कितनी आवश्यक है बच्चों की ट्यूशन

एक समय था जब केवल पढ़ाई में कमजोर छात्रों को ही ट्यूशन लगवाई जाती थी और ट्यूशन देने वाले अध्यापकों और ट्यूशन लेने वाले छात्रों को हेय दृष्टि से देखा जाता था किंतु आज समय बिलकुल बदल चुका है। ट्यूशनों और ट्यूशनों ने एक बहुत बड़े व्यवसाय का रूप ले लिया है जहां इस धंधे में लगे लोग हजारों नहीं बल्कि लाखों कमा रहे हैं। 
आज योग्यतम बच्चों के लिए भी ट्यूशन पढ़ना अनिवार्य हो गया है क्योंकि यह प्रतियोगिता का युग है। मां-बाप बच्चों की सफलता निश्चित करने हेतु कोई कसर नहीं छोड़ना चाहते परंतु कुछ शिक्षा प्रणाली भी इस तरह से सख्त हो गई है कि अधिकतर मां बाप को मजबूरी समझ कर भी बच्चों की ट्यूशन रखनी पड़ती है।
स्कूल में अध्यापकों का नजरिया भी ऐसा हो गया है कि एक बार पढ़ाने पर सभी बच्चे उसे समझ लें। पुन: कुछ समझाने में उन्हें कष्ट होता है। हमारे देश की शिक्षा प्रणाली भी ऐसी है कि न तो समय पर पाठ्य पुस्तकों का पुनरीक्षण होता है, न ही समयानुसार उनमें कोई परिवर्तन किए जाते हैं। पब्लिक स्कूलों में अनिवार्य पाठ्य पुस्तकों के अलावा अन्य कई पुस्तकें जोड़ दी जाती हैं। स्कूलों के अनुसार इससे बच्चों में एक्स्ट्रा रीडिंग का शौक पैदा होता है। इस प्रकार बच्चों के कंधों पर पुस्तकों का बोझ बढ़ता ही जा रहा है। इन सब बातों को देखते हुए ट्यूशन का बोझ तभी आवश्यक है जब बच्चा किसी विषय को अच्छी तरह से समझ न पा रहा हो। बाकी विषय उसके अच्छे हों तो उसके सर्वांगीण विकास हेतु उस बच्चे को ट्यूशन पढ़ाना आवश्यक है या जो मां बाप पढ़े लिखे तो हैं, व्यस्तता के कारण बच्चों को उचित समय नहीं दे सकते और बच्चे शिक्षा में पिछड़ न जायें, उन बच्चों के लिए भी मार्गदर्शक की आवश्यकता होती है। कितनी भी व्यस्त जिंदगी हो, माता पिता को बच्चों की शिक्षा के लिए उनके सम्पर्क में रहना आवश्यक है। स्कूली अध्यापकों को भी कठिन विषयों पर अधिक समय देकर आसान तरीकों से समझाना चाहिए। आवश्यकता होने पर ट्यूशन का सहारा लेने से कतरायें नहीं पर बच्चों को ट्यूशन का इतना आदी न बनाएं। बच्चे को आत्मनिर्भर रहना सिखाएं और उन्हें समझाएं कि वे अध्यापक से अपनी मुश्किलों को ही हल करवाएं। (उर्वशी)

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