मस्क का त्याग-पत्र

अमरीका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने दूसरी बार राष्ट्रपति का पद 20 जनवरी, 2025 को ग्रहण किया था। इससे पहले वह वर्ष 2016 में देश के राष्ट्रपति चुने गए थे और उन्होंने 20 जनवरी, 2017 को अपना पद ग्रहण किया था, परन्तु उनकी तेज़-तर्रार नीतियों और अक्सर नासमझी भरे शब्दों ने उस समय दुनिया में व्यापक चर्चा छेड़ दी थी, क्योंकि अमरीका विश्व भर में सबसे शक्तिशाली देश माना जाता है। इसकी हर तरह की नीतियों का दुनिया भर के देशों पर प्रभाव पड़ता है। बड़ी अन्तर्राष्ट्रीय संस्था संयुक्त राष्ट्र संघ को भी अमरीका से आर्थिक सहयोग मिलता है। और अन्य बड़ी संस्थाओं के साथ भी यह देश जुड़ा रहा है। एक प्रभावशाली देश होने के कारण दर्जनों ही अन्य छोटे देश कई तरह से इस पर निर्भर हैं। 
दुनिया में फैले आतंकवाद की चुनौती का मुकाबला करने के लिए भी अक्सर अमरीका की ओर देखा जाता है। राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के पहले कार्यकाल के दौरान भी उनकी नीति अमरीका केन्द्रित ही रही थी। अभिप्राय अपनी अन्तर्राष्ट्रीय ज़िम्मेदारियों को अनदेखा करके सबसे पहले प्राथमिकता अपने देश को और शक्तिशाली और अमीर बनाने का यत्न करना। इसके साथ एक बार तो उनके पहले कार्यकाल के दौरान भी देश का प्रबन्धकीय ताना-बाना बिखर गया महसूस होने लगा था। शक्तिशाली देश का राष्ट्रपति होने के कारण उस समय डोनाल्ड ट्रम्प की नीति दुनिया के अन्य अनेक देशों को दरपेश समस्याओं के प्रति बातचीत करने या अपने सहयोगी देशों से विचार-विमर्श करने की बजाय, उन्हें एक तरह से धमकाने या आदेश देने की रही थी। इन नीतियों से अन्तर्राष्ट्रीय स्तर भी और उनके अपने देश में भी बड़ी प्रतिक्रिया हुई थी और डोनाल्ड ट्रम्प अपने उस कार्यकाल में भी बहुत विवादास्पद राष्ट्रपति बन गए थे।
शायद इसी कारण उनकी 2020 में राष्ट्रपति के पद के लिए पुन: हुए चुनावों में हार हुई थी और डैमोक्रेटिक पार्टी के जो बाइडन राष्ट्रपति बन गए थे। उस समय भी चुनावों के परिणाम आने के बाद जिस तरह का रवैया ट्रम्प व उनके साथियों ने धारण किया था, वह सैकड़ों वर्षों से देश में बनी लोकतांत्रिक पम्पराओं के विपरीत था, जिस कारण बाद में डोनाल्ड ट्रम्प को लम्बी अवधि तक अदालतों के चक्कर भी लगाने पड़े थे। उसके बाद 2024 के राष्ट्रपति चुनावों में अमरीका के लोगों ने एक बार फिर उन्हें जीत दिलाई परन्तु इस बार वह मात्र 5 महीने के शासनकाल में ही बेहद विवादास्पद व्यक्ति बन गए हैं। उनकी आंतरिक और अन्तर्राष्ट्रीय नीतियों से बड़ा रोष पैदा हुआ है। पद ग्रहण करते ही उनकी ओर से अपने पड़ोसी देश ग्रीनलैंड को कब्ज़े में लेने और कनाडा जैसे बड़े क्षेत्रफल वाले देश को अपना 51वां राज्य बना लेने के बयानों ने इन देशों और इनके भागीदारों को ट्रम्प के विरुद्ध ला खड़ा किया। उनकी ओर से दुनिया भर के देशों पर एकतरफा टैरिफ लगाने की नीति ने भी आज ज्यादातर देशों को उनके प्रशासन के खिलाफ कर दिया है। इसमें चीन जैसा बड़ा देश भी शामिल है और भारत भी इससे प्रभावित हुआ है। सबसे अधिक प्रभाव यूरोपीय देशों पर पड़ा है। यूरोपीय यूनियन के देश भी विश्व में एक बड़ी शक्ति के रूप में उभरे हैं। चाहे ब्रिटेन कुछ वर्ष पहले इस यूरोपीय यूनियन से अलग हो गया था, परन्तु वह भी ज़्यादातर मामलों में पड़ोसी देशों के साथ ही दम भरता है। डोनाल्ड ट्रम्प की नीतियों के कारण आज यूरोप के ज़्यादातर देश उनकी आलोचना भी कर रहे हैं और अमरीका संबंधी अपनी नीतियों पर पुनर्विचार करके अपने देशों को नई दिशा की ओर ले जाने का भी यत्न कर रहे हैं। डोनाल्ड ट्रम्प विश्व के बड़े व्यापारियों में से एक हैं। इस बार उन्होंने अपने चुनाव अभियान में विश्व के सबसे अमीर व्यक्ति एलन मस्क को भी अपना साथी बनाया था, जिन्होंने उनके चुनाव अभियान में बड़ी आर्थिक सहायता भी की थी। सरकार बनने के बाद उन्होंने एलन मस्क को सरकार द्वारा देश में किए जाते फिज़ूल खर्च के साथ-साथ अंतर्राष्ट्रीय तौर पर भी किए जाते अनावश्यक खर्च को नियमित करने के लिए बने विभाग का प्रमुख नियुक्त कर दिया था। 
एलन मस्क ने इस समय चाहे यह खर्च कम करने के लिए बड़े कदम उठाए थे, परन्तु ऐसा करते हुए उन्होंने देश में जन-कल्याण की योजनाओं तथा अंतर्राष्ट्रीय मंच पर अमरीका की ज़िम्मेदारियों को दृष्टिविगत कर दिया। संयुक्त राष्ट्र संघ सहित बड़े अंतर्राष्ट्रीय मंच जो विश्व भर में मामलों का समाधान करने के लिए यत्नशील हैं, को दृष्टिविगत करने की नीति ने अमरीका के खिलाफ नई कतारबंदी को जन्म दिया है। अमरीकी विश्वविद्यालयों के साथ भी ट्रम्प का टकराव बढ़ता जा रहा है, वहां के बड़े विश्वविद्यालयों की अपनी आज़ाद हस्ती तथा परम्परा लम्बी अवधि से बनी हुई है। राजनीतिक आधार पर ट्रम्प द्वारा हार्वर्ड विश्वविद्यालय में किए जा रहे हस्तक्षेप ने देश के विश्वविद्यालयों के प्रबंधकों को हैरान-परेशान कर दिया है। 
इसके अतिरिक्त अमरीकी प्रशासन द्वारा जनहित नीतियों को दृष्टिविगत करने के कारण हो रही आलोचना के दृष्टिगत एलन मस्क को भी अपने पद से इस्तीफा देने की घोषणा करनी पड़ी है। अब प्रश्न यह पैदा होता है कि यदि लगभग 5 महीने के अपने शासन में ही डोनाल्ड ट्रम्प ने अपनी नीतियों से अपने देश और दुनिया के अन्य बहुत-से देशों को अस्थिर कर दिया है तो शेष रहते समय में वह ऐसी नीतियों पर चलते हुए अमरीका तथा विश्व के अन्य देशों में किस तरह का माहौल बना देंगे, यह सोच कर विश्व में बड़ी चिन्ता उत्पन्न हो रही है, जिसका नि:संदेह निकट भविष्य में अमरीका पर भी व्यापक स्तर पर प्रभाव पड़ने की सम्भावना से इन्कार नहीं किया जा सकता।      

—बरजिन्दर सिंह हमदर्द 

#मस्क का त्याग-पत्र