शुभ कार्यों हेतु क्यों की जाती है शंख-ध्वनि ?

उत्सव, पर्व, पूजा-पाठ, हवन, मंगल ध्वनि, विवाह और आरती जैसे अवसरों पर शंख ध्वनि का पौराणिक महत्त्व है। शंख को विजय, समृद्धि, यश और शुभता का प्रतीक माना गया है। सतयुग, त्रोता और द्वापर युगों से जुड़े प्रसंगों में भी अनेक बार शंखनाद का उल्लेख मिलता है। शंख ध्वनि की यह परंपरा आज भी समाज में पूजा-पाठ, हवन, यज्ञ और आरती के अवसरों पर महत्त्वपूर्ण मानी जाती है। 
पवित्रता का प्रतीक : पुराणों के अनुसार शंख देवी लक्ष्मी का सहोदर एवं भगवान विष्णु का प्रिय है। जहां शंख होगा, वहीं लक्ष्मी का निवास अवश्य होगा। देवी लक्ष्मी ने स्वयं विष्णु भगवान के सामने स्वीकार किया था - 
व सामि पद्मोत्पल शंख मध्ये
व सामि चंद्रे च महेश्वरे च। 
यानी ‘मैं पद्म, उत्पल, शंख, चंद्रमा और शिवजी में निवास करती हूं।‘
अशुभ कब : घर में या पूजा घर में दो शंख रखना अशुभ होता है। या तो एक शंख हो या फिर दो से अधिक, वह भी विषम संख्या (3, 7, 9 आदि) में। 
शुभ आकार : ज्यादातर शंख वामवर्ती होते हैं। इनका पेट बाईं दिशा में खुलता है तथा मुंह से पेट की ओर चलने वाली परतें बाईं तरफ घूमती हैं। तंत्र शास्त्र में इसकी अपेक्षा दक्षिणावर्ती शंख को विशेष महत्त्व दिया गया है। इस शंख में मुंह से पेट की ओर जाने वाली परतों का घुमाव दाईं ओर होता है। मान्यता है कि दक्षिणावर्ती शंख बहुत शुभ, श्री समृद्धि और वैभवकारी होता है। दक्षिणावर्ती शंख मिलना आसान नहीं। यह दुनियां के बहुत कम स्थानों पर ही पाया जाता है और दुर्लभता के कारण इसकी कीमत भी अधिक होती है।
शुभ रंग : सबसे अधिक शुभ श्वेत शंख को माना जाता है। आमतौर पर शंख लाल, पीला, काला तथा श्वेत के साथ अन्य रंग की धारियों वाले होते हैं। 
उत्पत्ति : समुद्र मंथन के समय चौदह रत्नों में शंख भी एक रत्न के रूप में निकला था। वैसे भी शंख की उत्पत्ति जल से ही होती है। जल ही जीवन का आधार है। सृष्टि की उत्पत्ति भी जल से हुई, इसलिए शंख की हर तरह से पवित्रता है। 
शंख की प्रार्थना : पूजा के आरंभ में शंखमुद्रा से शंख की प्रार्थना की जाती है। उसके लिए मंत्र पढ़ा जाता है - 
त्वं पुरा सागरोत्पन्नो विष्णुना विधृत: करे।
नमित: सर्वदेवैश्च पांचजन्य नमोस्तुते।
महत्त्व : शंख ध्वनि का तन-मन पर प्रभाव पड़ता है। बर्लिन विश्वविद्यालय द्वारा किए गए एक शोध के अनुसार शंख ध्वनि से विषाणु नष्ट होते हैं। 
शंख अपवित्र कब होता है : शंख का स्थान पूजाघर और उपयोग पूजा-आरती तथा शुभ संस्कारों के समय फलदायक होता है। शंख अपवित्र होता है -
* किसी भी कारण से टूटने-फूटने पर।
* दरार या चटक जाने पर।
* जो शंख बजता न हो।
* बजाते समय हाथ से छूटकर गिर गया हो।
* ध्वनि में भिन्नता आने पर।
* सुंदर रूपाकार न हो। 
इसके अलावा शंख किसी भी जगह से बिल्कुल टूटा नहीं होना चाहिए। यदि उसके किनारे कहीं से चटके हों, तो उन्हें रेतकर ठीक कर लें अन्यथा उसे नदी, तालाब में प्रवाहित कर दें। (उर्वशी)

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