खरबों रुपये खर्च करके भी स्वच्छ नहीं हुई गंगा

मोदी सरकार के ड्रीम प्रोजेक्ट ‘नमामि गंगे’ पर सरकारी खर्च में 15 गुना वृद्धि हुई है। अरबों-खरबों रुपये खर्च करने के बाद भी गंगा नदी का जल पीने योग्य नहीं है। नमामि गंगे मिशन के तहत वर्ष 2015 से कई परियोजनाएं शुरू की गईं, लेकिन सबसे महंगी और सबसे महत्वपूर्ण परियोजना सीवेज प्रबंधन के आधारभूत ढांचे का विकास है। कुल मिलाकर विभिन्न नमामि गंगे परियोजनाओं के तहत लगभग 37,550 करोड़ रुपये मंजूर किए गए, लेकिन रिकॉर्ड के अनुसार जून 2024 तक केवल 18,033 करोड़ ही खर्च किए गए। अकेले सीवेज इंफ्रास्ट्रक्चर परियोजनाओं की लागत 15,039 करोड़ रुपये है।
गत 12 जुलाई को परियोजनाओं की समीक्षा के लिए आयोजित बैठक के रिकॉर्ड में कहा गया है क िएनएमसीजी के महानिदेशक ने पाया कि अब तक व्यय की गति बेहद धीमी है। उन्होंने उत्तर प्रदेश के अधिकारियों (जहां अधिकांश परियोजनाएं हैं) से पूछा कि व्यय कम क्यों है? जवाब में प्रतिनिधि ने कहा कि जौनपुर, कासगंज, वाराणसी, बरेली, सलोरी और आगरा में छह परियोजनाओं पर 15.16 करोड़ रुपये खर्च किए गए हैं। उन्होंने कहा कि अप्रैल या तिमाही की शुरुआत में जो धनराशि आई है, वह जून के मध्य में प्राप्त हुई है। अधिकारी ने कहा कि 25 करोड़ रुपये का भुगतान प्रक्रिया अधीन है।
आपको बता दें कि इस योजना के तहत गंगा नदी की सफाई में खर्च होने वाला फंड चालू वित्त वर्ष के अंत तक सभी उच्च स्तर पर पहुंच सकता है। स्वच्छ गंगा के लिए राष्ट्रीय मिशन (एनएमसीजी) के महानिदेशक राजीव रंजन मिश्रा ने कहा कि वर्तमान देनदारियों और स्वीकृत परियोजनाओं के आधार पर हमें नमामि गंगे के तहत वास्तविक व्यय 3,000 करोड़ रुपये तक पहुंचने की उम्मीद है। यह गंगा नदी को साफ  करने के लिए एक साल में खर्च की जाने वाली उच्चतम राशि होगी। यह राशि गंगा और उसकी सहायक नदियों की योजनाओं और परियोजनाओं पर खर्च की जाएगी जिसमें नए एसटीपी के कमीशन के अलावा मौजूदा सीवरेज ट्रीटमैंट प्लांट (एसटीपी) का पुनर्वास और उन्नयन शामिल है। नमामि गंगे योजना 2014-15 में मोदी सरकार द्वारा शुरू की गई थी। पहले वर्ष में वास्तविक व्यय 170.99 करोड़ रुपये से बढ़कर 2018-19 में 2,626.54 करोड़ रुपये हो गया। इस योजना के तहत अब तक 298 प्रोजेक्ट सैंशन हुए हैं जिसमें 40 एसटीपी से संबंधित हैं। केंद्र सरकार ने 2015-2020 के बीच में गंगा की सफाई पर खर्च करने के लिए 20,000 करोड़ रुपये आवंटित किए थे।
अब ज़रा गौर करें कि राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण की उस टिप्पणी को हमें एक गंभीर चेतावनी के रूप में लेना होगा जिसमें कहा गया है कि प्रयागराज में गंगा का पानी अधिक प्रदूषित हो गया है। एनजीटी का यह खुलासा इसलिये भी चिंता बढ़ाने वाला है क्योंकि कुछ ही माह बाद यानी जनवरी 2025 की पौष पूर्णिमा से प्रयागराज में महाकुम्भ की शुरुआत होने वाली है। कुम्भ मेले की तैयारियां अंतिम चरण में हैं और अखाड़ों की सक्रियता बढ़ गई है। महाकुम्भ को लेकर देश ही नहीं विदेश में भी खूब चर्चा होती है। यदि गंगाजल की गुणवत्ता को लेकर ऐसे ही सवाल उठते रहे तो देश-दुनिया में अच्छा संदेश नहीं जाएगा। सवाल इस बात को लेकर भी उठेंगे कि विभिन्न सरकारों द्वारा शुरू की गई अनेक महत्वाकांक्षी व भारी-भरकम योजनाओं के बावजूद गंगा को साफ करने में सफलता क्यों नहीं मिल पाई है। विडम्बना देखिये कि सख्ती के बावजूद सैकड़ों खुले नाले गंगा नदी में गंदा पानी गिरा रहे हैं। उद्योगों का अपशिष्ट पानी अनेक जगह गंगा नदी में गिराया जा रहा है। बताया जाता है कि अब तक करीब चालीस हज़ार करोड़ की लागत से गंगा नदी की सफाई की करीब साढ़े चार सौ से अधिक परियोजनाएं आरंभ भी की गई हैं। इस परियोजना के अंतर्गत गंगा के किनारे स्थित शहरों में सीवर व्यवस्था को दुरुस्त करने, उद्योगों द्वारा बहाये जा रहे अपशिष्ट पदार्थों के निस्तारण के लिये शोधन संयंत्र लगाने, गंगा तटों पर वृक्षारोपण, जैव विविधता को बचाने, गंगा घाटों की सफाई के लिये काम तो बहुत हुआ लेकिन अपेक्षित परिणाम सामने नहीं आए हैं। जो हमें बताता है कि जब तक समाज में जागरूकता नहीं आएगी और नागरिक अपनी ज़िम्मेदारी का अहसास नहीं करेंगे, गंगा नदी प्रदूषित ही रहेगी। सिर्फ सरकारी प्रयास काफी नहीं हैं। दरअसल लगातार बढ़ती जनसंख्या का दबाव और गंगा तट पर स्थित शहरों में योजनाबद्ध ढंग से जल निकासी व सीवरेज व्यवस्था को अंजाम न दिये जाने से समस्या विकट हुई है।

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