बाल कहानी-भाषणा गुप्ता
एक सेठ बहुत लालची था। उसके पास अपार धन-दौलत थी पर फिर भी वह इसी उधेड़बुन में रहता था कि किस प्रकार अधिक धन इकट्ठा किया जाए। इसके लिए वह कुछ भी करने को तैयार हो जाता था। वह हद दर्जे का कंजूस भी था। किसी भी नौकर को तनख्वाह के अलावा कुछ नहीं देता था, यहां तक कि त्यौहारों पर भी मिठाई तक देना उसे गवारा नहीं था। नौकरों के साथ जानवरों जैसा सलूक करता था।
एक दिन सभी नौकरों ने मिलकर एक योजना बनाई। अगली सुबह उठते ही एक नौकर सेठ के पास गया व खुश होते हुए सेठ से बोला, ‘सेठ जी, हमें रात
को एक बहुत अच्छा स्वप्न आया है।’ ‘अरे क्या! तुम सुबह-सुबह फिजूल की बातें करते हो। मुझे अपना स्वप्न सुनाने क्यों आए हो?’
‘सेठजी वो इसलिए कि आपके मतलब का स्वप्न देखा हमने।’ नौकर नि:संकोच बोला।
‘अच्छा! तो जल्दी बताओ न स्वप्न में क्या देखा तुमने।’ ‘मैंने देखा कि आप संसार के सबसे अमीर आदमी बन गए हैं। दूर-दूर से लोग आपके दर्शन करने आ रहे हैं। बड़े-बड़े राजा आपको सलाम कर रहे हैं। आप सिंहासन पर बैठे मुस्करा रहे हैं।’
‘मगर...।’ नौकर ने बात अधूरी छोड़ दी।
‘मगर क्या?’ सेठ बड़ी उत्सुक्ता से बोला।
‘वो मैं नहीं बताऊंगा, मालिक।’ नौकर हिचकता हुआ बोला।
‘क्यों?’
‘क्योंकि आगे आप सुन नहीं पायेंगे।’
‘ऐसा क्या है, तुम बताओ न। तुम्हें कुछ नहीं कहा जाएगा।’
‘सेठ जी आपके सिंहासन पर बैठते ही लक्ष्मी माता आपके पास आकर कुछ दान करने को कहती हैं मगर आप मना कर देते हैं तो वे आपसे नाराज़ होकर चली जाती हैं और उनके जाते ही आप कंगाल हो जाते हैं।’ सेठ का सिर चकराने लगा। अभी वह कुछ सोच ही रहा था कि दूसरा नौकर आया व उसने भी ऐसा ही स्वप्न सुनाया।
वह बुरी तरह घबरा गया। वह सोचने लगा यदि सचमुच ऐसा हो गया तो? वह कल्पनाओं में ही खुद को फटे वस्त्र पहने, भीख मांगते देखने लगा।
उसे रात को भी नींद नहीं आई। उसने सोचा कि क्यों न नौकरों व गरीबों को कुछ संपत्ति दान कर दी जाए। सुबह उठते ही उसने शहर के निर्धन व्यक्तियों को बुलाया व उन्हें और नौकरों को वस्त्र, अनाज व थोड़ा-थोड़ा धन दान में दे दिया।
नौकर की चतुराई से सभी खुशहाल हो गए। (उर्वशी)