उत्पादन बढ़ाने के लिए ज़मीन में तत्वों की कमी को पूरा किया जाए
भारत की ज़मीन में पोषक तत्वों की कमी है। मात्र 5 प्रतिशत से भी कम ज़मीन में पर्याप्त मात्रा में नाइट्रोजन तत्व उपलब्ध हैं। फास्फोरस तत्व 49 प्रतिशत ज़मीन में तथा पोटाश तत्व 32 प्रतिशत ज़मीन में पर्याप्त मात्रा में पाया जाता है। सिर्फ 20 प्रतिशत ज़मीन में आर्गेनिक कार्बन पर्याप्त मात्रा में है। इन मुख्य तत्वों के अतिरिक्त ज़मीन में गंधक, लोहा, ज़िंक, बोरोन आदि लघु तत्व भी पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध नहीं हैं। कृषि में खादों का संतुलित इस्तेमाल करने के लिए मिट्टी की जांच ज़रूरी है। यदि मिट्टी की जांच के आधार पर खादों का इस्तेमाल नहीं किया जाएगा तो भूमि एवं फसलों के स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव पड़ेगा। मिट्टी की जांच से ज़मीन की उपजाऊ शक्ति, खारेपन, जैविक कार्बन और अन्य आवश्यक तत्वों की उपलब्ध मात्रा का पता चलता है, जिसके आधार पर किसान अलग-अलग फसलों के लिए खादों का ज़रूरत अनुसार इस्तेमाल कर सकते हैं। भारत सरकार की भूमि स्वास्थ्य कार्ड योजना (जो वर्ष 2015 में शुरू की गई थी) के तहत किसानों के बहुमत को मिट्टी जांच कार्ड दिए गए। किसानों को मिट्टी की जांच के आधार पर स्वास्थ्य कार्ड देने के लिए 568 करोड़ रुपये का बजट में प्रावधान किया गया और वर्ष 2016 में 100 करोड़ रुपये किसानों को भूमि स्वास्थ्य कार्ड देने के लिए राज्य सरकारों को दिए गए।
इस योजना के तहत कृषि एवं किसान कल्याण विभाग के आंकड़ों के अनुसार पंजाब में पहले चरण में 8.35 लाख मिट्टी के नमूनों की जांच करके 12.51 लाख भूमि स्वास्थ्य कार्ड किसानों को जारी किए गए तथा दूसरे चरण में 8.40 लाख मिट्टी के नमूनों की जांच करके 12.02 लाख कार्ड किसानों को दिए। किसानों ने इन कार्डों का इस्तेमाल और इनमें दी गईं सिफारिशों का पालन बड़ी कम संख्या में किया। कुछ किसान धान की फसल में 5-5 तथा 6-6 थैले यूरिया प्रति एकड़ डाल रहे हैं, जबकि विशेषज्ञों द्वारा भूमि जांच स्वास्थ्य कार्डों में की गई सिफारिश 2.5 थैले यूरिया के रोपाई से 4, 6 और 9 सप्ताह के बाद डालने की है। यदि पहले बीजी गई गेहूं में फास्फोरस की सिफारिश की गई मात्रा डाली गई हो तो धान को फास्फोरस डालने की ज़रूरत नहीं, परन्तु जिन किसानों ने गेहूं में डी.ए.पी. के माध्यम से फस्फोरस डाला है, वे भी धान की फसल में डी.ए.पी. डाल रहे हैं। डी.ए.पी. में फास्फोरस की मात्रा 46 प्रतिशत तक है। योजना के अधीन पहुंचे लाभ का मूल्यांकन किए जाने के बाद स्पष्ट हुआ कि कुछ किसानों को भूमि स्वास्थ्य कार्ड मिले ही नहीं। जिन्हें मिले हैं, उनमें से अधिकतर ने कभी सिफारिशें देखी ही नहीं और किसी विशेषज्ञ ने उन्हें इस संबंधी कभी कुछ समझाया ही नहीं। पंजाब कृषि विश्वविद्यलय द्वारा ‘पैकेज ऑफ प्रैक्टिसिज़’ में दी गईं सिफारिशों के दृष्टिगत पंजाब के किसानों ने 61 प्रतिशत नाइट्रोजन सिफारिश की गई मात्रा से अधिक इस्तेमाल की। इन ज़मीनों में 79 प्रतिशत पोटाश सिफारिश की गई मात्रा से कम डाला गया तथा 8 प्रतिशत फास्फोरस की ज़मीन में कमी है। गुरदासपुर, होशियारपुर, नवांशहर, जालन्धर तथा रोपड़ ज़िलों में तो पोटाश तत्व की और भी कमी है। इन ज़िलों की ज़मीन में पी.ए.यू. द्वारा पोटाश की मात्रा अधिक डालने की सिफारिश है। खादों के इस्तेमाल में असंतुलन तथा नाइट्रोजन अधिक डालने से खेतों में हरियाली तो बहुत दिखाई देती है, परन्तु दूसरे तत्वों की कमी के कारण फसल में दाने कम पाये गए हैं, जिससे उत्पादन में जड़ता आ गई। जितनी खाद खेत में डाली जाती है, विशेषज्ञों के अनुसार विशेषकर नाइट्रोजन 35 से 40 प्रतिशत तक ही फसल को उपलब्ध होती है, शेष नाइट्रोजन आदि के तत्व पर्यावरण में कार्बन डाईआक्साइड या नाइट्रस आक्साइड के रूप में चले जाते हैं।
मुख्य तत्वों के अतिरिक्त छोटे तत्वों की भी पंजाब की भूमि में कमी है। ज़िंक, मैंगनीज़ तथा लोहे की कमी फसलों में पाई जाती है। बड़े तत्वों के साथ-साथ छोटे तत्वों की जांच भी करवा लेनी चाहिए और पी.ए.यू. की सिफारिश के अनुसार यदि मिट्टी की जांच के आधार पर ज़मीन में ज़िंक 0.6, लोहा 4.5, मैंगनीज़ 3.5 तथा तांबा 0.32 किलोग्राम प्रति एकड़ से कम है तो इन तत्वों की कमी के कारण फसल का उत्पादन कम होगा। इन तत्वों की कमी को विशेषज्ञों की सिफारिश के आधार पर पूरा कर लेना चाहिए। ज़मीन की मिट्टी की जांच तीन वर्ष में एक बार अवश्य करवा लेनी चाहिए।