पाक अधिकृत कश्मीर हासिल करना सरकार का अगला लक्ष्य !
रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने 29 मई, 2025 को दिल्ली में आयोजित भारतीय उद्योग परिसंघ (सीआईआई) के ‘बिजनेस समिट’ में पाकिस्तान के कब्ज़े वाले कश्मीर के लोगों को भारतीय परिवार का हिस्सा बताते हुए कहा कि वह दिन दूर नहीं जब वह भारत की मुख्यधारा में लौट आएंगे। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि पाकिस्तान के साथ वार्ता अब केवल आतंकवाद और पीओके के मुद्दों पर ही होगी। रक्षा मंत्री ने कहा, ‘पाक अधिकृत कश्मीर (पीओके) के लोग हमारे अपने हैं, हमारे परिवार का हिस्सा हैं।’ उन्होंने यह भी कहा कि हम एक भारत श्रेष्ठ भारत के संकल्प के प्रति प्रतिबद्ध हैं और हमें पूरा विश्वास है कि हमारे जो भाई आज भौगोलिक और राजनीतिक रूप से हमसे अलग हैं, वे भी किसी न किसी दिन अपनी अंतरात्मा की आवाज़ सुनकर, आत्म-सम्मान के साथ भारत की मुख्यधारा में लौट आएंगे।
संदेश साफ है, अब कूटनीति के ज़रिए पीओके को वापिस लाने की तैयारी है और रक्षा मंत्री ने तो यहां तक कह दिया कि पीओके हिन्दुस्तान और जम्मू-कश्मीर के विकास को देखकर खुद आवाज़ उठाएगा और कहेगा कि ‘मैं भारत का हिस्सा हूं और भारत में शामिल होकर रहूंगा।’ यह बयान किसी सामान्य नेता का नहीं है बल्कि देश के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह का है जो बेहद गंभीरता के साथ अपनी बात रखने के लिए जाने जाते हैं। यहीं से सवाल पैदा होता है कि क्या वाकई पीओके खुद वापिस आएगा, लेकिन यह होगा कैसे? ऐसा नहीं है कि सिर्फ रक्षा मंत्री ने ऐसा बयान दिया है। 10 दिन के भीतर प्रधानमंत्र मोदी दो बार पीओके का जिक्र कर चुके है। इससे साफ पता चलता है कि भारत का अगला कदम पीओके की वापसी है।
भारत ने पहलगाम हमले का पाकिस्तान को करारा जवाब दिया है। लेकिन एक बड़ा सवाल पाक अधिकृत कश्मीर (पीओके) की वापसी को लेकर है। भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और गृहमंत्री अमित शाह ने कहा है कि अब पाकिस्तान से बात होगी तो पीओके और आतंकवाद पर ही बात होगी। पाकिस्तान को जल्द ही पीओके खाली करना होगा। अब सवाल है कि पीओके को भारत में शामिल करने के क्या रास्ते हो सकते हैं और इसमें क्या अड़चनें आ सकती हैं? देखा जाए तो पीओके को भारत में शामिल करने के दो ही रास्ते हैं—पहला पाकिस्तान से बातचीत के ज़रिये यह क्षेत्र खाली कराया जाए जो कि संभव नहीं है, तब दूसरा विकल्प युद्ध ही बच जाता है। पाक अधिकृत कश्मीर को भारत में शामिल करने या उस पर नियंत्रण स्थापित करने की बात केवल भावनात्मक या राजनीतिक नहीं है बल्कि इसमें कई जटिल रणनीतिक, सैन्य, दुर्गम क्षेत्र, कूटनीतिक और अंतर्राष्ट्रीय पहलू शामिल हैं। पीओके को पुन: प्राप्त करने में भारत को अनेक बाधाओं का सामना करना पड़ेगा।
पीओके में व्यापक स्तर पर पाकिस्तानी सेना की मौजूदगी है। इसी के साथ ही यहां पर आतंकवादियों के कई अड्डे हैं जिनके पास अत्याधुनिक हथियार हैं। भारत को इस क्षेत्र पर नियंत्रण पाने के लिए एक बड़े सैन्य अभियान की आवश्यकता होगी। पीओके पाकिस्तान को अपना अभिन्न हिस्सा मानता है और उसने इस कब्ज़े वाले कश्मीर पर आतंकवादियों के ट्रेंनिंग सेंटर बना रखे हैं। इसी के साथ ही चीन को अलग-थलग करने के लिए उसकी मंशा और उसके कार्यशैली को अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के समक्ष उजागर करना होगा। चीन-पाकिस्तान अर्थिक गलियारा (सीपीईसी) पर वैध आपत्ति दर्ज कराना और चीन को गिफ्ट में मिले क्षेत्र पर अपने दावे को मज़बूत करना। इस सभी मुद्दों को लेकर अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर भारत का पक्ष मज़बूत करना ज़रूरी है—जैसे संयुक्त राष्ट्र, जी-20, एससीओ, ब्रिक्स आदि जगहों पर इन मुद्दों को सबूत और तथ्यों के साथ प्रस्तुत करना, अमरीका, रूस, यूरोपीय संघ और मुस्लिम देशों के साथ द्विपक्षीय वार्ता के माध्यम से अपने पक्ष को रखना, पीओके में लोगों पर हो रहे अत्याचारों को उजागर करना और विश्व मीडिया को स्वतंत्र रिपोर्टिंग की अनुमति देने की मांग करना आदि।
भारत को पूर्ण तैयारी करनी होगी। इसके लिए उसके पास सबसे पहले बलूचों और पख्तूनों तथा अफगानिस्तान का पूर्ण समर्थन हासिल करने की विस्तृत योजना होना ज़रूरी है। कम से कम 1 वर्ष से 2 वर्ष के युद्ध की पूर्ण तैयारी जरूरी है। भारतीय सेना को बांग्लादेशी फं्रट और चीन की सीमा पर भी अपनी तैनाती को पहले से ही बढ़ाकर रखना होगा। इसी के साथ ही इसका प्लान भी तैयार रखना होगा कि यदि बांग्लादेश से किसी भी प्रकार की सैन्य या आतंकी कार्रवाई होती है तो उससे कैसे निपटा जाए? जब किसी समस्या का समाधान टेबल पर नहीं हो तो मैदान में उतरना ज़रूरी होता है। (अदिति)