डा. मनमोहन सिंह से जुड़ी कुछ यादें
डा. मनमोहन सिंह जी को याद करते हुए मैं कुछ यादें जो अदारा ‘अजीत’ से जुड़ी हुई हैं, पाठकों से साझा करना चाहता हूं। मेरी पहली मुलाकात डा. साहिब से डा. बरजिन्दर सिंह हमदर्द जी के घर हुई थी। उन्होंने श्री इन्द्र कुमार गुजराल के भारत के प्रधानमंत्री बनने की खुशी में अपने घर में रात के खाने का प्रबंध किया था। उन्हें गर्व था कि एक पंजाबी जो जालन्धर शहर का रहने वाला था, भारत का प्रधानमंत्री बना है। उन्हें बहुत गर्व था। इस पंजाबी ने पंजाब, पंजाबियत तथा जालन्धर वासियों को विश्व के नक्शे पर ला खड़ा किया था तथा बहुत गर्व प्राप्त करवाया था। उस रात पूरा जालन्धर शहर जग-मग कर रहा था। अधिकतर घरों पर रौशनी की गई थी। इस रात के खाने में श्री आई.के. गुजराल, डा. मनमोहन सिंह, पंजाब के तत्कालीन राज्यपाल छिब्बर तथा अदारा ‘अजीत’ के सभी ट्रस्टी उपस्थित थे। सुबह का नाश्ता भी डा. बरजिन्दर सिंह हमदर्द जी के घर में ही था। बातें करते हुए श्री गुजराल ने बताया कि जब कोई उम्मीदवार चुनाव लड़ता है, तो उस समय की पै्रस को पैसे देकर विज्ञापन लगवाने पड़ते हैं, परन्तु यहां विपरीत ही हुआ कि चुनावों में स. बरजिन्दर सिंह ने मेरी आर्थिख सहायता भी की।
बाद में 2005 में प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह जी ने प्रधानमंत्री के रूप में देश के कई राज्यों में सुनामी आने पर प्रधानमंत्री राहत कोष के लिए देशवासियों को विनती की तो डा. बरजिन्दर सिंह ने अदारा ‘अजीत’ की ओर से 1.30 करोड़ रुपये इस कोष के लिए इकट्ठे किये और सभी ट्रस्टियों को साथ लेकर डा. मनमोहन सिंह जी के निवास स्थान पर यह राशि उनके कोष में दी। डा. मनमोहन सिंह ने उस समय समारोह के बाद डा. बरजिन्दर सिंह के साथ अलग भी मुलाकात की और पंजाब संबंधी जानकारी प्राप्त की।
इससे भी पहले डा. मनमोहन सिंह को मिलने का मुझे एक अवसर बम्बई में मिला, जब वह रिज़र्व बैंक के गवर्नर थे। पंजाब एंड सिंध बैंक की एक बैठक बम्बई में थी। उस समय कई बैंकों की आर्थिक हालत ठीक न होने के कारण उनका अन्य बैंकों में विलय किया जा रहा था। हमें पंजाब एंड सिंध बैंक के बारे में भी ऐसा ही डर था। मैं डा. साहिब को उनके कार्यालय में मिला और बताया कि इस बैंक में अधिक पैसे पंजाबियों के हैं और यह बैंक सिखों का बैंक माना जाता है। इसके अस्तित्व को कायम रखा जाए। उन्होंने उस समय की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी जी के साथ सलाह करके पंजाब एंड सिंध बैंक के अस्तित्व को कायम रखा।
जैसे कि लिखा जा रहा है कि 10 वर्षों तक डा. साहिब दीये की रौशनी के नीचे अपनी पढ़ाई करते रहे और उनकी बेटी ने यही भी लिखा है कि जब वह उच्च शिक्षा के लिए विदेश गये थे तो पैसे की कमी के कारण दोपहर का खाना नहीं खाते थे। देश के राष्ट्रपति ज्ञानी ज़ैल सिंह के साथ उनका स्नेह था, क्योंकि वह जानते थे कि उन्होंने भी बड़ी कठिनाइयों का सामना करते हुए यह उच्च पद हासिल किया है। डा. मनमोहन सिंह 5 मई जो कि ज्ञानी जी का जन्म दिन था और 25 दिसम्बर जब वह स्वर्गवास हुए, डा. मनमोहन सिंह जी इन दोनों तारीखों पर उनकी समाधि पर अपने श्रद्धा के फूल अर्पित करने अवश्य जाते थे, चाहे वह किसी भी उच्च पद पर थे या नहीं।
ज्ञानी ज़ैल सिंह के 100वें जन्म दिन पर जो कार्यक्रम दरबार साहिब में हुआ, डा. साहिब उस में भी शामिल हुए। इस दुख के अवसर पर मैं अदारा ‘अजीत’ के सभी ट्रस्टी साहिबान, डा. बरजिन्दर सिंह हमदर्द तथा उनकी बेटियों जो अदारा ‘अजीत’ चलाने में सहायक हैं, की ओर से डा. मनमोहन सिंह जी को श्रद्धा के फूल भेंट करता हूं।
(लेखक सिविल इंजीनियर और प्रसिद्ध उद्योगपति हैं)
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