लक्ष्मी जी मेहरबान नेता जी परेशान

स्वयंभू काला अक्षर भैंस बराबर था इसलिए उसके पास काम धाम तो था नहीं, खाली मगज मारी करता रहता था, लेकिन एक बात थी जो उसमें कूट-कूट कर भरी हुई थी। वो यह कि स्वयंभू घुमा फिरा के गोल गोल बातें करने में माहिर था। जब बोलता था तो लोग अनायास ही चुम्बक की भांति उसकी तरफ खिंचे चले आते थे। उसमें जोश और जज्बे की भी कोई कमी नहीं थी। गांव में जब भी कोई समारोह होता तो गांव वाले उसे आगे खड़ा कर देते। वो अपने जोशीले और ओजपूर्ण भाषण से सबको एक सूत्र में बांध लेता था। अपनी इसी वाकपटुता के कारण उसने ऊंचे-ऊंचे लोगों के बीच अपनी पैठ बना ली थी। एक दिन उससे किसी ने कहा कि तुम्हारा ऊंचे-ऊंचे लोगों के बीच उठना बैठना है। तुम बोलने की कला में भी निपुण हो तो फिर तुम क्यों नहीं राजनीति में घुस जाते। बात मान लो तो एक दिन तुम राजनीति में खूब फलोगे फूलोगे। स्वयंभू को ये बात जंच गई और वो राजनीति में कूद गया। उसने अपनी गुणा गणित लगाकर एक नामी गिरामी पार्टी ज्वाइन कर ली। फिर धीरे-धीरे चाटुकारिता के बल पर पार्टी का अध्यक्ष और फिर सांसद बन गया। 
स्वयंभू जी अब नेता बन चुके थे सादे लिबास में हमेशा धोती कुर्ता पहनते और सिर पर सफेद टोपी धारण किए रहते थे। सब लोग उन्हें नेता जी कह कर उनके आगे पीछे लगे रहते थे। नेता जी की किस्मत अब रंग दिखा रही थी। पग पग पर उनका साथ भी दे रही थी। बिल्कुल पक्की सहेली की तरह। देखते ही देखते नेता जी मंत्री बन गए, मन चाहा विभाग भी मिल गया। अब तो नेता जी की चांदी ही चांदी। नेता जी की ज़िन्दगी पटरी पर आ गई और सरपट दौड़ने लगी बुलेटिन की तरह। लक्ष्मी जी नेता जी पर मेहरबान हो गईं और रुपयों की बरसात करने लगीं। नेता जी भी घर आई लक्ष्मी को बहुत प्रेम से संभाल रहे थे। घर में जितने सदस्य नहीं थे उससे ज्यादा तो नेता जी ने देश-विदेश सब जगह खाते खुलवा लिए हर खाता करोड़ों रुपए से भर गया। घर में पल रहे कुत्ते बिल्ली भी करोड़ों के मालिक हो गये थे। घर से लेकर विदेश तक के लाकर सोने चांदी हीरे जवाहरात से भर गये। दर्जनों फार्म हाउस आलीशान बंगले के मालिक बन गये नेता जी। घर के बाहर एक से एक मोटर गाड़ियों की लाइन लगा दी थी नेता जी ने। लक्ष्मी जी भी घनघोर नेता जी के घर बरसती जा रही थीं। घर का कोई कोना नहीं बचा था यहां तक कि रजाई गद्दा तकिया सोफा बिस्तर सब में रुपया ठुंस ठुंस कर भर दिया था। जमीन से लेकर घर की दीवारों तक में पैसे गाड़ दिए। जहां जहां नेता जी छुपा के रख सकते थे रख दिए। अब तो उनके दूर-दूर तक के नाते रिश्तेदार भी करोड़पति हो गये। 
नेता जी बेशुमार दौलत के मालिक हो गये। सात पीढ़ियां ठाठ से बैठ के खा सकें इतना तो इंतजाम नेता जी कर दिए थे। नेता जी की अब चैन से कट रही थी। लेकिन बेशुमार दौलत हो जाने से नेता जी का चैन अब बेचैन रहने लगा। जैसे लक्ष्मी जी बरस रही थी वैसे ही अब उनकी टेंशन भी बढ़ने लगी उन्हें जांच एजेंसियों का डर सताने लगा था। नेता जी की मुस्कुराहट गायब हो गई चेहरे की रौनक फीकी पड़ने लगी। नेता जी अब परेशान रहने लगे थे। लक्ष्मी को संभालना अब नेता जी के लिए मुश्किल हो रहा था, लेकिन लक्ष्मी जी अपनी कृपा बरसाना बंद ही नहीं कर रही थीं। नेता जी ऐसा सुनहरा मौका छोड़ कैसे देते।
एक दिन लक्ष्मी जी नेता जी के सपने में आईं और नेता जी से बोलीं : वत्स उठो! उठो वत्स! मेरी कृपा की तुम पर घनघोर बरसात हो रही है, फिर तुम क्यों परेशान हो रहे हो? क्यों तुम्हारा चेहरा मुरझाया और लटका हुआ है? तुम प्रसन्न क्यों नहीं रहते?
नेता जी ने हाथ जोड़कर लक्ष्मी जी का अभिवादन किया और बोले- हे लक्ष्मी माता आपकी कृपा की तो मुझ पर मूसलाधार बरसात हो रही है। इसमें कोई शक नहीं है। देश विदेश से लेकर मेरे घर का कोना कोना खचाखच रुपए पैसों से भर गया है। सात पीढ़ियां आराम से बैठ कर खा सकती हैं।
लक्ष्मी जी बोली,ं फिर तुम्हारी परेशानी क्या है?  
नेता जी बोले, माता मेरे पास देश-दुनिया के बारे में सोचने के लिए समय ही नहीं है। कौन मर रहा है? कौन कट रहा है? कहां दंगा फसाद हो रहा है? कहां आग लग रही है? कितने भूखे हैं? कितने बेरोज़गार हैं? मुझे इससे क्या मतलब। मैं तो रात दिन यही सोचता रहता हूं कि अब और कहां और लक्ष्मी कैसे कैसे को छुपाऊं? जांच एजेंसियां मुझ पर शक न करें इसलिए मैं आम आदमी की तरह फटेहाल रहता हूं सादगी से। कृपया मेरा मार्गदर्शन करें। लक्ष्मी जी ने कहा, वत्स मेरा काम तो सिर्फ कृपा बरसाना है। जब तक तुम्हारे भाग्य में हूं, बरसती रहूंगी। यह कह कर लक्ष्मी जी अन्तर्ध्यान हो गईं। नेता जी की परेशानी जस की तस बनी रह गई।

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