राजनीति में विशेष छाप छोड़ गए ओम प्रकाश चौटाला

हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री व इनैलो प्रमुख स्वर्गीय ओम प्रकाश चौटाला देश व प्रदेश की राजनीति में विशेष छाप छोड़ गए हैं। चौटाला में वैसे तो कई खास बातें थीं, लेकिन एक बात ऐसी भी थी जिससे अन्य लोगों व राजनेताओं को सीख लेने की जरूरत है। वह समय के बहुत पाबंद थे और समय की कद्र करते हुए अपने एक-एक मिनट का हमेशा सदुपयोग किया करते थे। विदेश यात्रा दौरान वह अपने दो हफ्ते के टूर को एक हफ्ते में और चार हफ्ते के टूर को दो सप्ताह में निपटा लिया करते थे। उनका समय का प्रबंधन गजब का था। 
वह अपने विदेशी दौरों के दौरान दिनभर सरकारी बैठकें, सम्मेलन व औपचारिक कार्यक्रमों को निपटाया करते थे और अगर अगले दिन कोई बैठक नहीं होती थी तो रात को ही हवाई सफर करके अपने अगले गंतव्य पर पहुंच जाते थे। वह अपनी नींद हवाई यात्रा के दौरान हवाई जहाज में ही ले लिया करते थे। इसी तरह अगर किसी अधिकारी ने उनसे किसी मुद्दे पर या किसी फाइल के बारे में कोई जरूरी चर्चा करनी होती थी तो वह उस अधिकारी को अपनी गाड़ी में साथ चलने को कहते और रास्ते में गंभीर मुद्दों और फाइलों पर भी चर्चा कर लिया करते थे। उनके दफ्तर की फाइलों का निपटान कभी लेट नहीं होता था। वह सभी सरकारी फाइलें रात को लगातार 3-4 घंटे अधिकारियों के साथ लम्बी बैठक करके सभी फाइलें निपटाने के बाद ही सोने के लिए जाते थे। 
डायरी पर नोट करते थे फीडबैक
ज्यादातर समय वह फील्ड में रहते थे और जब वे टूर पर होते थे तो पूरे प्रदेश को इस कोने से दूसरे कोने तक नाप दिया करते थे। इस दौरान लोगों से उन्हें जो भी फीडबैक मिलता, वह उसकी महत्वपूर्ण बातों व समस्याओं को अपनी जेब में रखी छोटी डायरी पर नोट कर लिया करते और चंडीगढ़ आते ही  उन महत्वपूर्ण बातों या समस्याओं को अधिकारियों के साथ बैठकर चर्चा कर तुरंत निपटारा करते। वह फील्ड से जब भी चंडीगढ़ के लिए चलते, मेन हाईवे पकड़ने की बजाय प्रदेश की विभिन्न मंडियों अथवा बड़े गांवों में रुकते हुए आते। 
मंडियों से होकर निकलते चौटाला
मंडियों में वह किसानों व आढ़तियों से उनकी फसल की बिक्री, फसल के भुगतान, उठान व मंडी में आने वाली दिक्कतों के बारे में पूछते और कहीं से कोई शिकायत मिलती तो तुरंत अधिकारियों को निर्देश देते। इस बहाने वह प्रदेश की हर छोटी-छोटी लिंक रोड और संपर्क मार्गों की हालत का जायजा भी लेते और अगर कहीं कोई कमी पाई जाती तो वह अधिकारियों को तुरंत इसे दूर करने कहते। वह हर गांव को जाने वाली सड़क तक से परिचित होते। कई बार अधिकारी उनके काफिले को किसी हाईवे से ले जाना चाहते तो वह अपने ड्राइवर को बोलकर अपने आप रास्ता चेंज करवा देते। वह जीवन के लिए भ्रमण ज्ञान को भी बहुत महत्वपूर्ण मानते थे और अक्सर दुनिया के अच्छे देशों में जाकर वहां से हर बार कुछ न कुछ नया सीखने का प्रयास करते। 
कार्यकर्ताओं को देते थे टिकटें
वह मूल रूप से संगठन के व्यक्ति थे और जब वे राजनीति में पूरी तरह सक्रिय थे तो उनकी पार्टी इनैलो के संगठन को देश के बेहतर राजनीतिक संगठनों में से एक माना जाता था। उनकी पार्टी के कार्यकर्त्ता उनके प्रति बेहद समर्पित होते और वह पार्टी की एमएलए व एमपी की टिकटें भी अक्सर अपने समर्पित कार्यकर्त्ताओं को ही दिया करते थे। उन्होंने अपने राजनीतिक सफर के दौरान 100 से ज्यादा ऐसे कार्यकर्त्ताओं को विधायक, सांसद व मंत्री बनवाया जिनके परिवारों का राजनीति से कभी दूर का भी वास्ता नहीं था और कभी सपने में भी विधायक, सांसद या मंत्री बनने की नहीं सोच सकते थे।  उन्होंने सरकार आपके द्वार कार्यक्रम शुरू किया और सभी विधानसभा क्षेत्रों में कार्यक्रम आयोजित करते हुए हर गांव के लोगों व पंचायतों को बुलाकर उनकी समस्याएं सुनीं और उनकी अधिकांश मांगें मौके पर ही स्वीकार करना शुरू किया। उनका मानना था कि गांव के लोगों को अपने गांव की समस्याओं व मांगों बारे बेहतर जानकारी होती है और वे ही बता सकते हैं कि किस चीज की ज्यादा जरूरत है। 
 योजनाएं बनाने का ढंग
उनका मानना था कि अगर चंडीगढ़ एसी दफ्तरों में बैठकर कोई योजना बनाई जाएगी तो यहां बैठे लोगों को यह नहीं पता चल पाएगा कि किस गांव में किस चीज की सबसे पहले जरूरत है और कौन सी मांग को प्राथमिकता के आधार पर पूरा किया जाना चाहिए। इन विकास कार्यों को लेकर एक-दो जगह से उन्हें ऐसी शिकायतें भी मिलीं कि गांव के विकास कार्यों में कुछ गड़बड़ी हो रही है। इन गड़बड़ियों पर रोक लगाने के लिए उन्होंने हर गांव में विकास समितियां गठित करने का निर्णय लिया और इन विकास समितियों में निर्वाचित प्रतिनिधियों के अलावा एससी/बीसी वर्ग के प्रतिनिधि व गांव के रिटायर टीचर अथवा पूर्व सैनिकों को भी इन समितियों का सदस्य बनाया ताकि वे अपने गांव में होने वाले विकास कार्यों पर होने वाले खर्चें व लगाए जा रहे मैटेरियल पर नजर रख सकें।
योगा व व्यायाम 
चौटाला अक्सर देर रात को सोते, इसके बावजूद वे सुबह करीब 4 बजे उठ जाते और उठकर सबसे पहले योगा व व्यायाम करते और भाप भी लेते। उसके बाद वह अपनी दिनचर्या शुरू करते हुए फील्ड के लिए निकल जाते थे। मुख्यमंत्री अक्सर जिस पथ पर जाते हैं, उस पूरे रूट पर पुलिस द्वारा हमेशा सुरक्षा की दृष्टि से पहरा लगाया जाता है। चौटाला ने मुख्यमंत्री बनने के बाद सबसे पहले अपनी गाड़ियों का काफिला छोटा किया और फिर पूरे रास्ते में खड़े किए जाने वाले जवानों को हटाने के भी निर्देश दिए। वह इस तरह के दिखावे के खिलाफ थे और उनका मानना था कि वह आम लोगों के बीच में से ही हैं और उन्हें किसी से कोई खतरा नहीं है।
विरोधियों की नज़र में 
चौटाला के बारे में उनके समर्थकों के अलावा उनके विरोधियों में भी गजब की राय पाई जाती है जोकि पूर्व केंद्रीय मंत्री बीरेंद्र सिंह व पूर्व मुख्यमंत्री बंसीलाल के कथन से भी समझी जा सकती है। बीरेंद्र सिंह और ओम प्रकाश चौटाला दोनों राजनीति में एक-दूसरे के विरोधी रहे हैं। 2009 का विधानसभा चुनाव ओम प्रकाश चौटाला ने उचाना से बीरेंद्र सिंह के मुकाबले में लड़ा था और बीरेंद्र सिंह को उनके गृह क्षेत्र उचाना में हराकर विधायक बने थे। इसके बावजूद बीरेंद्र सिंह अक्सर कहा करते हैं कि प्रदेश में आज तक के सभी मुख्यमंत्रियों के मुकाबले चौटाला बेहतर मुख्यमंत्री थे। इसी तरह चौटाला का पूर्व मुख्यमंत्री बंसीलाल के साथ भी हमेशा छत्तीस का आंकड़ा था और बंसीलाल व चौटाला राजनीति में एक-दूसरे के कट्टर विरोधी थे। बंसीलाल को बतौर मुख्यमंत्री एक शानदार प्रशासक माना जाता था। इसके बावजूद बंसीलाल कहा करते थे कि ओम प्रकाश चौटाला उनसे भी बेहतर प्रशासक थे और चौटाला जितने मेहनती हैं, उन जैसा मेहनती कोई दूसरा नेता देश में नहीं है। वह जीवन के आखिरी सांस तक राजनीति में पूरी तरह सक्रिय रहे और प्रतिकूल हालात के बावजूद कभी कमजोरी वाली बात नहीं करते थे।

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