देश के किसानों के हित में होगा अटारी-वाघा से व्यापार खोलना
दुश्मनी लाख सही खत्म ना कीजै रिश्ता,
दिल मिले या ना मिले हाथ मिलाते रहीये।
-निदा फाज़ली
चाहे अभी भी भारत-पाक संबंधों के बीच का पानी बर्फ की भांति जमा हुआ है, परन्तु फिर भी पाकिस्तान में इमरान खान की सरकार के पतन के बाद शहबाज़ शरीफ की सरकार के आने के बाद स्थिति में सुधार के आसार बनते प्रतीत होते हैं। पहले उनके बड़े भाई नवाज़ शरीफ की सरकार के समय तो 2015 में भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने स्वयं अचानक पाकिस्तान जाकर भारत-पाक संबंध सुधारने की पहल की थी, परन्तु पाकिस्तान की आंतरिक राजनीति तथा सेना की धक्केशाही के कारण हालात और बिगड़ते गए, परन्तु अब जब भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर अक्तूबर, 2024 में शंघाई सहयोग संगठन की बैठक में शामिल होने के लिए पाकिस्तान गये तो भारत-पाक संबंधों की जड़ता टूटने के आसार बनते प्रतीत होते हैं। उस समय पूर्व प्रधानमंत्री तथा वर्तमान प्रधानमंत्री के भाई नवाज़ शरीफ ने कहा था, ‘पाकिस्तान भारत के साथ बेहतर संबंध चाहता है। शंघाई सहयोग सम्मेलन में यदि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी आते तो अधिक अच्छा होता, उन्हें जल्दी भी निमंत्रण भेजेंगे।’ नवाज़ शरीफ ने यह भी कहा कि ‘व्यापार एक ऐसा मुद्दा है जो दोनों देशों में शुरू हो सकता है जैसे एक राज्य का दूसरे राज्य से कारोबार होता है, उसी तरह भारत-पाकिस्तान में व्यापार शुरू हो सकता है। अब अमृतसर का सामान दुबई होकर पाकिस्तान पहुंचता है जबकि यह दूरी महज़ 2 घंटे में पूरी की जा सकती है। ऐसी शुरआत होनी चाहिए।’ इससे पहले नवाज़ शरीफ ने एक साक्षात्कार में साफ तौर पर कारगिल युद्ध के लिए पाकिस्तान की गलती भी मानी थी। उन्होंने कहा था, ‘युद्ध पाकिस्तान की वजह से हुआ था, इसमें पूरी तरह से पाकिस्तान की गलती थी, नवाज़ शरीफ ने माना था कि पाकिस्तान ने लाहौर समझौते का उल्लंघन करते हुए भारत के साथ वादा तोड़ा था।’
हालांकि भारत में यह आम धारणा है कि पाकिस्तान हमारा दुश्मन देश है, उसके साथ व्यापार भी नहीं करना चाहिए, परन्तु कभी किसी ने सोचा है कि चीन पाकिस्तान से कहीं बड़ा तथा खतरनाक दुश्मन है। चीन से व्यापार चाहे हमारे देश की मजबूरी है, परन्तु प्रत्येक वर्ष लगातार बढ़ता यह व्यापार भारत के लिए व्यापारिक घाटे का सौदा भी बनता जा रहा है। नि:संदेह ‘जियो-पालिटिक्स’ के कारण तथा ब्रिक्स के दबाव के अधीन चीन भारत के साथ सीमाओं पर तनाव कम करने के लिए तथा हमारे कुछ क्षेत्रों से पीछे हटने के लिए मजबूर हुआ है, परन्तु अभी उसकी भारत के एक पूरे राज्य पर बुरी नज़र है। उसने भारत के 26 प्रमुख स्थानों के नाम तक बदलने की हिमाकत की है। संयुक्त राष्ट्र संघ में वह लगातार भारत के विरोध में ही खड़ा होता है, परन्तु इस सब के बावजूद भारत ने वर्ष 2022-23 में चीन के साथ 135.98 अरब डालर का व्यापार किया, जिसमें से भारत ने सिर्फ 17.48 अरब डालर का सामान ही चीन को भेजा, जबकि भारत का चीन से व्यापार घाटा 100 अरब डालर से भी अधिक हो गया है। 2024-25 की पहली छमाही में ही भारत चीन से 56.3 बिलियन डालर अर्थात 4 लाख, 74 हज़ार करोड़ रुपये से अधिक का सामान मंगवा चुका है परन्तु इसके विपरीत हमने चीन को सिर्फ 58 हज़ार, 160 करोड़ रुपये का सामान ही भेजा है। यह भी तब है जब भारत ने चीन से आयात कम करने के लिए कई प्रकार की एंटी डम्पिग ड्यूटियां (कर) भी लगाई हुई हैं। परन्तु इसके विपरीत चाहे इस समय पाकिस्तान के साथ हमारा व्यापार बहुत कम है, परन्तु यदि इस पर पाबंदियां न हों और यह पंजाब की सीमा से सड़क के रास्ते किया जाए तो एक अनुमान के अनुसार यह 100 गुणा अधिक हो सकता है। यह रास्ता अफगानिस्तान तथा ईरान तक व्यापार तथा यहां तक यूरोप तक के लिए बढ़िया रास्ता हो सकता है। भारत भूषण पंत के शब्दों में :
अंधेरा मिटता नहीं मिटाना पड़ता है,
बुझे चिराग को फिर से जलाना पड़ता है।
मरियम नवाज़ तथा अरोड़ा का पंजाबी प्रेम
इसमें कोई संदेह नहीं कि पाकिस्तानी सेना तथा आई.एस.आई. के मंसूबों के बावजूद शरीफ भाई भारत के साथ अच्छे संबंधों के समर्थक हैं। उनकी बेटी मरियम नवाज़ शरीफ जो पंजाब की मौजूदा मुख्यमंत्री हैं, तो पंजाबी तथा पंजाबियत की समर्थक मानी जाती हैं। इसमें पाकिस्तानी पंजाब के मंत्री रमेश सिंह अरोड़ा का प्रभाव भी साफ दिखाई देता है। मरियम नवाज़ ने पाकिस्तानी पंजाब के स्कूलों में पंजाबी की प्राथमिक शिक्षा अनिवार्य करवाने संबंधी असैम्बली से प्रस्ताव पारित करवाया है। वह अपने अधिकतर भाषण भी पंजाबी में देती हैं। पाकिस्तान द्वारा विदेश में रहते पंजाबियों तथा सिखों को गुरुद्वारों के दर्शनों के लिए वीज़ा फ्री दाखिला भी दिया जा रहा है। यह ठीक है कि इसके पीछे उनका मकसद पर्यटन के माध्यम से पैसा कमाना भी है, परन्तु यह भी नोट करने वाली बात है कि अब पाकिस्तान में गुरुद्वारों को भारत विरोधी प्रचार के लिए इस्तेमाल नहीं किया जा रहा। इस बार साहिब श्री गुरु नानक देव जी के प्रकाश पर्व पर संगत का बेमिसाल इकट्ठ था। यह स्पष्ट नज़र आया कि वे सिखों तथा पंजाबियों के प्रति विशेष सम्मान दिखा रहे हैं, परन्तु यह भी साफ था कि इस बार वहां भारत विरोधी प्रचार या खालिस्तान पक्षीय प्रचार को बहुत हवा नहीं दी गई। पाकिस्तान में विश्व स्तर की ननकाना साहिब यूनिवर्सिटी का निर्माण ज़ोरों पर है। इसके 2500 एकड़ में फैले होने के आसार हैं। पंजाब के मंत्री रमेश सिंह अरोड़ा की पहल पर पाकिस्तानी पंजाब विश्व का पहला प्रदेश बन गया है, जहां सिख विवाह एक्ट पूरी तरह लागू हो चुका है। हिन्दू विवाह एक्ट बन रहा है। कई अन्य गुरुद्वारों की कायाकल्प करके उन्हें दर्शनों के लिए खोला जा रहा है। हम समझते हैं कि यदि पंजाबियों में निकटता आएगी तो यह दोनों देशों के संबंध सुधारने में भी सहायक होगी और पंजाबी संस्कृति भी प्रफुल्लित होगी। दोनों देशों में हथियारों की दौड़ रुकेगी, खुशहाली बढ़ेगी तथा पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों पर होता ज़ुल्म भी रुकेगा।
हरियाणा भाजपा सरकार का धन्यवाद
इन कालमों में भाजपा सरकार द्वारा पंजाबी, पंजाबियत तथा सिखों से किए जाते अन्याय का ज़िक्र भी बहुत बार किया गया है, परन्तु उनकी ओर से किये अच्छे कार्यों की प्रशंसा करने में भी कभी कोई कसर नहीं छोड़ी गई। अब हरियाणा की भाजपा सरकार का यह फैसला सुचमुच ही बहुत प्रशंसनीय है, जिसके माध्यम से हरियाणा में जंगल की ज़मीन को पंजाबियों तथा सिखों की ओर से उपजाऊ बनाए जाने के बाद उनको उजाड़े जाने का भय सदा के लिए खत्म कर देने का प्रबंध किया गया है। इसके साथ हरियाणा में लगभग 68 हज़ार लोगों को 38 हज़ार एकड़ ज़मीन की मालिकी मिल जाएगी।
वास्तव में 1952 में उस समय के मुख्यमंत्री प्रताप सिंह कैरों ने संयुक्त पंजाब में पिहोवा तथा अन्य क्षेत्रों में जंगली ज़मीन जिस पर निजी गैर-आबाद, सरकारी तथा शामलाट ज़मीनें शामिल थीं, को कृषि योग्य बनाने के लिए 20-20 वर्षों के पट्टे पर पंजाबी किसानों को दी थीं, परन्तु पंजाबी तथा सिख किसानों द्वारा विशेष तौर पर ‘पंजाबी सूबे’ के पक्ष में जाने के कारण बंसी लाल सरकार उन्हें सबक सिखाने पर उतर आई। दूसरी ओर ज़मीन की कीमत बढ़ने के कारण शामलाट ज़मीनों के असल मालिक भी ज़मीनें वापिस मांगने लगे। पंजाबियों से ज़मीनें छुड़वाने की कोशिशें शुरू हो गईं। पंजाबी किसान अदालतों में गए परन्तु लगातार हारते रहे। यह लड़ाई लड़ने तथा जीतने वाली अबादकार पट्टेदार किसान कल्याण समिति के अध्यक्ष हरपाल सिंह गिल जो हरियाणा पंजाबी साहित्य अकादमी के डायरैक्टर भी हैं, ने बताया कि इस लड़ाई में पहला बड़ा समर्थन पूर्व राज्यसभा सदस्य तरलोचन सिंह से मिला, जिन्होंने 2012 में गुरुद्वारा कड़ा साहिब में हमारे पक्ष में एक बड़ी कांफ्रैंस करवाई। इस लड़ाई में शिरोमणि कमेटी की ओर से अध्यक्ष अवतार सिंह मक्कड़, दिल्ली गुरुद्वारा कमेटी के तत्कालीन अध्यक्ष तथा महासचिव मनजीत सिंह जी. के., मनजिन्दर सिंह सिरसा, प्रो. प्रेम सिंह चन्दूमाजरा तथा कुछ अन्य नेताओं के सक्रिय समर्थन से तत्कालीन मुख्यमंत्री भूपेन्द्र सिंह हुड्डा ने किसानों को ये ज़मीनें 99 वर्ष लीज़ पर देने का फैसला किया, जो अदालती स्टे के कारण पूरा नहीं हुआ, परन्तु बाद में मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने किसानों को इस ज़मीन की मालिकी नाममात्र मूल्य पर देने का फैसला लिया, जिसे मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी ने कानून बना कर पूर्ण किया। इस फैसले के लिए भाजपा के मुख्यमंत्रियों का सम्मान एवं धन्यवाद करना ज़रूरी है।
ठोकर से दूसरों को बचाने का शुक्रिया,
पत्थर को रास्ते से हटाने का शुक्रिया।
(़खालिद महमूद)
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