भारत-बांग्लादेश के बिगड़ते संबंध
इसी वर्ष 6 अगस्त को पड़ोसी देश बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री हसीना शेख वाजेद अपने देश में उभरे तीव्र जन-आक्रोश के बाद भारत आ गई थीं। उनके बाद देश की बिगड़ती स्थिति को सम्भालने के लिए 8 अगस्त को नोबल पुरस्कार विजेता मोहम्मद यूनुस को बनाई गई अस्थायी सरकार का मुख्य सलाहकार नियुक्त किया गया था। पिछले पांच मास में यह अस्थायी सरकार गड़बड़ग्रस्त बांग्लादेश को सम्भाल पाने में असमर्थ रही है। इसका एक कारण वहां एक बार फिर मुस्लिम कट्टरपंथियों का उभार होना है। बांग्लादेश में अवामी लीग की लम्बी अवधि तक विरोधी रही पार्टी, बांग्लादेश नैशनलिस्ट पार्टी, जिसका नेतृत्व ़खालिदा ज़िया कर रही हैं, का भी इन साम्प्रदायिक तत्वों की ओर झुकाव रहा है। यह पार्टी बांग्लादेश को इस्लामिक राज घोषित करना चाहती है तथा लगातार अवामी लीग के कार्यकर्ताओं एवं उसकी सरकार के साथ सड़कों-बाज़ारों में उलझती रही है।
श़ेख हसीना ने इन तत्वों के विरुद्ध हमेशा सख्ती वाला रवैया धारण किये रखा था। इनमें से ज्यादातर को सज़ाएं दिलवा कर जेलों में बंद रखा गया था। इसी तरह ़खालिदा ज़िया के प्रति भी उसका व्यवहार बहुत कड़ा रहा है। श़ेख हसीना ने अपने देश में होती रही इस्लामी आतंकवादी गतिविधियों के प्रति भी बहुत कड़ा रुख अपनाया था। ये संगठन वहां बड़ी संख्या में बसे हिन्दुओं का भी सफाया करने के लिए उतावले रहे हैं तथा उनके विरुद्ध समय-समय पर हिंसक कार्रवाइयों को भी अंजाम देते रहे हैं। श़ेख हसीना वाजेद ने अपने शासनकाल के दौरान देश के अल्पसंख्यकों की रक्षा करने के लिए भी कड़ी नीति अपना रखी थी। उन्होंने बांग्लादेश को इस्लामिक देश घोषित करने के यत्नों का कड़ा विरोध किया था। उन्होंने 16 वर्ष तक इस देश की सत्ता सम्भाले रखी, जिस दौरान उन पर अपने विरोधियों के विरुद्ध कड़ा रवैया धारण करने का भी आरोप लगता रहा। इसी समय के दौरान उन्होंने अपनी समूची नीतियों से देश की डावांडोल आर्थिकता को भी मज़बूत करने के अनेक यत्न किए, जिनमें वह भारी सीमा तक सफल भी रहीं। 1971 में उस समय के पूर्वी पाकिस्तान में बांग्लादेश की आज़ादी के लिए हुए कड़े संघर्ष के मुख्य नेता श़ेख मुजीब-उर-रहमान थे। उन्होंने भारत की सहायता से पाकिस्तान से निजात पाई थी तथा नया बांग्लादेश अस्तित्व में आया था। उस समय पाकिस्तान की सेना की ओर से तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान (मौजूदा बांग्लादेश) में श़ेख मुजीब-उर-रहमान के लाखों ही समर्थक लोगों को मार दिया गया था। तब एक तरह से पूर्वी पाकिस्तान को विनाश के कगार पर ला खड़ा किया था।
बांग्लादेश के स्वतंत्र होने के बाद भारत ने प्रत्येक पक्ष से इस नये देश के पुनर्निर्माण में हर तरह की सहायता की थी। अगस्त 1975 में श़ेख मुजीब-उर-रहमान जिन्हें बंग-बंधु के नाम से भी जाना जाता था, को परिवार सहित कुछ सैनिकों ने गोलियां मार कर मार दिया था। उस समय श़ेख हसीना वाजेद तथा उनकी बहन श़ेख रिहाना सिद्दीकी देश से बाहर होने के कारण बच गई थीं। उन्होंने कड़ी मेहनत करके अपनी पार्टी अवामी लीग की बागडोर सम्भाली थी तथा देश को अपने पांवों पर खड़ा कर दिया था। उससे पहले देश में अफरा-तफरी फैली हुई थी तथा ़खालिदा ज़िया और उनकी पार्टी बांग्लादेश नैशनलिस्ट पार्टी सत्तारूढ़ थी। उन्होंने हमेशा विरोधी भावनाओं को बढ़ाया एवं भड़काया था। उसके शासनकाल में भारत एवं बांग्लादेश के संबंध पूरी बिगड़े रहे थे। श़ेख हसीना ने अपनी कड़ी मेहनत से देश के अधिकतर लोगों के मिले सहयोग से कई बार चुनाव जीते थे तथा प्रधानमंत्री बनी थीं। वह 16 वर्ष तक लगातार प्रधानमंत्री बनी रहीं तथा समय-समय पर हुये चुनावों में जीत प्राप्त करती रहीं। इसी अवधि के दौरान उन्होंने भारत के साथ सुखद संबंध बनाये रखे तथा बांग्लादेश में भारत-विरोधी तथा वहां के अल्प-संख्यकों के विरुद्ध पैदा हुए संगठनों को दबाये रखा, परन्तु फिर इसी वर्ष जुलाई में आरक्षण की नीति को लेकर वहां की विपक्षी पार्टियों ने पूरी तरह लोगों को भड़का कर हसीना सरकार के विरुद्ध व्यापक स्तर पर संग्राम छेड़ दिया था। इस कारण वहां भारी हिंसा फैल गई। इस हिंसा को सम्भालने के लिए श़ेख हसीना वाजिद ने सेना की सहायता से पूरी सख्ती अपनाई, जिस कारण भारी संख्या में लोग मारे भी गये। अंतत: इस फैली बड़ी ब़गावत को सम्भाला न जा सका तथा शेख हसीना को भारत में शरण लेनी पड़ी। पिछले मास में वहां रह रहे लगभग 1.31 करोड़ हिन्दुओं को लगातार निशाना बनाया जा रहा है। उनके बहुत-से मंदिरों को तबाह कर दिया गया है। अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर प्राप्त हुई सूचनाओं के अनुसार वहां अल्प-संख्यक हिन्दुओं के प्रति हिंसा के 2200 मामले दर्ज किए गए हैं। इसके अतिरिक्त जो मामले दर्ज नहीं हुए, उनकी संख्या भी हज़ारों में है। इस संबंध में भारतीय विदेश मंत्री बांग्लादेश गए थे तथा उन्होंने मोहम्मद यूनुस से भेंट की थी, परन्तु स्थिति में कोई सुधार नहीं हुआ। हिंसक घटनाओं के विरुद्ध आवाज़ उठाने वाले हज़ारों की संख्या में लोगों को गिरफ्तार भी किया गया है। अब बांग्लादेश की अंतरिम सरकार ने भारत से वर्ष 2013 में बांग्लादेश से हुए समझौते के तहत श़ेख हसीना पर मामला चलाने के लिए उनकी वापिसी की मांग की है। चाहे भारतीय सरकार की ओर से इस संबंध में अभी तक कोई प्रतिक्रिया प्रकट नहीं की गई परन्तु मिली सूचनाओं के अनुसार बांग्लादेश से भारत के कथित आरोपियों की वापिसी संबंधी समझौते में वर्ष 2016 में संशोधन भी किया गया था। सिर्फ विद्रोह तथा आतंकवाद के मामले से संबंधित घोषित किए गए दोषी व्यक्तियों का ही आदान-प्रदान हो सकता है। भारत के लिए अब यह बड़ी चिन्ता का विषय है कि बांग्लादेश के साथ बिगड़ते संबंधों बारे किस तरह की नीति अपनाई जाये, क्योंकि बांग्लादेश की आज़ादी में भारत के योगदान को मौजूदा सरकार ने पूरी तरह भुला दिया है।
—बरजिन्दर सिंह हमदर्द