अविस्मरणीय एहसास से भर देता है कोणार्क का रेत कला महोत्सव
यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर स्थल घोषित कोणार्क का सूर्य मंदिर अपनी वास्तुकला और धार्मिक कला महोत्सव के आयोजन के लिए पूरी दुनिया में विख्यात है। साथ ही यह स्थान ओडिशा की समृद्ध नृत्य, संगीत और मूर्ति कला का केंद्र भी है। यहां के चंद्रभाग समुद्र तट पर, जहां कार्तिक पूर्णिमा पर विशेष स्नान की परम्परा है, वहीं यह समुद्र तट ओडिशा के रेत कला महोत्सव के ज़रिये दुनिया के हर सांस्कृतिक पर्यटक का पसंदीदा स्थल है। कार्तिक पूर्णिमा के साथ ही ओडिशा में कला और संस्कृति की एक समूची श्रृंखला जीवंत हो उठती है। पूरी सर्दियां यहां देश विदेश के सैलानियों की भरमार रहती है और उसी दौरान ओडिशा में मोहक सांस्कृतिक गहमागहमी भी रहती है। इन जीवंत कला महोत्सवों के जरिये ओडिशा का एक ऐसा अद्वितीय सांस्कृतिक रूप निखरकर सामने आता है, जो दुनिया भर के सांस्कृतिक पर्यटकों को अपनी तरफ खींचता है।
इस श्रृंखला का सबसे महत्वपूर्ण आयोजन कोणार्क का रेत कला महोत्सव है। ओडिशा पर्यटन विभाग द्वारा हर साल आयोजित होने वाला यह महोत्सव, इस साल भी पिछले दिनों मनाया गया। कोणार्क के इस विश्व प्रसिद्ध महोत्सव का आनंद लेने के लिए देश विदेश के लाखों पर्यटक, इस दौरान यहां पहुंचते हैं। इस सांस्कृतिक महोत्सव में सिर्फ ओडिसी शास्त्रीय नृत्य का प्रदर्शन नहीं होता बल्कि 13वीं शताब्दी के इस सूर्य मंदिर की लुभावनी पृष्ठभूमि में समूचे भारत के शास्त्रीय नृत्याें के प्रदर्शन की छटा बिखरती है। यह महोत्सव अपने अलौकिक और अविस्मरणीय एहसास के लिए जाना जाता है। 5 दिनों तक चलने वाले इस महोत्सव में देशभर के कलाकार अपनी कला का उत्कृष्ट प्रदर्शन करते हैं।
इस दौरान यहां ओडिसी, भरतनाट्यम, कत्थक, कुचिपुड़ी, मणिपुरी और मोहिनीअट्टम जैसे सांस्कृतिक नृत्य प्रस्तुत किए जाते हैं। इनमें हर प्रस्तुति दर्शकों को अपने नशे में डुबो देती है। भक्ति, प्रेम और कालातीत पौराणिक कथाओं पर सजी ये प्रस्तुतियां जब नरम और सुनहरी रोशनी से जगमगाते खुले मंच पर प्रस्तुत की जाती हैं तो लगता है इंद्र की अलकापुरी वास्तव में यहीं होगी। इस साल के कोणार्क कला महोत्सव में सिर्फ भारत के ही नहीं, अमरीका के असाधारण सांस्कृतिक कलाकारों ने भी हिस्सेदारी की हाल के सालों में इस महोत्सव ने जिस एक और वजह से दुनिया भर के सैलानियों को अपनी तरफ आकर्षित किया है, वह है रेत कला की प्रस्तुति।
जिस तरह कलाकार किसी भी विषय पर रेत की बिल्कुल जीवंत मूर्तियां बनाते हैं, वैसा पूरी दुनिया में और कहीं देखने को नहीं मिलता। इस रेत कला ने पूरी दुनिया में रेत कला के विकास को प्रोत्साहित किया है। सच बात यह है कि सालों से अपनी मोहक नृत्य प्रस्तुतियों के लिए विख्यात कोणार्क कला महोत्सव जितना नृत्य प्रस्तुतियाें के लिए विख्यात है, उससे कहीं ज्यादा रेत कला प्रस्तुतियों के लिए भी लोकप्रिय है। कोणार्क के रेत कला महोत्सव का कला की दुनिया में बहुत महत्व है। यहां न सिर्फ देश के कोने कोने के नर्तक-नर्तकियां और रेत कला के कलाकार अपनी कला का उत्कृष्ट रूप प्रदर्शन के लिए एकत्रित होते हैं बल्कि अब पूरी दुनिया के कलाकार इसमें भाग लेने के लिए लालायित रहते हैं। रेत की मूर्तियों के माध्यम से समकालीन, सामाजिक, सांस्कृतिक और विशेष रूप से पर्यावरणीय संदेशों से सजा यह महोत्सव विश्व शांति, सांस्कृतिक विरासत और पर्यावरण संरक्षण जैसे विषयों को बार-बार अपनी आकर्षित करने वाली कला के माध्यम से केंद्र में लाता है। इस कला महोत्सव के जरिये कोणार्क के सांस्कृतिक और ऐतिहासिक महत्व को तो करीब से जानने का मौका मिलता ही है, यह भारत की सांस्कृतिक छवि को भी पूरे विश्व में बेहद सकारात्मकता से प्रदर्शित करता है। विदेशी सैलानियों के लिए यह महोत्सव महज ओडिशा की नहीं बल्कि समूचे भारत की समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर और रचनात्मकता का आनंद लेने का मौका देता है। ओडिशा का सूर्य मंदिर वैसे भी दुनियाभर के सैलानियों के बीच ताजमहल के जितना ही प्रसिद्ध है। कोणार्क का सूर्य मंदिर हमेशा से सैलानियों की वाच लिस्ट में सबसे ऊपर पहले तीन स्थानों में एक के रूप में दर्ज रहता है। यही वजह है कि इस डिजिटल युग में भी जब एक क्लिक में दुनियाभर की सांस्कृतिक गतिविधियों से दो चार हुआ जा सकता है, संस्कृति प्रेमी यहां दौड़े चले आते हैं। ये विश्व विरासतें पूरी दुनिया के संस्कृति प्रेमियों को न केवल आकर्षित करती हैं बल्कि ग्लोबल संवाद का जरिया बन कर भी उभरी हैं। दुनिया भर के युवा इन जगहों पर पहुंच कर सही मायनों में वैश्विक नागरिक होने का आनंद उठाते हैं।
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