दिल्ली : प्रदूषण रोकने हेतु उचित योजना एवं इच्छा शक्ति की ज़रूरत
यह बात सिद्ध हो चुकी है कि लगभग बीस लाख लोग हर साल प्रदूषण के कारण मौत की नींद सो जाते हैं। दिल्ली यानी एनसीआर में बाईस लाख बच्चों के फेफड़े वायु प्रदूषण से खराब हो रहे हैं। सात करोड़ लोगों की आयु प्रति वर्ष सात साल कम हो रही है। जो बीमारियां बुढ़ापे में हुआ करती थीं, अब जवानी में होने लगी हैं। मस्ती हवा हवाई हुई और बस ज़िंदा रहने हेतु संघर्ष जारी है। जब तक वायु प्रदूषण कम होता है, हफ्तों महीनों तक सिरदर्द, सर्दी जुकाम लगा ही रहता है।
वायु प्रदूषण की दास्तान
दिल्ली एनसीआर में वायु प्रदूषण का इतिहास ज़्यादा पुराना नहीं है। ऐसे दिन नसीब थे कि सुबह शाम की सैर, दिन में भरपूर मेहनत के बाद भी तरोताज़ा और खुशमिज़ाज तबियत, परिवार के साथ बैठकर आंगन हो या बरामदा, सुख-दुख बांटने का मज़ा और बड़ी से बड़ी समस्या का हल चुटकियों में निकालने की तरकीबें तुरंत दिमाग में आने लगती थीं।
इस क्षेत्र के लोगों को याद होगा कि नब्बे के दशक में इसे टॉक्सिक हेल यानी विषाक्त नर्क कहा जाने लगा था। इसकी आहट अस्सी के दशक से सुनाई देने लगी थी। उस समय के विशेषज्ञों और जनता के प्रतिनिधियों ने सरकार को सचेत करने का काम किया कि अगर तुरंत कार्रवाई नहीं हुई तो फिर भविष्य में होने वाली दिखाई दे रही बर्बादी को रोकना नामुमकिन हो जाएगा। इस चेतावनी का असर यह हुआ कि नब्बे के दशक में वायु कानून, पर्यावरण अधिनियम, केंद्र तथा राज्यों में प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड अस्तित्व में आ गये, परन्तु हालात गम्भीर हो रहे थे और तब उच्चतम न्यायालय ने दिल्ली सरकार को आदेश दिया कि वायु प्रदूषण रोकने की योजना बना कर दे। इधर-उधर से आंकड़े जुटाकर और बातें बनाने की कला का प्रदर्शन करते हुए योजना बनाई। अमल करना इसलिए संभव नहीं था क्योंकि उसमें जनता का साथ सहयोग लेने की कोई बात ही नहीं थी। शेख चिल्ली जैसे वादों को निभाया ही नहीं जा सकता था। सरकार जो भी करे, जनता पर भारी पड़े।
जनवरी 1998 में भारत सरकार ने भारी भरकम पर्यावरण प्रदूषण नियंत्रण प्राधिकरण गठित कर दिया और राष्ट्रीय स्तर पर वायु की गुणवत्ता पर निगरानी रखने का कार्यक्रम बनाया। सुप्रीम कोर्ट को योजना बनाकर दी कि दो साल में वायु प्रदूषण को नेस्तनाबूद कर दिया जाएगा। अब क्योंकि प्रदूषण की जड़ ख़त्म करना नहीं बल्कि पत्तों की सफाई कर देने भर से इस विकराल समस्या का हल ढूंढने की कोशिश की गई थी तो सब कुछ टाय-टाय फिस्स तो होना ही था। सरकार की अदूरदर्शिता के कारण धुआं उगलते वाहनों की संख्या में ज़बरदस्त तेज़ी आई, पराली जलाने का कोई विकल्प किसानों को देने की पहल नहीं हुई, रिहायशी, व्यावसायिक और औद्योगिक बहुमंज़िला इमारतों का निर्माण करते समय प्रदूषण नियंत्रण की कोई एडवाइजरी नहीं थी जिस पर अमल किया जा सके। ऐसा कुछ नहीं हुआ। विकास के नाम पर खेत खलिहान पर सरकारी कब्ज़ा और वनों का विनाश करने की नीति पर कदम ताल होने लगी।
जो किया उसका परिणाम
कह सकते हैं कि पहला चरण बुरी तरह असफल हुआ। उसके बाद सन् 2010 से सरकारी तीरंदाज़ों ने ऐसी प्लानिंग की और जिसके अंतर्गत दावा किया कि अरे दिल्ली और एनसीआर में रहने वाले लोगों, हमने सन् 2025 तक और उसके बाद का भी प्लान बना लिया है। हर हाल में आपके जीवन में वायु विष घुलने नहीं दिया जाएगा। वाहन टेक्नोलॉजी से लेकर प्रदूषण की श्रेणियां बना दीं और उन्हें नीला, गुलाबी, संतरी और लाल रंग देकर निशानदेही कर दी। अब क्योंकि सरकार अपने चेहरे की धूल साफ करने के बजाय आईने को पोंछती रही थी। इसलिए अक्तूबर 2016 में इतने धुएं का सामना करना पड़ा कि जनता त्राहि-त्राहि कर उठी। इससे निबटने के लिए बचकाने उपाय किए गए जैसे गाड़ियां नंबर प्लेट के हिसाब से एक दिन इधर और एक दिन उधर से चलेंगी। पार्किंग फीस बढ़ा दी जबकि पार्किंग स्लॉट ही नहीं थे। प्रदूषण की नाकाबंदी करने के लिए आठ हॉटस्पॉट भी बना दिये। भूल गए कि प्रकृति के निज़ाम में हस्तक्षेप करने का क्या परिणाम हो सकता है।
इसी के साथ दिल की धड़कनें बढ़ने और उसकी धौंकनी फूलने से बच जाएगी। खांसी, सीने में जकड़न और ज़रा दूर चलते ही सांस भरने नहीं लगेगी। श्वास रोग, अस्थमा, फेफड़ों का कैंसर जो बिना सिग्रेट पिये होता है, नहीं होने पाएगा। असमय मृत्यु और हार्ट अटैक होने का तो प्रश्न ही नहीं उठता। सब कुछ तो बंद कर रहे हैं, चाहे स्कूल हो या दफ्तर, घर बैठकर पढ़ाई करो और दफतर का काम भी, यह सब करना और कहना कितना आसान है?
जो किया जाना चाहिए
कहते हैं कि सब दिन एक समान नहीं रहते। अगर उपाय सही हों तो मंज़िल मिल ही जाती हैं। दुनिया के सब से अधिक प्रदूषित कहे जाने वाले शहर जैसे बीजिंग के भी उदाहरण हैं जहां दीर्घकालीन योजनाओं की बदौलत आज सुखदायी वातावरण और सुरक्षित पर्यावरण है। एक सलाह है कि अगर अभी से एनसीआर की बाउंड्री को ऊंचे और स्वच्छ वायु देने वाले पेड़ों से ढांपकर एक वन प्रदेश बनाने की नीति बने तो कारगर हो सकती है। वाहनों की संख्या नियंत्रित करना और धुआं उगलती बसों को बदलना होगा। वैकल्पिक ऊर्जा के स्रोत जैसे हाइड्रो पॉवर, सोलर एनर्जी, विंड मिल संयंत्र इमरजेंसी की तरह स्थापित करने होंगे। प्रत्येक उद्योग के लिए शर्त कि उसके यहां प्रदूषण रोकने के यंत्र लगाना अनिवार्य है। बिजली का उत्पादन थर्मल पॉवर प्लांट से करना बंद कर गैर-पारम्परिक स्रोतों से करना होगा। यह बिजली इतनी सस्ती हो कि इसका इस्तेमाल अनिवार्य किया जा सके। अगर सरकार इतना ही कर दे तो एनसीआर में रहने वालों का जीवन जीने योग्य बन सकता है।