एमएसपी की घोषणा कृषि हित में सही फैसला

केन्द्र सरकार द्वारा खरीफ  फसलों की न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की घोषणा खरीफ की बुवाई से पहले ही करने को किसानों के हित में सकारात्मक पहल के रुप में देखा जाना चाहिए। इसमें कोई दो राय नहीं कि नरेन्द्र मोदी सरकार द्वारा एक तो समय पूर्व समर्थन मूल्यों की घोषणा की जा रही है वहीं दूसरी और भविष्य की रणनीति के तहत आवश्यकतानुसार उत्पादन बढाने के लिए किसानों को प्रोत्साहित करने की दिशा में भी कदम बढ़ाये जा रहे हैं। सरकार द्वारा श्री अन्न को जहां अंतर्राष्ट्रीय पहचान दिलाने का सफल प्रयास किया गया है, वहीं देश को दलहन और तिलहन के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में भी सार्थक प्रयास किये जा रहे हैं। 2027 तक दलहन के क्षेत्र में देश को आत्मनिर्भर बनाने के लक्ष्य के साथ सरकार आगे बढ़ रही है तो तिलहन के क्षेत्र में भी उल्लेखनीय प्रयास किये जा रहे हैं। सरकार की गंभीरता को इसी से समझा जा सकता है कि आगामी खरीफ  के लिए घोषित न्यूनतम समर्थन मूल्य में रामतिल के दाम में सर्वाधिक 820 रुपये की बढ़ोतरी करते हुए 9537 रुपये प्रति क्विंटल एमएसपी घोषित की गई है। इसी तरह से तिल की एमएसपी में 579 रुपये, सोयाबीन में 436 रुपये, सूरजमुखी में 441 रुपये और मूंगफली के एमएसपी में 480 रुपये की बढ़ोतरी की गई है। ठीक इसी तरह से उड़द में 400 रुपये तो मूंग की एमएसपी में 86 रुपये और अरहर की एमएसपी में 450 रुपये की बढ़ोतरी की गई है। इसी तरह से बाजरा, रागी, ज्वार, कपास, धान आदि अन्य खरीफ  फसलों की एमएसपी दरों में बढ़ोतरी की गई है। 
इसमें कोई दो राय नहीं कि जहां तक एमएसपी दराें की घोषणा की बात है, सरकार की इच्छा शक्ति पर किसी तरह का संदेह नहीं किया जा सकता है। मोदी सरकार के 2013-14 से 2025-26 तक के कार्यकाल की एमएसपी दरों में बढ़ोतरी निश्चित रुप से सकारात्मक दिशा में बढ़ता कदम माना जा सकता है। 2013-14 की तुलना में 226 प्रतिशत की बढ़ोतरी रागी के समर्थन मूल्य में की गई है। बाजरा में 122 प्रतिशत तो ज्वार की एमएसपी में 147 प्रतिशत तक की बढ़ोतरी हो चुकी है। दलहन और तिलहन की खरीफ  फसलों में भी 82 प्रतिशत से रामतिल में 172 प्रतिशत तक की वृद्धि हुई है। सरकार का यह भी दावा है कि एमएसपी घोषणा करने से पहले सरकार ने फसलों की लागत के सभी पहलुओं को ध्यान में रखा है और लागत से कहीं अधिक एमएसपी दर जारी की गई है। 
किसान आंदोलनों के दौरान सबसे अहम् मुद्दा एमएसपी को लेकर ही रहता आया है। सरकार एक और एमएसपी दरों में बढ़ोतरी और एमएसपी पर खरीद का दावा कर रही है और यह दावा एक हद तक सही भी है पर दूसरी ओर किसान नेताओं का यह कहना रहा है कि सरकार एमएसपी दरों की घोषणा के साथ ही एमएसपी पर खरीद की व्यवस्था भी सुनिश्चित करे। केन्द्र सरकार की ओर से एफसीआई और नेफैड एमएसपी खरीद के लिए नोडल संस्था है तो कपास की खरीद सीसीआई द्वारा की जाती है। राज्यों में एफसीआई व नेफैड के लिए खरीद सुविधा में राज्यों की सहकारी विपणन संस्थाएं प्रमुखता से सहभागी रहती है। खरीद की व्यवस्था को भी पारदर्शी और ऑनलाईन कर दिया गया है और रजिस्ट्रेशन से लेकर सीधे खातों में भुगतान तक की व्यवस्था ऑनलाईन की गई है, परन्तु कहीं ना कही व्यवस्था में झोल अवश्य है। इसको यूं समझा जा सकता है कि एक समय था तब सरकारी खरीद शुरू होने की घोषणा और लगभग 10 से 15 प्रतिशत उत्पादन की खरीद होते-होते मण्डियों में दाम एमएसपी के आसपास आ जाते थे। इसका परिणाम यह होता था कि न तो किसानों की नाराज़गी रहती थी और न ही अन्य कोई समस्या आती थी परन्तु आज खरीद व्यवस्था के पारदर्शी होने के बावजूद किसान अपने आप को ठगा महसूस करता है। इसका एक बड़ा कारण तो यह है कि बाजरा आदि की खरीद तो सरकार द्वारा किसी ना किसी बहाने टाल ही दी जाती है क्योंकि बाजरे की खरीद के बाद रखरखाव का संकट रहता है और सरकार का मानना है कि उसे नुकसान अधिक होता है क्योंकि खरीदा हुआ बाजरा जल्दी खराब हो जाता है। वहीं दूसरी और व्यवस्था को लाख पारदर्शी और जवाबदेह बनाने के बावजूद बिचोलिये इस व्यवस्था का भरपूर लाभ उठाते देखे जाते हैं। कहीं-कहीं तो खरीद केन्द्रों पर जितनी मात्रा में खरीद हो रही है, वह उस क्षेत्र में उत्पादित पैदावार से भी अधिक हो जाती है। इसके साथ ही किसानों की तात्कालीक आवश्यकताओं के कारण आढ़़तियों पर निर्भरता के कारण भी किसान का लाभ आढ़ती ले जाते रहे हैं। हालांकि यह व्यवस्था का ही दोष माना जा सकता है। होना तो यह चाहिए कि जिन फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य की घोषणा सरकार द्वारा की जाती है उन फसलों के तैयार होकर मण्डियाें में आने से पहले ही सरकार को खरीद की आवश्यक तैयारियां पूरी कर लेनी चाहिएं। खरीद के लिए खरीद केन्द्र की स्थापना, तुलाई-ढुलाई की व्यवस्था, बारदाना, ट्रांसपोर्टेशन, भण्डारण, भुगतान की व्यवस्था, बैंकों से भुगतान आदि की व्यवस्था, खरीद केन्द्रों पर पीने के लिए पानी आदि की व्यवस्था सहित सभी आवश्यक तैयारियां सुनिश्चित हो जानी चाहिएं। इसके साथ ही आज सरकार के पास उत्पादन का पूरा डेटा उपलब्ध होता है। ऐसे में संभावित खरीद का आकलन भी सुनिश्चित हो जाना चाहिए। 

-मो. 94142-40049

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