राष्ट्र-निर्माण के ‘अटल’ आदर्श की शताब्दी

मैं जी भर जिया, मैं मन से मरूं... लौटकर आऊंगा, कूच से क्यों डरूं? अटल जी के ये शब्द कितने साहसी हैं...कितने गूढ़ हैं। अटल जी, कूच से नहीं डरे...उन जैसे व्यक्तित्व को किसी से डर लगता भी नहीं था। वो यह भी कहते थे...जीवन बंजारों का डेरा है... आज यहां, कल कहां कूच है...कौन जानता किधर सवेरा...।
आज अगर वो हमारे बीच होते, तो वो अपने जन्मदिन पर नया सवेरा देख रहे होते। मैं वो दिन नहीं भूलता जब उन्होंने मुझे पास बुलाकर अंकवार में भर लिया था... और जोर से पीठ पर धौल जमाई थी। वो स्नेह...वो अपनत्व...वो प्रेम...मेरे जीवन का बहुत बड़ा सौभाग्य रहा है। 
आज 25 दिसम्बर का यह दिन भारतीय राजनीति और भारतीय जनमानस के लिए एक तरह से सुशासन का अटल दिवस है। आज पूरा देश अपने भारत रत्न अटल को, उस आदर्श विभूति के रूप में याद कर रहा है, जिन्होंने अपनी सौम्यता, सहजता और सहृदयता से करोड़ों भारतीयों के मन में जगह बनाई। पूरा देश उनके योगदान के प्रति कृतज्ञ है। उनकी राजनीति के प्रति कृत्तार्थ है।
21वीं शताब्दी को भारत की सदी बनाने के लिए उनकी राजग सरकार ने जो कदम उठाए, उन्होंने देश को एक नई दिशा, नई गति दी। 1998 के जिस काल में उन्होंने प्रधानमंत्री पद संभाला, उस दौर में पूरा देश राजनीतिक अस्थिरता से घिरा हुआ था। 9 साल में देश ने चार बार लोकसभा के चुनाव देखे थे। लोगों को शंका थी कि यह सरकार भी उनकी उम्मीदों को पूरा नहीं कर पाएगी। ऐसे समय में एक सामान्य परिवार से आने वाले अटल जी ने, देश को स्थिरता और सुशासन का मॉडल दिया। भारत को नव विकास की गारंटी दी।
वो ऐसे नेता थे, जिनका प्रभाव भी आज तक अटल है। वो भारत के परिकल्पना पुरुष थे। उनकी सरकार ने देश को आईटी, टेलीकम्यूनिकेशन और दूरसंचार की दुनिया में तेजी से आगे बढ़ाया। उनके शासन काल में ही, राजग ने टेक्नॉलोजी को सामान्य मानव की पहुंच तक लाने का काम शुरू किया। भारत के दूर-दराज के इलाकों को बड़े शहरों से जोड़ने के सफल प्रयास किये गए। वाजपेयी जी की सरकार में शुरू हुई जिस स्वर्णिम चतुर्भुज योजना ने भारत के महानगरों को एक सूत्र में जोड़ा वो आज भी लोगों की स्मृतियों पर अमिट है। लोकल कनेक्टिविटी को बढ़ाने के लिए भी राजग गठबंधन की सरकार ने प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना जैसे कार्यक्रम शुरू किए। उनके शासन काल में दिल्ली मेट्रो शुरू हुई, जिसका विस्तार आज हमारी सरकार एक वर्ल्ड क्लास इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट के रूप में कर रही है। ऐसे ही प्रयासों से उन्होंने न सिर्फ आर्थिक प्रगति को नई शक्ति दी, बल्कि दूर-दराज के क्षेत्रों को एक-दूसरे से जोड़कर भारत की एकता को भी सशक्त किया।
जब भी सर्व शिक्षा अभियान की बात होती है, तो अटल जी की सरकार का ज़िक्र ज़रूर होता है। शिक्षा को सर्वोच्च प्राथमिकता मानने वाले वाजपेयी जी ने एक ऐसे भारत का सपना देखा था, जहां हर व्यक्ति को आधुनिक और गुणवत्ता वाली शिक्षा मिले। वो चाहते थे भारत के वर्ग, यानि ओबीसी, एससी, एसटी, आदिवासी और महिला सभी के लिए शिक्षा सहज और सुलभ बने।
उनकी सरकार ने देश की अर्थव्यवस्था को गति देने के लिए कई बड़े आर्थिक सुधार किए। इन सुधारों के कारण भाई-भतीजावाद में फंसी देश की अर्थव्यवस्था को नई गति मिली। उस दौर की सरकार के समय में जो नीतियां बनीं, उनका मूल उद्देश्य सामान्य मानवीय जीवन को बदलना ही रहा।
उनकी सरकार के कई ऐसे अद्भुत और साहसी उदाहरण हैं, जिन्हें आज भी हम देशवासी गर्व से याद करते हैं। देश को अब भी 11 मई 1998 का वो गौरव दिवस याद है, जब राजग सरकार बनने के कुछ ही दिन बाद पोकरण में सफल परमाणु परीक्षण हुआ। इसे ‘ऑपरेशन शक्ति’ का नाम दिया गया। इस परीक्षण के बाद दुनियाभर में भारत के वैज्ञानिकों को लेकर चर्चा होने लगी। इस बीच कई देशों ने खुलकर नाराज़गी जताई लेकिन तब की सरकार ने किसी दबाव की परवाह नहीं की। पीछे हटने की जगह 13 मई को न्यूक्लियर टेस्ट का एक और धमाका कर दिया गया। 11 मई को हुए परीक्षण ने तो दुनिया को भारत के वैज्ञानिकों की शक्ति से परिचय कराया था। लेकिन 13 मई को हुए परीक्षण ने दुनिया को यह दिखाया कि भारत का नेतृत्व एक ऐसे नेता के हाथ में है, जो एक अलग मिट्टी से बना है।
उन्होंने पूरी दुनिया को यह संदेश दिया, यह पुराना भारत नहीं है। पूरी दुनिया जान चुकी थी कि भारत अब दबाव में आने वाला देश नहीं है। इस परमाणु परीक्षण की वजह से देश पर प्रतिबंध भी लगे, लेकिन देश ने सबका मुकाबला किया।
वाजपेयी सरकार के शासन काल में कई बार सुरक्षा संबंधी चुनौतियां आईं। कारगिल युद्ध का दौर आया। संसद पर आतंकियों ने कायरना प्रहार किया। अमरीका के वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर हुए हमले से वैश्विक स्थितियां बदलीं, लेकिन हर स्थिति में अटल जी के लिए भारत और भारत का हित सर्वोपरि रहा।
जब भी आप वाजपेयी जी के व्यक्तित्व के बारे में किसी से बात करेंगे तो वो यही कहेगा कि वो लोगों को अपनी तरफ खींच लेते थे। उनकी बोलने की कला का कोई सानी नहीं था। कविताओं और शब्दों में उनका कोई जवाब नहीं था। विरोधी भी वाजपेयी जी के भाषणों के मुरीद थे। युवा सांसदों के लिए वो चर्चाएं सीखने का माध्यम बनते। कुछ सांसदों की संख्या को लेकर भी, वो कांग्रेस की कुनीतियों का प्रखर विरोध करने में अग्रणी होते। भारतीय राजनीति में वाजपेयी जी ने दिखाया, ईमानदारी और नीतिगत स्पष्टता का अर्थ क्या है। संसद में कहा गया, उनका यह वाक्य... सरकारें आएंगी, जाएंगी। पार्टियां बनेंगी, बिगड़ेंगी मगर यह देश रहना चाहिए...आज भी मंत्र की तरह हम सबके मन में गूंजता रहता है। वो भारतीय लोकतंत्र को समझते थे। वो यह भी जानते थे कि लोकतंत्र का मजबूत रहना कितना ज़रूरी है। आपातकाल के समय उन्होंने दमनकारी कांग्रेस सरकार का जमकर विरोध किया, यातनाएं झेलीं। जेल जाकर भी संविधान के हित का संकल्प दोहराया। राजग की स्थापना के साथ उन्होंने गठबंधन की राजनीति को नए सिरे से पारिभाषित किया। वो अनेक दलों को साथ लाए और राजग को विकास, देश की प्रगति और क्षेत्रीय आकांक्षाओं का प्रतिनिधि बनाया।
प्रधानमंत्री पद पर रहते हुए उन्होंने विपक्ष की आलोचनाओं का जवाब हमेशा बेहतरीन तरीके दिया। वो ज्यादातर समय विपक्षी दल में रहे, लेकिन नीतियों का विरोध तर्कों और शब्दों से किया। एक समय उन्हें कांग्रेस ने ़गद्दार तक कह दिया था। उसके बाद भी उन्होंने कभी असंसदीय शब्दों का इस्तेमाल नहीं किया। 
उन्होंने भाजपा की नींव तब रखी, जब कांग्रेस जैसी पार्टी का विकल्प बनना आसान नहीं था। उनका नेतृत्व, उनकी राजनीतिक दक्षता, साहस और लोकतंत्र के प्रति उनके अगाध समर्पण ने भाजपा को भारत की लोकप्रिय पार्टी के रूप में स्थापित किया। श्री लालकृष्ण आडवाणी और डा. मुरली मनोहर जोशी जैसे दिग्गजों के साथ, उन्होंने पार्टी को अनेक चुनौतियों से निकालकर सफलता के सोपान तक पहुंचाया।
आज उनका रोपित बीज, एक वटवृक्ष बनकर राष्ट्र सेवा की नव पीढ़ी को रच रहा है। अटल जी की 100वीं जयंती, भारत में सुशासन के एक राष्ट्र पुरुष की जयंती है। आइए, हम सब इस अवसर पर, उनके सपनों को साकार करने के लिए मिलकर काम करें। हम एक ऐसे भारत का निर्माण करें, जो सुशासन, एकता और गति के अटल सिद्धांतों का प्रतीक हो। मुझे विश्वास है, भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी जी के सिखाए सिद्धांत ऐसे ही, हमें भारत को नव प्रगति और समृद्धि के पथ पर प्रशस्त करने की प्रेरणा देते रहेंगे।

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