किसी कहानी से कम नहीं है सोनाली बेंद्रे की आपबीती

साल 2018 में सोनाली बेंदे्र को मालूम हुआ कि उन्हें स्टेज फोर का मेटास्टेटिक कैंसर है। उन्होंने इस सूचना को छुपाया नहीं, जैसा कि आमतौर से लोग करते हैं बल्कि सोशल मीडिया में खुद इसकी जानकारी दी। उनके इस खुलेपन से गलतफहमी उत्पन्न हो गई। कुछ लोगों ने इसे पब्लिसिटी स्टंट कहा। यह स्वाभाविक था। जब आप एक्टर होते हैं, तो आपकी हर बात को ऐसे ही देखा जाता है जैसे ‘आप सिर्फ पब्लिसिटी ही चाहते हैं’। लेकिन इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि हर किसी का जीने का अपना अंदाज़ होता है। सोनाली का भी है। इसलिए उन्होंने अपनी डायग्नोसिस के बारे में बोलना शुरू कर दिया। हालांकि उनके खुलेपन पर कुछ लोगों ने सवाल भी उठाये, लेकिन एक रिपोर्ट से यह तथ्य भी सामने आया कि सोनाली से प्रेरित होकर महिलाओं में टेस्टिंग दर में वृद्धि आयी। आज भी बहुत सी महिलाएं सोनाली के पास आकर उनसे कहती हैं, ‘आपने जब अपने अनुभव सार्वजनिक किये तो हम टेस्ट कराने के लिए प्रेरित हुईं और कैंसर की जल्द पहचान होने के कारण हमारी जान बच सकी।’
दरअसल, सोनाली ने अपनी डायग्नोसिस को इस वजह से सार्वजनिक अधिक किया था ; क्योंकि वह अपनी कहानी का नियंत्रण अपने ही हाथ में रखना चाहती थीं। जब वह एक रियलिटी शो की शूटिंग कर रही थीं, तब उन्हें पता चला कि उन्हें कैंसर है। वह सोचने लगीं कि वह दो सप्ताह का छोटा सा ब्रेक लें, कैंसर का ऑपरेशन कराएं और वापस शूटिंग पर आ जायें। लेकिन कैंसर शुरुआती न था बल्कि चौथे स्टेज का था। इसलिए डायग्नोसिस के तीन दिन बाद ही उन्हें इलाज के लिए विदेश जाना पड़ गया। तब तक सोशल मीडिया का दौर आरंभ हो चुका था, जिसमें खबर (या अफवाह) जंगल की आग की तरह फैलती है। ऐसे में गॉसिप फैलने का खतरा अधिक बढ़ जाता है। रियलिटी शो पर सोनाली की जगह कोई लेना चाह रहा था। सोनाली नहीं चाहती थीं कि संबंधित व्यक्ति से उनके टकराव की झूठी खबरें फैलें या उनको रिप्लेस करने के बारे में उलटी सीधी कहानियां बनायी जायें। इसलिए उन्होंने सोशल मीडिया पर अपनी डायग्नोसिस की सूचना शेयर की। सोशल मीडिया का यही लाभ है । कोई भी खुलकर सीधा कम्युनिकेट कर सकता है। सोनाली इसे लक्ज़री कहती हैं, जो एक्टर्स को पहले प्राप्त नहीं थी।
आज जब सोनाली पीछे मुड़कर देखती हैं तो सोचती हैं कि कठिन समय से गुज़रने का एक ही तरीका है कि उसका सामना ऐसे किया जाये जैसे वह ही आपके जीवन का अंतिम दिन है। वह अपने कठिन समय में वास्तव में दो हैशटैग का प्रयोग करती थीं। एक था ‘वन डे ऐट ए टाइम’ और दूसरा था ‘स्विच ऑन द सनशाइन’। जब भी उन्हें महसूस होता कि अब बर्दाश्त नहीं किया जा रहा है तो वह अपने आप से कहतीं, ‘ओके, आज का दिन गुज़रने दो और मुझे सोने दो। कल मैं हार मान जाऊंगी।’ जब दर्द अधिक बढ़ जाता, तो वह खुद से कहतीं, ‘कल से मैं यह दवाई नहीं लेने की, यह बहुत बड़ी समस्या है। लेकिन आज मुझे दवाई लेने दो।’ स्वयं से यह बातें करते हुए आहिस्ता आहिस्ता दिन बीतने लगे, छह महीने गुज़रे, नौ माह बीते और इस तरह दिन जाते रहे। ‘एक दिन जीना’ उनका मंत्र था लम्बा जीवन पाने का। गंभीर बीमारी में महिलाओं को अधिक चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। एक समय ऐसा भी था जब सोनाली को एहसास हुआ कि वह अपने परिवार और आसपास के लोगों को ही खुश करने में लगी हुई हैं और ऐसा करते में वह खुद को पूरी तरह से नज़रंदाज़ कर रही हैं। लेकिन थैरपी ने उन्हें सिखाया कि आत्म-प्रेम बहुत महत्वपूर्ण है। इसकी शुरुआत करना मुश्किल था क्योंकि महिलाओं को कंडीशन किया जाता है कि वह हर व्यक्ति को अपने से बढ़कर समझें। इस कंडीशन से उबरने के लिए सोनाली को कड़ी मेहनत करनी पड़ी। अगर आपको मदद की ज़रूरत है तो आपको मदद मांग लेनी चाहिए, इसमें कोई बुराई नहीं है। ऐसा सोनाली का अपने अनुभव की रोशनी में कहना है।
अब सोनाली अपने करियर में नया अध्याय जोड़ने के लिए तैयार हैं। अब वह उन भूमिकाओं को करना चाहती हैं जो उनकी आयु के अनुरूप हों। जब आप अपनी आयु के मुताबिक भूमिकाएं करने की बात करते हैं तो एक खास किस्म के रोल आपके लिए आते हैं। आप या तो हाई सोसाइटी में अति ग्लैमरस हैं या आप मज़ाक सा बनकर रह जाते हैं। सोनाली ऐसे रोल्स नहीं करना चाहतीं। वह अपने वर्तमान जीवन को प्रतिविम्बित करने वाली भूमिकाएं चाहती हैं। ज़ाहिर है उन्हें यह तय करने में समय लगा। कुछ रोल उनके पास आये भी, लेकिन वह बहुत डार्क थे। वह अदाकारी और जीवन को अलग-अलग करने में अधिकतर एक्टर्स से अधिक सक्षम हैं, लेकिन डार्क रोल्स से फिलहाल इसलिए बचना चाहती हैं ; क्योंकि इनका गहरा भावनात्मक असर पड़ता है और अभी वह उपचार की स्टेज में ही हैं। वह डार्कनेस के साथ जीना नहीं चाहती हैं।
-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर 

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