अ़फगानिस्तान और पाकिस्तान के बीच फिर बढ़ा टकराव
पाकिस्तान की सेना ने एक बार फिर अपने पड़ोसी देश अ़फगानिस्तान के सीमांत क्षेत्र पर हवाई हमला करके 46 लोगों को मार दिया है। अ़फगानिस्तान के प्रवक्ता हमदुल्ला िफतरत ने बताया कि पकतिका प्रांत के रिहायशी पहाड़ी क्षेत्र बरमाल में यह हमला किया गया, जहां पाकिस्तान की सेना के दबाव कारण भारी संख्या में शरणार्थी शरण लिए बैठे हैं। दूसरी तरफ पाकिस्तानी सेना का यह दावा है कि तहऱीक-ए-तालिबान पाकिस्तान के संगठन से संबंधित आतंकवादियों ने विगत 21 दिसम्बर को उत्तर-पश्चिमी पाकिस्तान की सीमा पर हमला करके 16 सैनिकों को मार दिया था। उन्होंने यह भी कहा कि पिछले दो दशकों से इन आतंकवादियों की ओर से वज़ीरस्तान के उत्तर-दक्षिणी भाग पर लगातार हमले किये जा रहे हैं, जिसकी प्रतिक्रिया-स्वरूप पाकिस्तानी सेना भी अ़फगानिस्तान की सीमाओं पर हमले करती है। पाकिस्तान ने यह भी कहा है कि तहऱीक-ए-तालिबान पाकिस्तान के कार्यकर्ता, जिन्होंने अ़फगानिस्तान में शरण ली हुई है, वह लगातार वहां से इधर हमले करते रहते हैं। दूसरी तरफ अ़फगानिस्तान में तालिबान सरकार ने कहा है कि ये हमले उसकी सीमाओं से नहीं किये जा रहे। दोनों देशों के बीच इस तरह के टकराव के दृष्टिगत इनके आपसी संबंध बेहद नाज़ुक चरण पर पहुंच चुके हैं। यह भी स्मरण रहे कि पाकिस्तान के उत्तर-दक्षिणी वज़ीरस्तान में तहऱीक-ए-तालिबान पाकिस्तान का भारी प्रभाव रहा है, जहां ज्यादातर ने अब अ़फगानिस्तान में शरण ली हुई है। दूसरी तरफ अ़फगानिस्तान के विदेश मंत्रालय ने पाकिस्तानी स़फीर को बुला कर इस ताज़ा किये हमले के प्रति कड़ी नाराज़गी प्रकट की है तथा कहा है कि एक ओर पाकिस्तान की सरकार अ़फगानिस्तान से बातचीत कर रही है, दूसरी ओर उसकी सेना अ़फगानिस्तान में कार्रवाइयों को अंजाम दे रही है। अ़फगानिस्तान की तालिबान सरकार ने इस हमले पर कड़ी प्रतिक्रिया प्रकट करते हुए यह भी कहा है कि वह बदले की कार्रवाई करेगा।
इन दोनों देशों में आपसी संबंध बनते-बिगड़ते रहे हैं। पाकिस्तान ने अ़फगानिस्तान में तालिबान का शासन पुन: स्थापित करने हेतु उसकी पूरी सहायता की थी तथा अमरीकी सेना को वहां से वापिस जाने के लिए विवश कर दिया था। उस समय पाकिस्तान ने दोनों देशों की दोस्ती को भारत के विरुद्ध भी इस्तेमाल करने का यत्न किया था। तालिबान से पहले अशऱफ गनी की सरकार अपने देश के नव-निर्माण के लिए भारत से हर तरह की बड़ी सहायता प्राप्त कर रही थी। दोनों का आपसी व्यापार भी व्यापक स्तर पर चल रहा था। भारत ने व्यापक स्तर पर तबाह हुए इस देश के लिए अस्पताल, स्कूल, पुल और अन्य हर तरह के मूलभूत ढांचे के पुनर्निर्माण के लिए अपने इंजीनियर तथा श्रमिकों को वहां भेज कर तेज़ी से निर्माण कार्य करवाए थे, परन्तु तालिबान की सरकार आने के बाद ये काम एक बार तो ठप्प हो गए थे परन्तु अब नये पैदा हुए माहौल में जहां अ़फगानिस्तान भारत से पुन: ऐसी सहायता मांग रहा है, वहीं दूसरी तरफ पाकिस्तान एवं अ़फगानिस्तान की सीमाओं पर एक-दूसरे के विरुद्ध दुश्मन बने आतंकवादी संगठनों के कारण उक्त दोनों देशों के संबंध बेहद बिगड़ गए हैं। दोनों देशों में डूरंड लाइन को लेकर भी ब्रिटिश शासन के समय से झगड़ा चलता रहा है। 20वीं सदी के शुरू में भारत में ब्रिटिश शासन के समय उत्तर-पश्चिमी क्षेत्र को अंग्रेज़ ब़फर के रूप में देख रहे थे, क्योंकि रूस में राजशाही के समय रूसी साम्राज्य ने केन्द्रीय एशिया के बड़े भाग पर कब्ज़ा कर लिया था तथा ताशकंद तक रेल लाइनें बिछा दी थीं। अंग्रेज़ रूसी शक्ति से भय खाते थे तथा अ़फगानिस्तान को एक ब़फर के तौर पर स्थापित करने के लिए यत्नशील थे। इसलिए उन्होंने उस समय उत्तर-पश्चिमी सीमा से अ़फगानिस्तान पर हमले करके उसे कई बार जीतने का यत्न भी किया था, परन्तु वह इसमें सफल नहीं हो सके। भारत की आज़ादी की लड़ाई के दौरान भी इन विचारों के अन्तर्गत अंग्रेज़ों ने पाकिस्तान की स्थापना के लिए मुस्लिम लीग के संघर्ष को पूर्ण शह प्रदान की थी। अंतत: वे अपने रुख़्सत होने से पहले पाकिस्तान बनाने में तो सफल हो गए परन्तु सीमाओं पर उनकी ओर से खींची गई डूरंड लाइन अभी भी इन दोनों देशों में बड़े विवाद का कारण बनी हुई है।
नि:संदेह अब तेज़ हो रही इन दोनों देशों की लड़ाई से पहले ही राजनीतिक और आर्थिक संकट का सामना कर रहे पाकिस्तान की मुश्किलों में और भी वृद्धि हो सकती है।
—बरजिन्दर सिंह हमदर्द