भारत-पाक युद्ध : पाक के एयरबेसों को हिट करना निर्णायक रहा
इतालवी जनरल गिउलिओ डौहेट की वर्ष 1921 में प्रकाशित पुस्तक ‘द कमांड ऑ़फ द एयर’ की बहुत सी बातें तो अब बेशक पुरानी पड़ गई हैं, लेकिन उनका यह अनुमान आज अधिक प्रासंगिक हो गया है कि भविष्य में युद्ध के दौरान वायु शक्ति दुश्मन की कमर तोड़ने के लिए लगभग प्रलय जैसा हथियार होगी। पाकिस्तान से चार दिन के टकराव में भारतीय वायु सेना ने इसी कथन की सत्यता को साबित किया। यह सही है कि ऑपरेशन सिंदूर की सम्पूर्ण व विस्तृत जानकारी अगले कुछ माह में ही सामने आ सकेगी, जोकि किसी भी टकराव का सामान्य हिस्सा है, लेकिन कुछ उपयोगी निष्कर्ष अभी से निकाले जा सकते हैं। एक, भारतीय वायु सेना ने सक्षम दुश्मन के विरुद्ध प्रभावी आक्रामक व रक्षात्मक ऑपरेशंस अंजाम दिए और अपने स्ट्रेटेजिक उद्देश्यों की पूर्ति करते हुए इस बात का भी ख्याल रखा कि टकराव ़गैर-ज़रूरी तौर पर बढ़े नहीं। दूसरा, भविष्य के टकराव अलग किस्म के होंगे। इन हवाई हमलों से पाकिस्तान व चीन दोनों सबक सीखेंगे और अनुकूलन का प्रयास करेंगे। इसके अतिरिक्त नई क्षमताएं वायु शक्ति के चरित्र को तेज़ी से परिवर्तित कर रही हैं। गौरतलब है कि गिउलिओ डौहेट की हवाई युद्ध कहानी के दो फेनोमेनन आज भी स्थायी विषय हैं- दुश्मन के क्षेत्र में एयरक्राफ्ट व मिसाइल से गहराई तक वार करना और अपने ऊपर ऐसे ही हमले को हवा में ही रोक देना। भारत की ओर से यह दोनों बातें पाकिस्तान के विरुद्ध नाटकीय टकराव के दौरान देखने को मिलीं।
पाकिस्तान ने स्वीकार किया है कि भोलारी, सिंध में स्थित उसके रहीम यार खान एयरबेस को भारतीय मिसाइल ने पूरी तरह से नष्ट कर दिया, जिससे उसका एयर डिफेंस इंफ्रास्ट्रक्चर बर्बाद हो गया और एक स्क्वाड्रन लीडर सहित उसकी वायु सेना के 5 जवान भी मारे गये। चूंकि यह एयरबेस इसी नाम के अंतर्राष्ट्रीय एयरपोर्ट के भीतर था इसलिए भारत ने हमला रात के ऐसे समय में किया जब किसी नागरिक के मारे जाने की आशंका सबसे कम थी। इससे ज़ाहिर होता है कि भारतीय सेना कितनी अधिक ज़िम्मेदार है। भारतीय अधिकारियों ने इस ज़िम्मेदारी का परिचय उस वक्त भी दिया जब युद्धविराम के बाद प्रोपगंडा युद्ध को गर्म करने के उद्देश्य से पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ ने ‘ऐतिहासिक जीत’ की घोषणा की। लेकिन भारतीय अधिकारियों ने ज़बानी तीर नहीं चलाये और अपने शब्दों को लेकर वही संयम व्यक्त किया, जो विदेश सचिव विक्रम मिसरी, कर्नल सोफिया कुरैशी व विंग कमांडर व्योमिका सिंह ने ऑपरेशन सिंदूर के दौरान पाकिस्तान के 9 आतंकी अड्डों को ध्वस्त करने की सूचना देते हुए किया था। हालांकि नैरेटिव की जंग से चिंतित भारतीयों का एक वर्ग इस संयम से निश्चितरूप से असहमत होगा, लेकिन इसे भारत की परिपक्वता के रूप में देखना चाहिए।
एक प्रमुख अर्थव्यवस्था और उभरती हुई सैन्य शक्ति के रूप में भारत को ज़रूरत नहीं है कि वह अपनी ताकत का प्रदर्शन बड़बोले शब्दों से करे। गौर कीजिये कि 11 मई 2025 की प्रेस कांफ्रैंस में एयर मार्शल एके भारती ने पाकिस्तान को पहुंचाये गये नुकसान को बढ़ा-चढ़ाकर पेश नहीं किया- ‘हमारा काम टारगेट को हिट करना है, शव ताबूतों को गिनना नहीं।’ ध्यानपूर्वक मूल्यांकन, विचारपूर्वक एक्शन और नपे-तुले वक्तव्यों की यह नीति भारत के बढ़ते ग्लोबल कद के अनुरूप है। इसके विपरीत पाकिस्तान उधार पर जिंदा है और उसे अपने हौसले को बनाये रखने के लिए झूठ का सहारा लेना पड़ता है।
सवाल यह है कि क्या ऑपरेशन सिंदूर ने अपना लक्ष्य हासिल किया? इसका जवाब है- हां। याद कीजिये 7 मई, 2025 की सुबह 25-मिनट के ऑपरेशन के बाद भारत ने क्या कहा था- वह ‘नपी तुली व युद्ध न बढ़ाने वाली, अनुपातिक व ज़िम्मेदारी भरी’ स्ट्राइक थी आतंकी इंफ्रास्ट्रक्चर को ध्वस्त करने के लिए; नागरिक व सैन्य ठिकानों को निशाना नहीं बनाया गया। इसका सीधा सा अर्थ है कि युद्ध तो लक्ष्य था ही नहीं। इसके बावजूद नतीजे का मूल्यांकन करने का एक अन्य तरीका यह है कि नुकसान का हिसाब लगाया जाये। पाकिस्तान की गोलीबारी में कुछ भारतीयों की जानें अवश्य गईं, जिसका अफसोस है, लेकिन कुल मिलाकर भारत को लगभग कोई नुकसान नहीं हुआ। हमारी एयर डिफेंस ने शानदार काम किया। फिर जब भारत ने मुंहतोड़ जवाब देने का फैसला किया तो पाकिस्तान की एयरबेसों में गहरे गड्ढे कर दिए, विशेषकर नूर खान एयरबेस में जोकि पाकिस्तान के परमाणु कमांड सेंटर के करीब है।
कुछ लोग निराश हैं कि भारत बढ़त की स्थिति में होते हुए ऑपरेशन को रोकने के लिए सहमत हो गया, लेकिन ऐसे लोगों को मालूम होना चाहिए कि हर टकराव राष्ट्र निर्माण के बुनियादी लक्ष्य से भटका देता है। ऑपरेशन सिंदूर के सभी लक्ष्यों और उससे भी अधिक हासिल करने के बाद, वह भी न के बराबर मानव व मटेरियल नुकसान के, अक्लमंदी यही थी कि टकराव पर विराम लगा दिया जाता। पाकिस्तान के विपरीत हमारे भविष्य के स्टेक्स कहीं अधिक बड़े हैं। इससे भी बढ़कर बात यह है कि ऑपरेशन सिंदूर के बाद पाकिस्तान को अपने प्रॉक्सी युद्ध की कीमत का आंकलन ध्यानपूर्वक करना पड़ेगा। भारत ने स्पष्ट कर दिया है कि अब से हर आतंकी हरकत युद्ध का हिस्सा मानी जायेगी। इसका अर्थ यह नहीं है कि हम हर बार सैन्य ऑपरेशन लांच करेंगे, लेकिन हम जिस भी प्रतिक्रिया का चयन करें उसका हमें अधिकार होगा।
भारत व पाकिस्तान के बीच टकराव को रुकवाने का पूरा श्रेय अमरीका के राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रम्प ले रहे हैं। लेकिन इस बात के पुख्ता संकेत हैं कि वह अपनी व अमरीका की भूमिका को बढ़ा-चढ़ाकर पेश कर रहे हैं। अब वह दोनों भारत व पाकिस्तान के साथ व्यापार को बढ़ाना चाहते हैं। ट्रम्प के दूसरे कार्यकाल के अभी चार माह हुए हैं और उनकी विदेश नीति से हर कोई परिचित हो गया है। उनके लिए कोई अछूत नहीं है। किसी से भी डील की जा सकती है। यूक्रेन-रूस युद्ध में भी उनका यही नज़रिया रहा है, मास्को से सीधी डिप्लोमेसी शुरू कर दी है। हूतियों पर बम बरसाने के बाद उनसे भी डील कर ली है। अब हमास से भी डील की सुगबुगाहट है, जिसमें हमास को हथियार त्यागने की ज़रूरत न होगी। ज़ाहिर है कि ट्रम्प को इस बात से फर्क नहीं पड़ता कि वह किससे डील कर रहे हैं लेकिन इसके बावजूद भारत व पाकिस्तान को बराबर समझना चिंताजनक है, विशेषकर पाकिस्तान की आतंक के साथ सांठगांठ को देखते हुए। पाकिस्तान लम्बे समय से ग्लोबल आतंक का केंद्र है और इससे अमरीका को भी नुकसान पहुंचा है। ओसामा बिन लादेन पाकिस्तान में शरण लिए हुए था। पाक-स्थित हक्कानी नेटवर्क ने अनेक अमरीकी सैनिकों की हत्या की। पाकिस्तान दीवालिया हो चुका है जबकि लोकतांत्रिक भारत विश्व की चौथी बड़ी अर्थव्यवस्था है। ट्रम्प को यह अंतर समझना चाहिए।
-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर