तीनों कृषि कानूनों को फिर जन्म देगी नयी कृषि नीति
केन्द्रीय कृषि मंत्रालय ने हाल ही में कृषि विपणन से संबंधित नीतिगत ढांचे के लिए एक नया मसौदा प्रसारित किया है। मंत्रालय में अतिरिक्त सचिव फैज अहमद किदवई ने मौजूदा ढांचे को नया स्वरूप देने के लिए मसौदा बनाया है। सरकार के अनुसार कृषि उपज पर प्रस्तावित सार्वभौमिक कर से किसानों की आय में वृद्धि होगी। समिति ने राज्य समर्थित मंडियों, थोक भंडारण पर कानूनों और बड़ी निजी संस्थाओं द्वारा प्रत्यक्ष खरीद को नियंत्रित करने वाले विनियमों को कृषि विपणन तंत्र के लिए एक नये ढांचे से बदलने का सुझाव दिया है।
इसके तहत केन्द्र सरकार से करों के प्रत्यक्ष संग्रह की सुविधा के लिए सशक्त जीएसटी समिति के समान राज्य कृषि मंत्रियों वाली एक समिति की स्थापना की जायेगी। नये प्रस्तावों से मौजूदा सार्वजनिक बाज़ार यार्ड समाप्त हो जायेंगे तथा निगमों को सीधे थोक खरीद और भंडारण में शामिल होने में सक्षम बनाया जायेगा। आलोचकों का तर्क है कि प्रस्तावित नीति किसान विरोधी है और निरस्त किये गये तीन कृषि कानूनों के लिए पिछले दरवाजे से प्रवेश की सुविधा प्रदान करेगी, जिसने किसानों के विरोध को गति दी थी।
केन्द्र सरकार ने 2003 की राजग सरकार द्वारा स्थापित एक समिति द्वारा अनुशंसित 12 बाज़ार सुधारों के आधार पर यह विपणन ढांचा विकसित किया है। 12 सुधारों में निजी थोक बाज़ारों की स्थापना, प्रोसेसर, ई-निर्यातकों, संगठित खुदरा विक्रेताओं और खेत की देहरी पर थोक खरीदारों द्वारा थोक प्रत्यक्ष खरीद, मौजूदा बाज़ार यार्डों को बदलने के लिए गोदामों, साइलो और कोल्ड स्टोरेज़ सुविधाओं की घोषणा, राज्य भर में एकमुश्त बाज़ार शुल्क लागू करना और पूरे राज्य में मान्य एक एकीकृत व्यापार लाइसेंस शुरू करना शामिल है।
ये हैं मसौदे के प्रमुख प्रस्ताव : (1) कृषि उपज के लिए एक एकीकृत राष्ट्रीय बाज़ार बनाने के लिए वर्तमान जीएसटी पैनल के समान राज्य कृषि मंत्रियों को शामिल करते हुए एक सशक्त कृषि विपणन सुधार समिति की स्थापना करें। (2) किसान बाज़ार सम्पर्क में सुधार : कई ज़रूरत आधारित गोदामों/शीत भंडारण को उप-बाजार यार्ड के रूप में घोषित करें और कृषि उपज बाज़ार समितियों (एपीएमसी) और विपणन उप-यार्ड से परे राष्ट्रीय कृषि बाज़ार (ईएनएएम)का विस्तार और समेकन करें। (3) कृषि उपज और खाद्य शोधन गतिविधियां : उन्हें बढ़ावा दें और कर/शुल्क एकत्र करें। (4) मूल्य श्रृंखलाए : निजी क्षेत्र की भागीदारी के साथ एआई तकनीक आदि का उपयोग करके मूल्य श्रृंखला केंद्रित बुनियादी ढांचे को मज़बूत करें। (5) मूल्य बीमा : बुवाई के समय किसानों की आय के लिए मूल्य बीमा योजना शुरू करें। (6) कृषि-व्यापार करने में आसानी : सभी मंडी प्रक्रियाओं के डिजिटल स्वचालन, लाइसेंसों के डिजिटल जारी करने और व्यापारियों और प्रमुख निजी खिलाड़ियों के पंजीकरण को बढ़ावा दें। नये मसौदे के प्रावधानों के अनुसार निजी कम्पनियों को किसानों से सीधे खेत पर खरीद करने की अनुमति होगी।
ये नियम ऑनलाइन किराना प्लेटफॉर्म को फसल के दौरान किसानों से सीधे खरीदने के लिए प्रोत्साहित करते हैं, अक्सर कृत्रिम रूप से कम कीमतों पर एमएसपी को दरकिनार करते हुए। अगले महीनों में ये कंपनियां जमा की गयी उपज को उपभोक्ताओं को बहुत अधिक कीमतों पर बेचेंगी, जिससे बाज़ार की स्थिति अस्थिर हो जायेगी। उदाहरण के लिए, एक महीने पहले टमाटर की कीमत 60 रुपये प्रति किलोग्राम थी, लेकिन आंध्र प्रदेश के मदापल्ली में फसल की कटाई के दौरान यह गिरकर 1 रुपये प्रति किलोग्राम पर आ गयी।
इससे पहले केंद्रीकृत ई.एनएएम इलेक्ट्रॉनिक बाज़ार ने किसानों को राष्ट्रीय खुले बाज़ारों के प्रति असुरक्षित बना दिया था, जिससे उन्हें अक्सर एपीएमसी मार्केट यार्ड में उपलब्ध न्यूनतम समर्थन मूल्य से वंचित होना पड़ता था। नियमित नीलामी से किसानों को इन मार्केट यार्ड में एमएसपी से अधिक मूल्य प्राप्त करने की अनुमति मिलती है। हालांकि, ईएनएएमए डिजिटल बाज़ारों और थोक खरीद के साथ किसान तेजी से कॉर्पोरेट खरीदारों के मूल्य निर्धारण के अधीन हो रहे हैं।
सीधे थोक खरीद से की गयी किसानों की संख्या में कमी से भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) की खरीद प्रक्रिया में काफी कमी आयेगी, जो न्यूनतम समर्थन मूल्य का भुगतान करके संचालित होती है। इस कमी से सार्वजनिक वितरण प्रणाली के लिए आवश्यक खाद्यान्न भंडार बनाये रखने में जोखिम पैदा होगा। नतीजतन, किसान, श्रमिक और आम उपभोक्ता खाद्य पदार्थों के लिए उच्च कीमतों का सामना करेंगे। प्रस्तावित मसौदा पहले खारिज किये गये तीन कृषि कानूनों को फिर से पेश करता है और बाज़ार, भंडारण और वितरण क्षेत्रों को कुछ कॉर्पोरेटों को सौंपने का प्रयास है। (संवाद)