स्थानीय निकाय चुनावों के प्रभाव

विगत दिवस पांच नगर निगमों एवं 44 नगर कौंसिलों/नगर पंचायतों के चुनावों को लेकर प्रदेश में व्यापक स्तर पर दिलचस्पी बनी रही है। अक्सर यह देखा गया है कि जन-साधारण द्वारा स्थानीय निकाय चुनावों में लोकसभा एवं विधानसभा के चुनावों से भी अधिक दिलचस्पी ली जाती है, क्योंकि इनमें स्थानीय मुद्दों को ही प्राथमिकता दी जाती है। उम्मीदवारों के साथ नज़दीकी संबंधों के कारण दृष्टिगत आम मतदाता एवं उम्मीदवारों के समर्थक भी ऐसे चुनावों से भावुक रूप से अधिक जुड़े होते हैं। प्रदेश में जो सरकार प्रशासन चला रही होती है, उसे ऐसे चुनावों में इसलिए अधिक लाभ मिलने की उम्मीद होती है, क्योंकि स्थानीय मामलों को ज़िला स्तर पर सरकारी प्रशासन ने ही हल करना होता है। इसलिए प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप में ज़िला प्रशासन का प्रभाव इन चुनावों पर पड़ता है। उदारणहत: पिछली बार स्थानीय निकाय चुनाव वर्ष 2018 में हुए थे। उस समय प्रदेश में कांग्रेस सत्तारूढ़ थी, जिस कारण इसके परिणामों में कांग्रेस का अधिक प्रभाव देखा गया था। ऐसा ही प्रभाव इन चुनावों में वर्ष 2023 के अंत तक भी देखा जा सकता था।
चाहे आम आदमी पार्टी की सरकार के समय ये चुनाव निश्चित समय से काफी देर बाद हुए करवाये गये हैं परन्तु इन पर प्रदेश सरकार का प्रभाव प्रत्यक्ष रूप में देखा जा सकता है। चाहे चुनावों के दौरान ये शिकायतें भी मिलती रही हैं कि प्रशासनिक तौर पर विपक्षी दलों के उम्मीदवारों को कई स्तरों पर परेशानियों  का सामना करना पड़ा तथा उनके रास्ते में भिन्न-भिन्न स्थानों पर कुछ रुकावटें भी आईं परन्तु इस सब कुछ के बावजूद यह चुनाव प्रक्रिया काफी सीमा तक अमनपूर्वक सम्पन्न हो गई है। इन चुनावों के परिणामों में आम आदमी पार्टी का पलड़ा भारी दिखाई दिया है। पटियाला में इसे भारी जीत प्राप्त हुई है, परन्तु इसके साथ ही वहां सत्तारूढ़ पार्टी द्वारा सरकारी तंत्र के दुरुपयोग संबंधी कुछ शिकायतें भी मिली हैं। इसी तरह अमृतसर में चाहे कांग्रेस का पलड़ा भारी दिखाई दिया है परन्तु यहां उसे बहुमत नहीं मिल सका। यहां आम आदमी पार्टी दूसरे स्थान पर रही है। इसी तरह जालन्धर में आम आदमी पार्टी को बहुमत तो नहीं मिला परन्तु यह बहुमत के नज़दीक ज़रूर पहुंच गई है। यहां कांग्रेस दूसरे स्थान पर रही है। लुधियाना में आम आदमी पार्टी को बहुमत नहीं मिला परन्तु वह बहुमत से कुछ सीटें ही पीछे रही है। सीटों के पक्ष से वह पहले स्थान पर रही है, परन्तु फगवाड़ा नगर निगम में चाहे किसी भी पार्टी को बहुमत नहीं मिला परन्तु कांग्रेस पहले स्थान पर तथा आम आदमी पार्टी दूसरे स्थान पर रही है। इन चुनावों में वर्णनीय बात यह रही है कि अकाली दल को बहुत बड़ी निराशा का सामना करना पड़ा है। इसे पांच नगर निगमों की 368 सीटों में से मात्र 11 सीटें ही मिल सकी हैं। जालन्धर की 85 सीटों में अकाली दल को एक भी सीट प्राप्त नहीं हुई। लुधियाना की 95 सीटों में से इसके हिस्से सिर्फ 2 सीटें ही आई हैं। अमृतसर की 85 सीटों में से यह 4 सीटों तक ही सीमित रह गया है। इसी तरह पटियाला में इसे 2 सीटें एवं फगवाड़ा में 3 सीटें ही मिल सकी हैं।
इन नगर निगम के चुनावों में सीटों के मामले में पहले स्थान पर आम आदमी पार्टी, दूसरे पर कांग्रेस एवं तीसरे स्थान पर भाजपा रही है। जैसे कि हमने ऊपर लिखा है कि ऐसे स्थानीय निकाय चुनावों में प्रदेश का प्रशासन चला रही पार्टी को कई पक्षों से लाभ मिलता है। इस कारण एवं कई अन्य कारणों के दृष्टिगत आम आदमी पार्टी इन चुनावों में पहले स्थान पर आई है परन्तु इसके साथ ही इसकी ज़िम्मेदारी में भी वृद्धि हो गई है। पंजाब के बड़े शहरों के संबंध में आम प्रभाव यह है कि इनमें जहां सफाई का बुरा हाल है, वहीं आधारभूत ढांचा भी बड़ी सीमा तक खोखला हुआ दिखाई देता है। कूड़ा-कर्कट के समुचित समाधान एवं सीवरेज व्यवस्था में आज तक भी बड़े सुधार नहीं हो सके। आम शहरियों में आधारभूत सुविधाओं की कमी बुरी तरह खटकती है। शहरों के साथ समूची व्यवस्था एवं खास तौर पर ट्रैफिक के पक्ष भी अनियोजित एवं लापरवाही वाली स्थिति अधिक व्याप्त है। यदि आगामी समय में इन शहरों के नये चुने गये प्रतिनिधि अच्छी व्यवस्था करने में सफल होते हैं तो इससे प्रदेश सरकार के प्रभाव में भारी वृद्धि हो सकती है जो प्रदेश के भावी चुनावों में उसके लिए लाभ वाली बात होगी। इसके साथ ही इन चुनावों के परिणामों के दृष्टिगत प्रदेश की बड़ी राजनीतिक पार्टियों को आगामी समय के लिए और भी सतर्क होकर विचरण करने की ज़रूरत होगी।

—बरजिन्दर सिंह हमदर्द

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