टेस्ट क्रिकेट में विराट का विराम

महान क्रिकेट खिलाड़ी और हर फारमेट में भारतीय क्रिकेट टीम की कप्तानी कर चुके रोहित शर्मा के बाद उनके हम सफर एवं समकक्ष एक और बड़े खिलाड़ी विराट कोहली ने भी 14 वर्षों के बाद टेस्ट क्रिकेट से सन्यास ले लिया है। इसी के साथ भारतीय क्रिकेट में एक सदी का अंत हो गया, एक युग पर पूर्णविराम लग गया। जब विराट कोहली ने टेस्ट क्रिकेट से सन्यास लेने की घोषणा की, तो न केवल क्रिकेट जगत, बल्कि करोड़ों भारतीय फैंस की आंखें नम हो गईं। टेस्ट क्रिकेट, जिसे क्रिकेट का सबसे शुद्ध रूप कहा जाता है, वहां कोहली ने खुद को एक योद्धा की तरह साबित किया। विराट कोहली जुनून, अनुशासन और आक्रामकता के प्रतीक भर नहीं थे। उनकी विदाई सिर्फ एक खिलाड़ी का जाना नहीं है, यह एक भावना का अंत है।
विराट कोहली का टेस्ट करियर 2011 में वेस्टइंडीज के खिलाफ शुरू हुआ। शुरुआती असफलताओं के बावजूद उन्होंने जल्द ही दिखा दिया कि उनके अंदर खास बात है। ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ 2012 की श्रृंखला में उनका शतक, इंग्लैंड में 2018 में पारी दर पारी लड़ना, और दक्षिण अफ्रीका में सीरीज़ जीतने की जिद को उन्होंने टेस्ट क्रिकेट को अपना रण बना लिया था। कप्तानी के तौर पर भी कोहली ने भारत को नई ऊंचाइयों पर पहुंचाया। उन्होंने 68 टेस्ट में कप्तानी की, जिनमें से 40 में भारत को जीत दिलाई। यह एक भारतीय कप्तान के रूप में सर्वाधिक है। विदेशी धरती पर भारत की टेस्ट जीत, विशेषकर ऑस्ट्रेलिया में 2018 और इंग्लैंड में चुनौतीपूर्ण ड्रॉ, कोहली की आक्रामक नेतृत्व शैली की पहचान बन गई।
कोहली के टेस्ट करियर के आंकड़े शानदार हैं। 113 टेस्ट, 8845 रन, 29 शतक और 29 अर्धशतक विराट के नाम हैं। लेकिन जो चीज उन्हें आंकड़ों से ऊपर उठाती है, वह है उनकी मानसिक दृढ़ता और खेल के प्रति निष्ठा। विराट ने टेस्ट क्रिकेट को ताज की तरह पहना। जिस दौर में टी-20 और आईपीएल के चकाचौंध ने युवाओं का ध्यान खींचा, कोहली टेस्ट को ‘बेस्ट फॉर्मेट’ मानते रहे। वह अक्सर कहते थे कि अगर आपको एक असली बल्लेबाज बनना है, तो टेस्ट क्रिकेट में खुद को साबित करना होगा।
यह कहना अतिशियोक्ति नहीं है कि कोहली सिर्फ एक बल्लेबाज नहीं, बल्कि एक लीडर थे। उनकी आक्रामकता ने टीम इंडिया को नया तेवर दिया। उन्होंने खिलाड़ियों को डर से नहीं, प्रेरणा से नेतृत्व किया। जसप्रीत बुमराह, मोहम्मद शमी जैसे गेंदबाजों को टेस्ट में हथियार बनाना और अजिंक्य रहाणे, चेतेश्वर पुजारा जैसे खिलाड़ियों पर भरोसा करना कोहली की रणनीतिक सूझबूझ का हिस्सा था। विराट ने फिटनेस संस्कृति को भारतीय टीम में जड़ से बदल दिया। ‘यो-यो टेस्ट’ को अनिवार्य करना, खुद को हर मैच के लिए तैयार रखना और दूसरों से भी वही उम्मीद रखना, यही विराट का मानक था। उनके लिए भारतीय टीम सिर्फ एक जर्सी नहीं थी, वह एक जज्बा था।
विराट ने जब अपने सोशल मीडिया पोस्ट में टेस्ट सन्यास की घोषणा की, तो शब्दों से ज्यादा भावनाएं थीं। उन्होंने लिखा, ‘यह खेल मुझे सब कुछ दे गया, लेकिन अब समय है कि मैं अगली पीढ़ी को स्थान दूं। मैंने अपना दिल और आत्मा इस प्रारूप को दिया है। अब मुझे अपने जीवन का नया अध्याय शुरू करना है।’ फैंस के लिए यह खबर बिजली की तरह थी। चाहे चेन्नई हो या मेलबर्न, लॉर्ड्स हो या कोलकाता, हर मैदान जहां विराट ने गगनभेदी गर्जना की, आज शांत था। स्टेडियम की भीड़, जिनके ‘कोहली, कोहली’ के नारे आसमान गूंजते थे, अब एक आखिरी बार खड़े होकर सलाम कर रही थी।
खैर, बात विराट के सन्यास के बाद के टेस्ट क्रिकेट की कि जाये तो टेस्ट मैच से विदाई के बाद भी विराट कोहली भारतीय क्रिकेट से दूर नहीं होंगे। वह युवाओं के लिए प्रेरणा रहेंगे, मैदान पर नहीं तो उनके दिलों में। उनकी जीवटता, संघर्षशीलता और ‘कभी न हार मानने’ की भावना अगली पीढ़ी के लिए मार्गदर्शक रहेगी। विराट की यात्रा सिर्फ क्रिकेट तक सीमित नहीं रही। वे आज भी सोशल कार्यों, स्वास्थ्य, फिटनेस और युवा सशक्तिकरण के प्रतीक हैं। उन्होंने दिखा दिया कि कैसे एक खिलाड़ी अपने खेल से बाहर निकलकर समाज पर सकारात्मक प्रभाव डाल सकता है। लब्बोलुआब यह है कि टेस्ट क्रिकेट विराट कोहली के बिना अधूरा लगेगा, लेकिन उनकी विरासत हर युवा बल्लेबाज की आंखों में चमकेगी, हर गेंदबाज की चुनौती में दिखेगी और हर भारतीय फैन के दिल में धड़कती रहेगी। उन्होंने बल्ले से जो लिखा, वो सिर्फ स्कोरबोर्ड पर नहीं, इतिहास की किताबों में दर्ज हो गया है।

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