डा. मनमोहन सिंह के साथ ‘अजीत प्रकाशन समूह’ के रिश्ते को याद करते हुए

कोई भी व्यक्ति या संस्था जब कोई मीडिया संस्थान स्थापित करती है तो उस का अपने प्रांत, अपने समाज तथा अपने देश बारे एक दृष्टिकोण होता है। दूसरे अर्थों में हम कह सकते हैं कि संबंधित व्यक्ति या संबंधित संस्था अपने सपनों के एक प्रांत, समाज तथा देश का सृजन करने के लिए मीडिया को एक माध्यम के रूप में इस्तेमाल करती है या चलाती है। इसी कारण यह कहा जाता है कि लोकतांत्रिक देशों में मीडिया संस्थान अलग-अलग विचारधारा वाले स्कूलों की तरह होते हैं। इस संदर्भ में ही हम ‘अजीत प्रकाशन समूह’ के संस्थापक डा. साधु सिंह हमदर्द द्वारा की गई अदारा ‘अजीत’ की स्थापना को समझ सकते हैं। नि:संदेह उन्होंने भी ‘अजीत’ का प्रकाशन शुरू करते समय अपने सपनों के पंजाब तथा देश का सृजन करने के लिए अदारा ‘अजीत’ के कुछ उद्देश्य निर्धारित किये थे। पंजाब के प्रति अपने इस दृष्टिकोण को उन्होंने ‘पंजाब, पंजाबी तथा पंजाबियत’ का नाम दिया था। इसी प्रकार भारत देश के बारे में उनका दृष्टिकोण था कि राजनीतिक, धार्मिक, आर्थिक तथा सांस्कृतिक विभिन्ताओं वाले इस देश को चलाने के लिए तथा आगे बढ़ाने के लिए लोकतांत्रिक, धर्म-निरपेक्षता (सरबत दा भला) तथा संघीय ढांचे को निरन्तर मज़बूत बनाने की ज़रूरत है। इसके साथ ही वह अल्पसंख्यक सिख समुदाय से भी संबंधित थे। इस कारण वह पंजाब प्रांत तथा देश में सिख अल्पसंख्यकों की हितों की रक्षा के लिए भी अपनी प्रतिबद्धता रखते थे। अपने इसी विचारधारक दृष्टिकोण के अनुसार वह देश के विभाजन से पहले तथा देश के विभाजन के बाद पंजाब तथा देश के घटनाक्रमों को ‘अजीत’ में महत्व देकर प्रकाशित करते रहे और निरन्तर इन घटनाक्रमों संबंधी अपने सम्पादकीयों तथा लेखों में अपना दृष्टिकोण भी पेश करते रहे। 
1984 में उनके निधन के बाद डा. बरजिन्दर सिंह हमदर्द ने मुख्य सम्पादक के रूप में अदारा ‘अजीत’ का नेतृत्व सम्भाला तो उन्होंने भी ‘अजीत प्रकाशन समूह’ के संस्थापक डा. साधु सिंह हमदर्द जी द्वारा ‘अजीत’ के लिए निर्धारित की गई विचारधारा को और अधिक शिद्दत तथा प्रतिबद्धता से आगे बढ़ाया। इस कठिन राह पर चलते हुए समय-समय अदारा ‘अजीत’ के समकालीन सरकारों के साथ तथा अन्य राजनीतिक शक्तियों एवं श़िख्सयतों से संबंध बनते भी रहे और बिगड़ते भी रहे, परन्तु क्योंकि अदारा ‘अजीत’ की दिशा ठीक थी, इसलिए ‘अजीत’ को प्रत्येक  संघर्ष में सफलता मिलती रही और उसका काफिला भी बड़ा होता गया। धीरे-धीरे न सिर्फ पंजाबी में अपितु राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी ‘अजीत’ का प्रभाव बढ़ता गया। 1942 में ‘अजीत’ लाहौर से उर्दू में आरम्भ हुआ था। देश के विभाजन के बाद 1955 में यह उर्दू के  साथ-साथ पंजाबी में भी प्रकाशित होना शुरू हुआ। एक समय ‘अजीत’ साप्ताहिक रूप में अंग्रेज़ी में भी प्रकाशित होता रहा। 
1996 में अदारा ‘अजीत’ ने पंजाब तथा देश संबंधी अपने दृष्टिकोण से देश के अधिकतर लोगों को अवगत करवाने के लिए हिन्दी में भी ‘अजीत समाचार’ प्रकाशित करने का फैसला लिया। इसकी बड़ी ज़रूरत इसलिए भी महसूस हुई कि खाड़कूवाद के दौर में ‘अजीत’ विरोधी ताकतों ने ‘अजीत’ की छवि को बिगाड़ने की कोशिश की। उनकी ओर से ‘अजीत’ के सम्पादकीयों, खबरों तथा लेखों को हिन्दी तथा अंग्रेज़ी में अनुवाद करके या अपने ढंग से उनकी व्याख्या करके समय की प्रांतीय एवं  केन्द्रीय सरकारों को गुमराह करने की बार-बार कोशिशें की गईं। 
सैद्धांतिक रूप में जब अदारा ‘अजीत’ ने हिन्दी में ‘अजीत समाचार’ प्रकाशित करने का फैसला ले लिया तो उसके सामने अहम सवाल यह था कि इसका उद्घाटन किस अहम श़िख्सयत से करवाया जाए? अदारा को किसी ऐसी श़िख्सयत की तलाश थी जिसका राष्ट्रीय स्तर पर रुतबा भी हो, और जो ‘अजीत’ की विचारधारा को समझती भी हो। इस प्रकार को सोच-विचार में से ही डा. मनमोहन सिंह जो उस समय नरसिम्हा राव सरकार में वित्त मंत्री के रूप में कार्यशील थे, का नाम सामने आया तथा उन्हेें डा. साधु सिंह हमदर्द ट्रस्ट की ओर से 27 जनवरी, 1996 को देश भगत यादगार हाल जालन्धर में आकर ‘अजीत समाचार’ के पहले संस्करण को जारी करने का निमंत्रण दिया गया। उन्होंने ने सिर्फ इस निमंत्रण को स्वीकार किया, अपितु इस बात पर खुशी भी व्यक्त की कि अदारा ‘अजीत’ जो पंजाब, पंजाबी और पंजाबियत का अलम्बरदार है, की ओर से हिन्दी का यह दैनिक समाचार पत्र निकाला जा रहा है, जिससे पंजाब की आवाज़ तथा पंजाब के सरोकार देश के लोगों तथा देश की केन्द्र सरकार तक पहुंचेंगे। इससे प्रत्येक पक्ष से पंजाब का पक्ष मज़बूत होगा। अदारा ‘अजीत’ की तरह ही डा. मनमोहन सिंह भी पंजाब का प्रत्येक पक्ष से विकास चाहते थे। वह पंजाब में कृषि, उद्योग, शिक्षा तथा स्वास्थ्य सेवाओं को नई ऊंचाइयों पर देखना चाहते थे और साथ-साथ पंजाब के इतिहास, विरसे तथा संस्कृति को न सिर्फ पंजाब की भावी पीढ़ियों, अपितु देश के अन्य लोगों तक पहुंचते हुए भी देखना चाहते थे। इस संदर्भ में भी वह अदारा ‘अजीत’ की भूमिका को महत्व देते थे। इसी कारण समय-समय पर वह जालन्धर अदारा ‘अजीत’ में आना अपना सौभाग्य समझते थे और ‘अजीत प्रकाशन समूह’ के मुख्य सम्पादक डा. बरजिन्दर सिंह हमदर्द के साथ पंजाब तथा देश के सरोकारों के बारे में अक्सर चर्चा करते थे। पहली बार वह जिस प्रकार कि ऊपर ज़िक्र किया गया है, वह देश के वित्त मंत्री को रूप में  ‘अजीत समाचार’ के उद्घाटन समारोह में शामिल हुए। उस समय देश भगत यादगार हाल, जालन्धर में उन्होंने ‘अजीत समाचार’ के प्रभावशाली उद्घाटन समारोह को संबोधित करते हुए कहा था कि ‘आज सूचना एवं तकनालोजी का युग है। समाचार पत्रों को समाज के विकास में समुचित योगदान देने के लिए इसका माध्यम बनना चाहिए। उन्होंने कहा कि आज संसार एक-दूसरे पर इतना निर्भर हो चुका है कि एक-दूसरे देश की मदद के बिना विकास नहीं कर सकता।’ ‘अजीत’ द्वारा निभाई गई भूमिका की प्रशंसा करते हुए उन्होंने कहा था कि ‘अजीत’ वह पौधा है जो तूफानों में से गुज़रता  हुआ आगे बढ़ा है। उन्होंने यह भी कहा था कि ‘अजीत’ पंजाब की ही नहीं, अपितु पूरे देश की सेवा कर रहा है।
वित्त मंत्री डा. मनमोहन सिंह ने यह भी कहा था कि पंजाब जो देश में पहले नम्बर पर है, को आर्थिक, सामाजिक तौर पर आगे ले जाने के लिए तकनीकी इन्कलाब की ज़रूरत है ताकि पंजाब को लोगों की इच्छाएं पूरी की जा सकें। मेरा विश्वास है कि ‘अजीत समाचार’ पंजाब में तकनीकी इन्कलाब लाने में पूरा योगदान डालेगा। स. प्रकाश सिंह बादल द्वारा पंजाब के मामलों के समाधान के लिए की गई अपील बारे बात करते हुए डा. मनमोहन सिंह ने कहा कि मैं पंजाब के दुख-दर्द को समझता हूं। पंजाब के साथ कुछ अन्याय भी हुए हैं तथा विगत एक दशक के दौरान लोगों को यहां संताप भी झेलना पड़ा है, परन्तु कौमें कभी भी अतीत पर आंसू बहाते आगे नहीं बढ़ सकतीं, अपितु भविष्य की ओर देख कर ही आगे बढ़ती हैं। उन्होंने कहा था कि यह कहना कि पंजाब के कुछ मामलों, जिनका समाधान किये बिना आगे नहीं बढ़ा जा सकता, यह बात ठीक नहीं। पंजाब तथा हरियाणा के बीच कुछ विवाद हैं जिनका समाधान किया जाना चाहिए, परन्तु इन विवादों को लेकर लोगों के हौसले नहीं गिराना चाहिए। उन्होंने कहा कि हमारी परम्परा चढ़दी कला की है। 
वित्त मंत्री ने कहा कि देश की आज़ादी हासिल करने तथा इसे बरकरार रखने विशेषकर आर्थिक मज़बूती लाने में पंजाब का बड़ा योगदान रहा है। उन्होंने विश्वास दिलाया कि भारत सरकार ऐसा पग नहीं उठाएगी जिससे पंजाब के लोगों का नुकसान होता हो। उन्होंने कहा कि सरकार की नई आर्थिक नीति का सबसे अधिक लाभ पंजाब तथा हरियाणा को होगा। उन्होंने आह्वान किया कि आओ, पंजाब की शक्ति को पहचानें और यह समझें कि हमारी केन्द्र सरकार से लड़ाई नहीं, मतभेद हो सकते हैं, हमारी लड़ाई तो गरीबी दूर करने तथा विकास के लाभ सब लोगों तक पहुंचाने के लिए है।
—अजीत समाचार, शनिवार (28 जनवरी, 1996)
इसके बाद 4 मई, 1997 को जब देश के प्रधानमंत्री श्री इन्द्र कुमार गुजराल ‘अजीत समाचार’ की पहली वर्षगांठ पर संस्था ‘अजीत समाचार’ के समारोह में शामिल होने के लिए जालन्धर आए तो उस स्मरणीय समारोह में भी डा. मनमोहन सिंह शामिल हुए। इसके बाद भी पुड्डुचेरी के पूर्व राज्यपाल तथा कांग्रेस के वरिष्ठ नेता स. इकबाल सिंह के साथ एक बार फिर अदारा ‘अजीत’ में तशरीफ लाए और उन्होंने पंजाब तथा देश के अहम मामलों के बारे में डा. बरजिन्दर सिंह हमदर्द के साथ गम्भीर विचार-विमर्श किया। अदारा ‘अजीत’ के साथ उनका यह स्नेह तथा समझदारी निरन्तर बढ़ती गई। 2005 में जब गुजरात तथा अन्य कई प्रदेशों में सुनामी से व्यापक स्तर पर जन तथा आर्थिक नुकसान हुआ तो अदारा ‘अजीत’ ने अपना फज़र् समझते हुए ‘प्रधानमंत्री राष्ट्रीय राहत कोष’ में अपने पाठकों तथा समर्थकों के सहयोग से हिस्सा डाला। दिल्ली में प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह को ‘अजीत’ के मुख्य सम्पादक डा. बरजिन्दर सिंह हमदर्द तथा ट्रस्टी स्वयं एक करोड़, 30 लाख का चैक भेंट करके आए।
‘अजीत समाचार’ ने अपने सम्पादकीयों के माध्यम से उनकी ओर से किए गए आर्थिक सुधारों तथा विशेष कर गरीब एवं पिछड़े लोगों के कल्याण के लिए उनकी ओर से आरम्भ की गई ‘मनरेगा’, ‘भोजन के अधिकार’, ‘शिक्षा के अधिकार’, ‘सूचना के अधिकार’ तथा देश के छोटी तथा मध्यम उद्योगों के विकास के लिए ऋण उपलब्ध करवाने तथा कृषि के विकास के लिए किसानों को आसान ब्याज पर ऋण उपलब्ध करने आदि जैसी नीतियों का हमेशा समर्थन किया। परन्तु इसके साथ-साथ अदारा ‘अजीत’ ने उन्हें वैश्वीकरण तथा निजीकरण की नीतियों से देश में बढ़ रही आर्थिक दरार संबंधी भी समय-समय पर सचेत करना अपना फर्ज समझा। एक बार डा. मनमोहन सिंह ने ‘अजीत प्रकाशन समूह’ के मुख्य सम्पादक डा. बरजिन्दर सिंह हमदर्द को अपनी नई आर्थिक नीतियों के प्रभावों संबंधी अपनी राय देने के लिए कहा तो डा. बरजिन्दर सिंह हमदर्द ने इस संबंध में स्पष्ट शब्दों में अपनी राय प्रकट करते हुए कहा कि भारत जैसी बड़ी आबादी वाले देश में लोगों को अधिक से अधिक रोज़गार के अवसरों की ज़रूरत है। यदि उनकी नई आर्थिक नीतियां देश की बड़ी आबादी के लिए रोज़गार के अवसर सृजित करने में सफल होंगी तो उनसे लोगों के जीवन स्तर में बदलाव आएंगे तो उनकी यह बड़ी उपलब्धि मानी जाएगी। यदि इनका प्रभाव इसके विपरीत होता है तो इनसे लोगों में धीरे-धीरे बेचैनी तथा उदासीनता बढ़ेगी।
नि:संदेह डा. मनमोहन सिंह द्वारा अपने 10 वर्ष के कार्यकाल में लागू की गई आर्धिक नीतियों से देश ने विकास की बड़े आयाम स्थापित किये हैं, परन्तु इसके साथ-साथ इन नीतियों से गरीबी तथा अमीरी की दरार भी बढ़ी है। डा. मनमोहन सिंह इस संबंधी स्वयं भी पूरी तरह सचेत थे और इसके दृष्टिगत वह गरीब तथा निचले मध्य वर्ग को राहत देने वाली अनेक योजनाएं तथा नीतियां लाए थे. जिनसे भारतीय समाज में बढ़ती आर्थिक दरार को कम किया जा सके। 
अदारा ‘अजीत’ डा. मनमोहन सिंह के सदैव बिछोड़े पर उन्हें अपनी भावपूर्ण श्रद्धांजलि भेंट करते हुए, उनके देश तथा पंजाब के लिए बड़े योगदान को गर्व से याद करता है और इसके साथ ही अदारा यह भी महसूस करता है कि उनका बिछोड़ा देश के करोड़ों लोगों की तरह ‘अजीत समाचार’ के लिए भी एक बड़ा घाटा तथा सदमा है। उनकी कमी लम्बे समय तक महसूस होती रहेगी।

#डा. मनमोहन सिंह के साथ ‘अजीत प्रकाशन समूह’ के रिश्ते को याद करते हुए