‘आम के आम और गुठलियों के दाम’

कल, आज और कल! जी हां, यहां इस देश में कल, आज और कल का अन्तर मिटता हुआ नज़र आ रहा है। कुछ ऐसी बाते हैं जो यहां चिरन्तन और निरन्तर होती नज़र आ रही हैं। इस देश की अधिकांश आबादी कल भी गरीब थी, आज भी गरीब है, और जिस प्रकार हमने राशन और रियायत योजना को एक साथ पांच साल के लिए बढ़ा दिया है, और उसके बाद भी इसे वापिस लेने का कोई इरादा नहीं है, उससे लगता है कि ‘अपना देश एक अमीर देश है जहां गरीब बसते है’, का पहचान वाक्य हमारे लिये बहुत दिन तक बना रहेगा।
बेशक नेता अपने भाषणों में महंगाई की आसमान छूती दरों पर विजय प्राप्त कर लेने की बात कहते हैं, परन्तु एक आयात आधारित व्यवस्था के इस देश के आम आदमी के लिये एक नामवीय बात से अधिक कुछ भी नहीं। एक ओर डॉलर के मुकाबले अपने देश की मुद्रा का निरन्तर पतन हो रहा है, अर्थात हमारे देश में डॉलर देशों, केवल अमरीका ही नहीं, हर डॉलर देश से आयात किया जाने वाला उत्पाद निरन्तर महंगा होता जा रहा है, और हमारा निर्यात किया जाने वाला माल निरन्तर सस्ता हो बिके तो बताइए इस देश के उत्पादकों का उत्साह बनेगा तो कैसे? हमारा निर्माण और विनिर्माण उद्योग अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार की उपलब्धियों के बिना तरक्की करेगा तो कैसे?
ऊपर से इन देशों की दीदा दिलेरी देखिये। एक तो हम को महंगा हुआ उत्पाद बेच अपनी जेबें भरते हैं, और फिर हमें डॉलर मुद्रा को छोड़ अपनी-अपनी मुद्रा में व्यापार करने के प्रयास को देख धमकाते हैं, कि अगर ऐसा किया तो हम भारी करों की उगाही के जुर्माने के साथ तुम्हें तुम्हारी जगह दिखा देंगे। अरे बंधुओ, हमारी जगह तो ‘अपना हाथ जगन्नाथ’ होने में है। अपनी धरती पर पैर जमा इदआयात की बैसाखियों के बिना खड़े होने में है। और यहां तो आलम यह है कि चीनी माल के बहिष्कार के बावजूद हम उसके आयात में दीवाली के पटाखों में कमी करने के सिवा कुछ भी नहीं कर सके। दवा से लेकर आधुनिक उपकरणों के कच्चे माल के भारी आयात सहित हम आज भी हिन्दी चीनी भाई-भाई का नारा लगाने को तैयार हैं। सुलह हो गई सुलह हो गई का माहौल बना अग्रिम सेना चौकियों को यथा स्थितिवाद का सन्देश दे रहे हैं, बिना इस परवाह के कि हमारा यह लौट कर आया भाई आज भी अरुणाचल को तिब्बत का हिस्सा बताने की पुकार को वापिस लेने के लिए तैयार नहीं। सरहदों के पीछे आज भी अपना आक्रामक निर्माण कर रहा है, आतंकी घुसपैठियों की आज भी पीठ थपथपा रहा है।
चलिये, यह, राजनीति के कड़़वे सच हैं, जो आज भी ‘मेरा भारत महान’ का नारा लगाने के बावजूद हमें आईना दिखाते रहते हैं।
आईने में देखते ही लगे तो आज कुछ अपने रोज़मर्रा के सच का भी सामना कर लें। दैनिक सच में इसे कैसे नकार सकते हो कि परिवर्तन, परिवर्तन का नारा लगाने के बावजूद हम आज भी दिन-रात बदसूरत होते जा रहे सत्यों को झुठला नहीं सके। बेशक बड़े लोगों ने बताया है कि तेरा देश डिजिटल हो गया है, इन्टरनेट की चार पांच छ: नहीं सात कृत्रिम मेधा आभा बनाने का ज़माना आया तो उसमें भी हम आगे आगे हैं।
लेकिन डिजिटल हो जाने और साइबर शक्ति ने किसी का भला किया हो या नहीं, ठगी का भला अवश्य कर दिया है। पहले देश में बनारसी ठग बड़े मशहूर थे, आज साइबर ठगी का अन्त नहीं। यारों ने बाकायदा इसके ठगी दफ्तर खोल लिये हैं। ठगी राष्ट्रीय ही नहीं अन्तर्राष्ट्रीय हो गई है। अपने देश से हर दम पलायन करने की इच्छा रखने वाले नौजवानों की कतारों के बारे में तो आप जानते ही हैं। उन्हें झांसा दे कम्बोडिया जैसे देशों में पहुंचा दिया जाता है, और फिर पीट-पाट और पहचान पत्रों पर कब्ज़ा करके ठगी का प्रशिक्षण दिया जाता है। लेकिन यह प्रशिक्षण प्राप्त करने के लिए कम्बोडिया तक जाने की ज़रूरत क्या है? अपने देश में कदम-कदम पर ठगी के प्रशिक्षण गृह छिपे हुए हैं। वे आपको फर्जी डिग्रियों से लेकर फर्जी सम्मान-पत्र तक बांटते हैं। जब से शिक्षा का निजीकरण हुआ है, न जाने कितने विश्वविद्यालय खुल गये। सब खाली पड़े हैं। आइलैट अकादमियों की कतारें लग गयीं, और उसके बाहर पलायन के इच्छुक नौजवानों की भीड़ लगी है। ये बैंडों की पूर्ति के बिना वैध-अवैध तरीकों से बाहर निकल जाने की इच्छा पालते हैं, और फिर मैक्सिको के जंगलों को पार कर अमरीका में घुसने की कोशिश में डंकी बने घूमते हैं।
लेकिन शार्टकट संस्कृति के प्रसार के साथ अब गदहे का भाई गदहा अथवा सफल डंकी बनना भी कठिन हो रहा है। न देश में न विदेश में। लेकिन इस संस्कृति की सफलता के नारे यहां भी लगने हैं और वहां भी लगते हैं। अपने देश में इस संस्कृति में सफलता प्राप्त करके लोग फुटपाथी आदमी से पहचान का मीनार हो जाना चाहते हैं, और विदेश में उसकी सरहद तक जा शरण मांगने लगते हैं, और कोई उन्हें उल्टे पांव वापिस लौटने के लिए न कहे। लेकिन बंधुओ, सफल तो वही है जिन्होंने आपको यह पहचान पत्र बांटे। झूठे सच्चे पार पत्रों से दूसरी दुनिया में पहुंचाया। चाहे वह पहचान की दुनिया हो या धन लाभ की दुनिया। यही प्रवेश दिलवाने वाले ही नये युग के मसीहा हैं। उनके घरों के बाहर प्रवेश पाने के इच्छुक लोगों की कतारें लगी हैं, और वे आम के आम और गुठलियों के दाम का धंधा करते हुए सुशोभित हो रहे हैं।

#‘आम के आम और गुठलियों के दाम’