गाज़ा पट्टी का दुखांत
अमरीका के नव-निर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने कुछ ही समय में सत्ता सम्भालते हुए जिस तरह की कार्रवाइयां शुरू की हैं तथा जिस तरह के लिखित आदेश देने शुरू किए हैं, उनसे विश्व भर में एक बड़ी हलचल पैदा हो गई दिखाई देने लगी है। उनके राष्ट्रपति बनने से पहले दो बड़े युद्ध छिड़े हुए थे। एक तरफ जहां रूस और यूक्रेन युद्ध ने क्षेत्र में भारी तबाही मचाई हुई है, वहीं दूसरी तरफ मध्य पूर्व में पिछले 16 महीनों से इज़रायल और गाज़ा पट्टी के शासित संगठन हमास के बीच युद्ध चल रहा है। गाज़ा, समुद्र, इज़रायल और अरब देश मिस्र से घिरी हुई एक लम्बी पट्टी है, जहां इज़रायल के अस्तित्व में आने से लेकर अब तक (युद्ध शुरू होने से पहले) लगभग 23 लाख फिलिस्तीनी रह रहे थे। फिलिस्तीनी आबादी जिसे इज़रायल बनने के बाद अपने घरों से निकाल दिया गया था, में से ज्यादातर पश्चिमी किनारे पर तथा गाज़ा पट्टी में सिकुड़ कर रह रहे थे। इसके अतिरिक्त वर्ष 1948 से लाखों ही फिलिस्तीनी आज शरणार्थियों के रूप में मिस्र, जार्डन और अन्य अरब देशों में रहने के लिए विवश हैं। गाज़ा पट्टी बड़ी सीमा तक इज़रायल के साथ घिरी हुई है, जहां ज़रूरतों को पूरा करने के लिए फिलिस्तीनियों को मिस्र के साथ-साथ इज़रायल की ओर भी देखना पड़ता है।
गाज़ा पट्टी बंदिशों में फंसा स्व-प्रशासित क्षेत्र है, जिस पर इज़रायल से निरन्तर लड़ाई लड़ रहे गुरिल्ला संगठन हमास ने कब्ज़ा किया हुआ है। हमास गुरिल्लों ने ही पहले इज़रायल की सीमा पार करके 1139 इज़रायलियों की हत्या कर दी थी और 250 को बंधक बना लिया था। इसके बाद शुरू हुए युद्ध में जहां अब तक लगभग 50,000 फिलिस्तीनी मारे जा चुके हैं तथा लाखों ही अनिश्चित हालात में टैंटों में रहने के लिए विवश हैं, वहीं इज़रायल ने लगातार बमबारी करके गाज़ा पट्टी के ज्यादातर रिहायशी घरों को भी पूरी तरह से ध्वस्त करके रख दिया है। विश्व भर में इज़रायल के इस व्यवहार की कड़ी आलोचना हुई है।
कतर तथा कुछ अन्य अरब देशों ने संयुक्त राष्ट्र और अमरीका सहित अन्य बड़े देशों की सहायता से दोनों पक्षों में वार्ता शुरू करवाई थी। इस बातचीत के बाद पड़ाव-दर-पड़ाव एक दूसरे के बंधकों को छोड़ने पर सहमति बन गई थी तथा अस्थायी रूप से दोनों पक्षों के मध्य युद्ध-विराम भी हो गया था। चाहे इस संबंध में पूरा समझौता अभी सफल नहीं हुआ, परन्तु इसी दौरान राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने इज़रायल के प्रधानमंत्री बैंजामिन नेतन्याहू के साथ वाशिंगटन में भेंट के बाद गाज़ा पट्टी संबंधी ऐसे बयान दिए हैं, जिनसे विश्व भर में तथा खास तौर पर अरब देशों में एक बार फिर बड़ी अशांति पैदा हो गई है। ट्रम्प ने स्पष्ट रूप में यह कहा है कि वह गाज़ा पट्टी से फिलिस्तीनियों को निकाल कर मध्य पूर्व के देशों के लिए इसे एक ऐसा विशेष क्षेत्र बना देगा, जो विश्व भर के लिए आकर्षण का केन्द्र होगा। इस संबंध में जहां गाज़ा पट्टी के पड़ोसी देशों मिस्र और जार्डन ने कड़ी आपत्ति प्रकट की है, वहीं अमरीका के भागीदार सऊदी अरब और मिस्र ने भी ट्रम्प की इस बात को पूरी तरह से नकार दिया है। यूरोपियन देशों ने भी इसके प्रति आपत्ति प्रकट की है तथा अमरीका में ट्रम्प की नीतियों को लेकर लोगों द्वारा रोष प्रदर्शन भी शुरू हो गए हैं। ध्वस्त हुई गाज़ा पट्टी में बसते फिलिस्तीनियों ने भी इस घोषणा को पूरी तरह से नकारते हुए यह कहा है कि वे भूखे और बेघर रह सकते हैं, परन्तु वे अपनी धरती को अमरीका की ज़रखरीद जायदाद नहीं बनने देंगे।
दूसरे बड़े युद्ध के बाद वर्ष 1949 में जिनेवा कन्वैनशन के समझौतों के अनुसार किसी भी देश की सेना द्वारा किसी अन्य देश के क्षेत्र पर कब्ज़ा करने के बाद वहां के मूलभूत निवासियों को ज़बरन उनकी धरती से निकालना अन्तर्राष्ट्रीय तौर पर एक बड़ा अपराध है, परन्तु जिस तरह इज़रायल के प्रधानमंत्री बैंजामिन नेतन्याहू और रक्षा मंत्री काटज़ ने ट्रम्प के इस प्रस्ताव का स्वागत किया है और गाज़ा पट्टी में घेरा डाले अपनी सेना को यह कहा है कि जो भी फिलिस्तीनी इस पट्टी से निकलना चाहते हैं, उन्हें बिना शर्त निकलने की इजाज़त दे दी जाए, चाहे वह सीमा के साथ-साथ समुद्र द्वारा या हवाई स़फर द्वारा, जैसे भी यहां से जाना चाहते हैं, उन्हें इसकी पूरी छूट दी जाए। नि:संदेह डोनाल्ड ट्रम्प ने ऐसे ़गैर-ज़िम्मेदाराना बयान देकर और उन पर क्रियान्वयन करने के निर्देश देकर विश्व भर में एक बड़ी नाराज़गी को जन्म दिया है, जिससे दशकों से लगातार बना आ रहा यह श्राप और भी गहन हो जाएगा, जो समूचे विश्व के लिए भी बेहद नुक्सानदायक सिद्ध हो सकता है।
—बरजिन्दर सिंह हमदर्द