सुप्रीम कोर्ट में स्टालिन को फिर मिली जीत
तमिलनाडु में अगले साल विधानसभा के चुनाव होने वाले हैं और उससे पहले मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन को केंद्र सरकार के खिलाफ मुकद्दमे में सुप्रीम कोर्ट से लगातार बड़ी जीत मिल रही है। सुप्रीम कोर्ट ने तमिलनाडु स्टेट मार्केटिंग कॉरपोरेशन में हुए कथित घोटाले की जांच के मामले में प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) को कड़ी फटकार लगाई। सुप्रीम कोर्ट के प्रधान न्यायाधीश की पीठ ने न सिर्फ जांच पर रोक लगा दी, बल्कि यह भी कहा कि एजेंसी सारी हदें पार कर रही है। सर्वोच्च अदालत ने कहा की ईडी ने संघीय व्यवस्था का भी ख्याल नहीं रखा। इस फैसले का तमिलनाडु सरकार और डीएमके ने स्वागत किया और इसे एक बड़ी जीत की तरह प्रचारित किया। इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने राज्य विधानसभा से पारित विधेयकों को लंबित रखने के मामले में एक बड़ा और ऐतिहासिक फैसला सुनाया था। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि राज्यपाल के पास पॉकेट वीटो नहीं है कि वह विधानसभा से पारित विधेयकों को अनंतकाल तक लटका कर रखें। अदालत ने कहा कि राज्यपाल को एक निश्चित अवधि में इस पर फैसला करना होगा। साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि राष्ट्रपति को भी तीन महीने में इस पर फैसला करना होगा। इस मामले में राष्ट्रपति ने अनुच्छेद 143 के तहत सुप्रीम कोर्ट को रेफ रेंस भेजा, लेकिन अदालत के फैसले के साथ ही राज्यपाल के रोके हुए 10 विधेयकों को अपने आप मंजूरी मिल गई। यह राज्य सरकार और डीएमके की बड़ी जीत थी।
भाजपा के सिंदूरी अरमान पर फिरा पानी
भाजपा का सिंदूर खेला शुरू होने से पहले ही खत्म हो गया! पाकिस्तान और उनके कब्ज़े वाले कश्मीर में आतंकवादी ठिकानों पर हुई सैन्य कार्रवाई यानी ऑपरेशन सिंदूर को लेकर भाजपा की योजना थी कि वह इसका पूरे देश में उसी अंदाज़ में प्रचार करेगी, जिस तरह अयोध्या में राम मंदिर के उद्घाटन से पहले राम मंदिर की तस्वीर और पूजा सामग्री देश भर में घर-घर पहुंचाई गई थी। उससे पहले नब्बे के दशक में भाजपा ने गांव-गांव में राम शिला पूजन कराया था। इस बार उसी तरह घर-घर सिंदूर पहुंचाने की तैयारी थी। मोदी सरकार के तीसरे कार्यकाल की पहली वर्षगांठ के दिन 9 जून से यह कार्यक्रम शुरू होने वाला था, लेकिन इस कार्यक्रम की खबर देश के एक बड़े हिंदी अखबार में छपते ही तीखी प्रतिक्रिया हुई। कांग्रेस सहित कई विपक्षी पार्टियों ने इस पर कड़ी आपत्ति जताई। सबसे तीखी प्रतिक्रिया पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने व्यक्त की। उन्होंने कहा, ‘हर स्त्री का आत्म सम्मान होता है। वे अपने पति से सिंदूर लेती हैं। मोदी जी, आप हर महिला के पति नहीं हैं, आपने अपनी पत्नी को सिंदूर क्यों नहीं दिया?’ यही सवाल सोशल मीडिया में भी लोगों ने मोदी की पत्नी की तस्वीर लगाते हुए मोदी से किया। इस सबसे भाजपा को एहसास हो गया कि यह दांव उलटा पड़ सकता है, लिहाजा अखबार में खबर छपने की तीसरे दिन उसकी ओर से कहा गया कि अखबार में छपी खबर फेक है और भाजपा का घर-घर सिंदूर पहुंचाने का कोई कार्यक्रम नहीं है।
दिल्ली में मज़बूत सरकार की बेबसी
दिल्ली में जब आम आदमी पार्टी की सरकार थी तब उसके सभी फैसलों पर उप-राज्यपाल या तो रोक लगा देते थे या अपने हिसाब से मंज़ूरी देते थे। केजरीवाल सरकार को कार्यालय के लिए स्टेशनरी खरीदने की फाइल भी उप-राज्यपाल के पास भेजनी होती थी। फिर भी आम आदमी पार्टी की सरकार के 10 साल में दिल्ली के किसी निजी स्कूल की फीस बढ़ाने की हिम्मत नहीं हुई और न दिल्ली में बिजली आपूर्ति की सेवा दे रही दोनों कंपनियों को अपने शुल्क बढ़ाने की हिम्मत हुई। लेकिन जैसे ही आम आदमी पार्टी की सरकार गई और भाजपा की सरकार बनी, जिसकी केंद्र में सरकार भी है, जिसके उप-राज्यपाल है, जिसके पास एमसीडी भी है और जो सबसे शख्तिशाली है, के होते दिल्ली के निजी स्कूलों ने फीस बढ़ानी शुरू कर दी और बिजली के शुल्क भी बढ़ने लगे। हैरानी की बात है कि इतनी शक्तिशाली भाजपा स्कूलों को फीस बढ़ाने से नहीं रोक पा रही है। स्कूलों ने न सिर्फ फीस बढ़ाई है, बल्कि फीस नहीं चुकाने वालों को स्कूल से निकाल भी दिया है। स्कूलों के बाहर प्रदर्शन करने वालों के साथ धक्का-मुक्की हुई है। दिल्ली हाई कोर्ट ने भी अभिभावकों को बड़ी हुई फीस का आधा हिस्सा जमा कराने को कहा है। स्कूलों को रोकने में नाकाम दिल्ली सरकार कह रही है कि वह एक अध्यादेश लाकर फीस बढ़ोतरी रोकेगी। सवाल है कि ‘कमजोर’ केजरीवाल को तो अध्यादेश लाने की ज़रूरत नहीं पड़ी, फिर मज़बूत भाजपा सरकार को ऐसी ज़रूरत क्यों पड़ रही है?
अमिताभ बच्चन के बदले-बदले सुर
हिंदी फिल्मों के ‘महानायक’ के तौर पर प्रचारित किए गए अमिताभ बच्चन पिछले 11 साल से केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार का समर्थन कर रहे हैं या उसका विरोध करने वाली तमाम बातों पर मौन साधे रहते हैं। उनकी पत्नी जया बच्चन समाजवादी पार्टी से राज्यसभा सदस्य हैं, फिर भी अमिताभ बच्चन की लाइन अलग है। इसके लिए उन्हें सोशल मीडिया में काफी ट्रोल भी किया जाता है। उनकी चुप्पी पर सवाल उठाए जाते हैं और मनमोहन सिंह की सरकार के समय किए गए उनके ट्वीट खोज कर निकाले जाते हैं और पूछा जाता है कि अब वह ऐसे ट्वीट क्यों नहीं कर रहे हैं? गौरतलब है कि मनमोहन सिंह की सरकार के समय पेट्रोल के दाम में दो रुपये की बढ़ोतरी होने पर भी अमिताभ बच्चन चिंता जताते हुए ट्वीट कर दिया करते थे। बहरहाल भारत के चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की खबर पर उन्होंने सोशल मीडिया प्लेटफार्म एक्स पर एक पोस्ट डाली है, जिसमें भारत के 4 लाख करोड़ डालर (4 ट्रिलियन)की अर्थव्यवस्था बनने का श्रेय पिछले 78 साल में हुए कामकाज को दिया। अमिताभ बच्चन ने कहा है कि सिर्फ 75 साल पहले आज़ाद हुए देश के लिए यह अविश्वसनीय उपलब्धि है। इस तरह एक तो उन्होंने माना है कि देश 2014 में नहीं, बल्कि 78 साल पहले आज़ाद हुआ और दूसरे यह माना है कि यह पिछले 11 साल की उपलब्धि नहीं है। सोशल मीडिया में भाजपा के समर्थकों को अमिताभ बच्चन की यह बात पसंद नहीं आ रही है।
भाजपा अध्यक्ष का चुनाव बना चुनौती
भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष का चुनाव एक बार फिर स्थगित गया। इस बार पहलगाम हमले और ऑपरेशन सिंदूर के बहाने चुनाव स्थगित हुआ है। इसी माह केंद्र में मोदी सरकार के तीसरे कार्यकाल का एक साल पूरा हो रहा है। इसके साथ ही जे.पी. नड्डा को राष्ट्रीय अध्यक्ष व केंद्रीय मंत्री की दोहरी ज़िम्मेदारी निभाते हुए भी एक साल हो जाएगा। पहले उन्हें छह महीने का कार्यकाल विस्तार मिला था। उसके बाद से ही किसी न किसी बहाने चुनाव स्थगित होता आ रहा है और अब यह यक्ष प्रश्न बन गया है कि प्रदेशों में भाजपा संगठन का चुनाव नहीं हो पा रहा है। इसलिए राष्ट्रीय अध्यक्ष का चुनाव स्थगित हो रहा है या राष्ट्रीय अध्यक्ष के नाम पर सहमति नहीं बन पा रही है। इसलिए प्रदेशों में चुनाव नहीं कराए जा रहे हैं? कहा जा रहा है कि प्रदेशों में चुनाव हो जाएंगे तो उसके बाद राष्ट्रीय अध्यक्ष का चुनाव स्थगित करना संभव नहीं होगा। इसलिए वहां चुनाव रोके गए हैं। अगर ऐसा है तो फिर सवाल है कि ऐसी क्या मुश्किल हो गई है कि राष्ट्रीय अध्यक्ष के नाम पर सहमति ही नहीं बन पा रही है? नितिन गडकरी से लेकर राजनाथ सिंह और अमित शाह से लेकर जे.पी. नड्डा तक अध्यक्ष चुनने में भाजपा को कभी भी परेशानी नहीं हुई। इस बार ऐसा क्या है कि पार्टी अध्यक्ष नहीं चुन पा रही है? ऐसा लगता है कि भाजपा नेतृत्व अध्यक्ष पद और उसके चुनाव को एक साधारण परिघटना बनाने में लगा हुआ है। इसीलिए पिछले एक साल से काम-चलाऊ अध्यक्ष रख कर अध्यक्ष के चुनाव को स्थगित किया जा रहा है।