मानवीय अंतर्दृष्टि के अप्रतिम कवि विनोद कुमार शुक्ल

हताशा में एक व्यक्ति बैठ गया था/व्यक्ति को मैं नहीं जानता था/हताशा को जानता था/इसलिए मैं उस व्यक्ति के पास गया/मैंने हाथ बढ़ाया/मेरा हाथ पकड़ कर वह उठ खड़ा हुआ/मुझे वह नहीं जानता था,/मेरे हाथ बढ़ाने को जानता था/हम दोनों साथ चले/दोनों एक-दूसरे को नहीं जानते थे/साथ चलने को जानते थे। 
इस कविता में साथ चल सकने की संभावना की जो गहरी अंतर्दृष्टि है, वह हमें हतप्रभ कर देती है। इसी के कारण कविता मनुष्यता का विराट ब्रह्मांड बन जाती है। छत्तीसगढ़ के रायपुर शहर में रहने वाले विनोद द्मद्दमार शुक्ल गहरी अंतर्दृष्टि के साहित्यकार हैं। उन्हें वर्ष 2024 के लिए 59वां ज्ञानपीठ पुरस्कार प्रदान किया जाएगा। भारतीय ज्ञानपीठ के मुताबिक विनोद जी को हिंदी साहित्य में उनके अद्वितीय योगदान, सृजनात्मकता और अपनी विशिष्ट लेखन शैली के लिए यह  पुरस्कार दिया जा रहा है। वह हिंदी के 12वें ऐसे साहित्यकार हैं, जिन्हें यह पुरस्कार प्रदान किया जा रहा है। इसके साथ ही वह ज्ञानपीठ पुरस्कार पाने वाले छत्तीसगढ़ के पहले लेखक हैं। सुप्रसिद्ध कथाकार और खुद भी ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित प्रतिभा राय की अध्यक्षता में प्रवर परिषद द्वारा उन्हें पुरस्कार देने का निर्णय लिया गया। चयन समिति में माधव कौशिक, दामोदर मावजो, प्रभा वर्मा, डां. अनामिका, डा. ए. कृष्णा राव, प्रफ्फुल शिलेदार, डा. जानकी प्रसाद शर्मा और ज्ञानपीठ के निदेशक मधुसूदन आनन्द शामिल थे।
1 जनवरी, 1937 को राजनांदगांव में जन्मे विनोद कुमार शुक्ल पिछले 50 साल से लेखन कर रहे हैं। उनका पहला कविता संग्रह ‘लगभग जय हिंद’ 1971 में प्रकाशित हुआ था। इसके ठीक दस सालों बाद उनका दूसरा कविता संग्रह ‘वह आदमी चला गया’ आता है। लेकिन इसके 2 साल पहले उनका चर्चित उपन्यास ‘नौकर की कमीज’ भी आ चुका और चर्चित हो चुका होता है। इसलिए उनके 8 कविता संग्रहों, 6 उपन्यासों और 5 कहानी संग्रहों के बीच यह तय कर पाना बहुत मुश्किल है कि वह मूलत: कवि हैं, उपन्यासकार हैं, कथाकार हैं या बाल साहित्यकार हैं जैसे किहाल के सालों में उन्होंने पाने बाल साहित्य लेखन से ध्यान खींचा है। विनोद शुक्ल के उपन्यास ‘नौकर की कमीज’, ‘खिलेगा तो देखेंगे’ और ‘दीवार में एक खिड़की रहती थी’ हिंदी के श्रेष्ठ उपन्यासों में शुमार हैं। उनके उपन्यास ‘नौकर की कमीज’ पर जाने-माने फिल्मकार मणिकौल ने 1999 में ‘नौकर की कमीज’ नाम से एक फिल्म भी बनाई थी, जिसमें पंकज सुधीर मिश्रा, अनु जोसेफ और ओम प्रकाश द्विवेदी ने काम किया था।
अपनी एक अलग लेखन शैली के लिए लोकप्रिय विनोद कुमार शुक्ल ने बड़ों के साथ बच्चों के लिए भी लिखा है, ‘हरी घास की छप्पर वाली झोपड़ी और बौना पहाड़’ उपन्यास समेत बच्चों उनकी कई और किताबें हैं जैसे- ‘बना बनाया देखा आकाशा, बनते कहां दिखा आकाश’, ‘गमले में जंगल’, ‘पेड़ नहीं बैठता’, ‘एक चुप्पी जगह’। जिस तरह से हर तरफ उनके लेखन का स्वागत हुआ है, उसी तरह हर सम्मान भी उन पर खूब मेहरबान रहे हैं। अमेरिकन नाबोकॉव अवॉर्ड पाने वाले पहले एशियाई लेखक हैं। कविता और उपन्यास लेखन के लिए गजानन माधव मुक्तिबोध फेलोशिप, रजा पुरस्कार, वीर सिंह देव पुरस्कार, सृजनभारती सम्मान, रघुवीर सहाय स्मृति पुरस्कार, दयावती मोदी कवि शिखर सम्मान, भवानीप्रसाद मिश्र पुरस्कार, मैथिलीशरण गुप्त सम्मान, पं. सुन्दरलाल शर्मा पुरस्कार जैसे अनेक पुरस्कार उन्हें लगातार मिलते रहे हैं। उन्हें उपन्यास ‘दीवार में एक खिड़की रहती थी’ के लिए 1999 में ‘साहित्य अकादमी’ पुरस्कार भी मिल चुका है। हाल के वर्षों में उन्हें मातृभूमि बुक ऑफ द ईयर अवॉर्ड भी दिया गया है। दुनिया भर की भाषाओं में उनकी किताबों के अनुवाद हो चुके हैं। उनका लेखन सरल भाषा, गहरी संवेदनशीलता और अद्वितीय शैली के लिये जाना जाता है। वह मुख्य रूप से हिंदी साहित्य में अपने प्रयोगधर्मी लेखन के लिये प्रसिद्ध हैं।
उनकी भाषा बहुत ही सहज और सरल होती है, लेकिन उसमें गहरी दार्शनिकता छिपी होती है। वे साधारण जीवन के अनुभवों को इतने अनूठे ढंग से प्रस्तुत करते हैं कि वे असाधारण लगने लगते हैं। दरअसल विनोद जी धीमी गति और धीरजपूर्ण शैली के लेखक हैं। उनकी रचनाएं तेज घटनाक्रम या नाटकीय मोड़ों पर आधारित नहीं होतीं बल्कि उनमें अपनी ही तरह की एक स्थिरता होती है। उनके उपन्यासों में घटनाएं बहुत धीरे-धीरे खुलती हैं, मगर उनकी गूंज लंबे समय तक बनी रहती है। विनोद कुमार शुक्ल के लेखन में जादुई यथार्थवाद की झलक मिलती है, इसीलिए उनके यहां आम जीवन में भी एक प्रकार की अलौकिकता और काव्यात्मकता देखने को मिलती है। उनके पात्र आमतौर पर साधारण लोग होते हैं- किसान, शिक्षक, छोटे कर्मचारी- लेकिन वे अपने विचारों, भावनाओं और दृष्टिकोण में असाधारण होते हैं। वे अपने जीवन की छोटी-छोटी चीज़ों में गहरा आनंद और काव्यात्मकता खोजते हैं। हालांकि यह कह पाना आसान नहीं है कि वह कवि ज्यादा अच्छे हैं या गद्यकार लेकिन उनकी भाषा बुनियादी रूप से काव्यात्मक है। इसलिए उनकी गद्य रचनाओं में भी एक विशिष्ट किस्म की काव्यात्मकता है। उनका गद्य अक्सर दृश्यात्मक और जीवंत होता है, जो पाठकों को एक अलग अनुभव देता है।
उनकी कहानियों और उपन्यासों में महानगरों की- श्यावलियां बहुत कम मिलती हैं, लेकिन छोटे शहरों और गांवों के बेहद यथार्थपरक चित्रण मिलते हैं। लेकिन वे इसे किसी आदर्शवाद या नॉस्टैल्जिया के चश्मे से नहीं देखते। उनका फोकस मनुष्य और उसकी सहज प्रवृत्तियों पर रहता है। उनके लेखन में एक सूक्ष्म हास्य और व्यंग्य भी देखने को मिलता है, जो न तो कटु होता है और न ही आक्रामक, बल्कि समाज की छोटी-छोटी विडंबनाओं को उजागर करने का माध्यम बनता है। उनके लेखन में प्रकृति और जीवन का अनूठा रिश्ता पूरे मनोवेग से मौजूद होता है। उनकी कृतियों में पेड़, पक्षी, बारिश, और धूप मात्र सजावटी तत्व नहीं होते, बल्कि वे मानवीय भावनाओं के प्रतीक बन जाते हैं।
-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर 

#मानवीय अंतर्दृष्टि के अप्रतिम कवि विनोद कुमार शुक्ल