अणुशक्ति और आध्यात्मिकता की नगरी है रावतभाटा

महज 52000 की जनसंख्या और राजनीतिक ताकत का कोई बड़ा केंद्र न होने के बावजूद राजस्थान के चित्तौड़गढ़ ज़िले में स्थित रावतभाटा शहर, दुनिया के नक्शे में अपनी एक अलग ही अहमियत रखता है। शिक्षा नगरी कोटा से महज 50 किमी दूर स्थित रावतभाटा वैश्विक स्तर पर जहां मुख्यत: परमाणु ऊर्जा और अनुसंधान से जुड़ी वजहों से प्रसिद्ध है,वहीं देश के भीतर इसकी ख्याति 9वीं शताब्दी में निर्मित बाड़ौली मंदिर समूह के कारण है। ये मंदिर इसे भारत की रहस्यमयी आध्यात्मिक नगरी होने का गौरव देते हैं। साथ ही यह छोटा सा खूबसूरत शहर चंबल नदी के किनारे बसा होने और चारों ओर से हरियाली व पहाड़ियों से घिरा होने के कारण ‘राजस्थान का स्वर्ग’ कहलाता है। 
अपनी प्राकृतिक सुंदरता और ऐतिहासिक धरोहरों के लिए विख्यात रावतभाटा शहर देश के सामरिक, वैज्ञानिक व औद्योगिक विकास में महत्वपूर्ण योगदान देता है। भारत के शहरी एटलस में रावतभाटा का इसलिए भी विशेष स्थान है, क्योंकि यहां स्थित राजस्थान परमाणु ऊर्जा केंद्र और भारी पानी संयंत्र, अपनी तरह के विशिष्ट संस्थान हैं जो भारत की विश्व पटल पर हैसियत बनाते हैं। क्योंकि ये संयंत्र भारत की परमाणु ऊर्जा उत्पादन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं और देश की ऊर्जा सुरक्षा में योगदान करते हैं। रावतभाटा परमाणु ऊर्जा, अनुसंधान और अपने औद्योगिक योगदान के कारण विश्वस्तर पर प्रसिद्ध है। यह भारत के सबसे बड़े और महत्वपूर्ण परमाणु ऊर्जा केंद्रों में से एक है। इन दिनों यह अपने पीएचडब्लूआर प्रेशराइज्ड हैवी वाटर रिएक्टर, संयंत्र, इसकी उन्नत टेक्नोलॉजी और फ्यूल उत्पादन के कारण अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर लगातार चर्चा में है। क्योंकि रावतभाटा एक परमाणु ऊर्जा हब में तब्दील हो चुका है, जो विकसित भारत का ऊर्जा भविष्य है। समूचे देश में परमाणु ऊर्जा के भविष्यकालिक लक्ष्य यहीं होने वाले अनुसंधानों से पूरे होंगे। 
लेकिन रावतभाटा की पहचान सिर्फ इसका परमाणु ऊर्जा हब होना भर नहीं है, इसका प्राचीन इतिहास भी आकर्षक और गौरवशाली है। हालांकि शहर की सटीक स्थापना तिथि अज्ञात है। फिर भी सदियों पुरानी अपनी स्थापत्य धरोहरों के कारण यह शहर विशिष्ट है, विशेषकर यहां स्थित बाड़ौली मंदिर समूह के कारण, जिससे पता चलता है कि शहर 9वीं और 10वीं शताब्दी में शैव पूजा का केंद्र था। रावतभाटा के अपने पर्यटन आकर्षण भी हैं। रावतभाटा में कई पर्यटन स्थल हैं जो पर्यटकों को विशेष रूप से आकर्षित करते हैं। बडौली मंदिर समूह में स्थित घाटेश्वर महादेव मंदिर की ख्याति दूर-दूर तक है। यह प्राचीन मंदिर भारतीय वास्तुकला का उत्कृष्ट उदाहरण है। इसी तरह यहां स्थित चुलिया फॉल्स, जोकि चंबल नदी पर स्थित है, मानसून के दिनों में इस प्राकृतिक झरने की सुंदरता देखते ही बनती है। ऐसा ही आकर्षण का केंद्र पाड़ाझर झरना भी है। करीब 150 फीट ऊंचाई से गिरने वाला यह झरना प्राकृतिक सौंदर्य का अद्भुत दृश्य प्रस्तुत करता है। बारिश के मौसम में यह झरना भी विशेष रूप से आकर्षक हो जाता है। 
रावतभाटा से होकर बहने वाली चंबल नदी में बना राणा प्रताप सागर बांध और इसके आसपास का क्षेत्र पिकनिक और फोटोग्राफी के लिए दस्तावेजी हो जाता है।  मगर यह बात सही है कि इस विशष्ट नगरी का सबसे बड़ा लैंडमार्क राजस्थान परमाणु ऊर्जा केंद्र ही है, जो भारत का प्रमुख परमाणु ऊर्जा संयंत्र है। यह संयंत्र न केवल ऊर्जा उत्पादन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, बल्कि शहर की पहचान का भी एक प्रमुख हिस्सा है। भारत के परमाणु ऊर्जा उत्पादन में रावतभाटा का योगदान अकेले 30 प्रतिशत से ज्यादा है। भारत में परमाणु ऊर्जा की कुल स्थापित क्षमता 7,480 मेगावाट है। जो कि भारत के कुल परमाणु ऊर्जा उत्पादन के 30 प्रतिशत या उससे कुछ ज्यादा है। भविष्य में रिएक्टर विस्तार के साथ यह योगदान और बढ़ेगा। यह छोटा सा शहर राष्ट्रीय सुरक्षा और परमाणु नीति में भी अपनी खास भूमिका निभाता है। इसकी भौगोलिक स्थिति भी इसे खास बनाती है, खासकर  सुरक्षा की दृष्टि से। यहां रक्षा अनुसंधान और परमाणु ऊर्जा आयोग की कुछ विशेष प्रयोगशालाएं भी हैं। सबसे बड़ी बात यह है कि भारत के पीएचडब्लूआर आधारित परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम का देशभर में मुख्य केंद्र है। तेजस फाइटर जेट्स और पनडुब्बियों के लिए परमाणु फ्यूल अनुसंधान से भी इसका गहरा संबंध है।
इस तरह देखा जाये तो रावतभाटा भारत के परमाणु ऊर्जा मानचित्र में एक ‘स्पाइन’ की तरह है- यह न केवल देश के सबसे बड़े परमाणु ऊर्जा केंद्रों में से एक है, बल्कि यह भविष्य के परमाणु ऊर्जा कार्यक्रमों, अनुसंधानों और फ्यूल निर्माण का भी प्रमुख केंद्र है। आने वाले सालों में रावतभाटा की भूमिका और भी बढ़ेगी, खासकर भारत के 700 मेगावाट प्रेशराईज्ड हैवी वाटर रिएक्टर विस्तार कार्यक्रम के तहत।
-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर 

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