जायज़ है वायु सेना प्रमुख की चिन्ता

रक्षा व्यय के मामले में भारत की वैश्विक स्थिति में सुधार होने की ज़रूरत  है। इस मामले में भारत वर्तमान में चौथे स्थान पर है। 2047 तक रक्षा खर्च के मामले में हम तीसरे स्थान पर पहुंच सकते हैं। इसके बावजूद अगर रक्षा परियोजनाओं में देरी पर भारतीय वायु सेना प्रमुख एयर चीफ मार्शल अमरप्रीत सिंह की चिंता और सवाल विचारणीय हैं। दोतरउा मोर्चे पर जूझ रही सेना के आधुनिकीकरण में तेज़ी लाने की ज़रूरत है। इसके लिए केवल विदेशी सौदों पर निर्भर नहीं रहा जा सकता, मेक इन इंडिया प्रॉजेक्ट के तहत भी उत्पादन बढ़ाना होगा। वायु सेना प्रमुख की टिप्पणी ऐसे वक्त आई है, जब भारत ने हाल ही में ऑपरेशन सिंदूर के तहत पाकिस्तान में मौजूद आतंकी ठिकानों को हवाई क्षमता का प्रदर्शन कर ध्वस्त किया है। इसी टकराव ने यह भी दिखाया कि युद्ध में युद्धक विमानों की भूमिका कितनी अहम हो चुकी है। वैसे भी देखा जाए तो भारतीय सेना के लिए सीमाओं पर सुरक्षा, बढ़ती तकनीक,और आंतरिक सुरक्षा चिन्ता के कुछ मुख्य विषय हैं। सेना के पास संसाधन और आधुनिक उपकरण की कमी है। भारत की सीमाएं लम्बी हैं और अनेक तरह की चुनौतियां भी हैं, जैसे कि सीमा पार आतंकवाद और संघर्ष। सेना को इन चुनौतियों से निपटने के लिए तैयार रहने की आवश्यकता है। तकनीक में प्रगति के साथ-साथ सेना को भी नवीनतम तकनीकों को अपनाने की आवश्यकता है। इसमें साइबर सुरक्षा, ड्रोन और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) जैसे क्षेत्रों में विकास शामिल है। सेना में भर्ती होने वालों को विभिन्न कठिनाइयों और संघर्षों का सामना करना पड़ता है। सैनिकों के मानसिक स्वास्थ्य पर भी ध्यान देने की आवश्यकता है, क्योंकि वे अक्सर कठिन परिस्थितियों में काम करते हैं। इन सभी चिंताओं को दूर करने के लिए सरकार को सेना को पर्याप्त संसाधन और आधुनिक उपकरण प्रदान करने और सीमा सुरक्षा, तकनीक और आंतरिक सुरक्षा में सुधार करने की आवश्यकता है। 
चिंता की बात यह है कि जो चीन के पास है, वह किसी न किसी तरह पाकिस्तान के पास पहुंच ही जाता है। हालिया टकराव में ही उसने तुर्किये के ड्रोन और चीन के लड़ाकू विमानों का इस्तेमाल किया। भारत के लिए ताज़ा रिपोर्ट चिंता बढ़ाने वाली है कि चीन अपने जे-35 स्टेल्थ फाइटर जेट भी पाकिस्तान को देने जा रहा है। सरकार ने 5वीं पीढ़ी के स्टेल्थ फाइटर जेट के निर्माण को मंजूरी तो दी है, परन्तु अगर उम्मीद पूरी हुई तो भी इनको बनने में 10 साल लग जाएंगे। भारतीय वायु सेना के पास कम से कम 42 स्क्वाड्रन लड़ाकू विमान होने चाहिए, लेकिन हैं केवल 30। हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड अभी तक स्वदेशी तेजस मार्क-1ए की डिलिवरी नहीं कर पाया है। इसकी वजह से वायु सेना की रक्षा तैयारियों पर असर पड़ रहा है। वायु सेना प्रमुख पहले भी यह मुद्दा उठा चुके हैं। ऐसे में सवाल है कि जिस मसले पर सरकार को अपनी ओर से चुनौतियों की पहचान और उसका हल निकालने की पहल करनी चाहिए, उसकी चिन्ता वायु सेना प्रमुख को जाहिर करने की ज़रूरत क्यों पड़ी। ऐसे में अगर सैन्य बलों की ओर से परियोजनाओं के समय पर पूरा नहीं होने पर चिन्ता जाहिर की जाती है, तो यह सरकार के लिए तत्काल विचार करने और कमियों पर गौर करने का मामला होना चाहिए। वायु सेना प्रमुख की यह बात बेहद अहम है कि युद्ध का चरित्र बदल रहा है तो हर दिन हम नई तकनीकें देख रहे हैं। ज़ाहिर है, इसी मुताबिक खुद को तैयार रखने की ज़रूरत है।
भारत ने ऐसी परिस्थितियां को कई बार देखा है जिसके कारणा पाकिस्तान या चीन जैसे पड़ोसी नाहक ही टकराव जैसे हालात पैदा करते रहते हैं। हालत यह है कि पाकिस्तान को किसी भी समय संघर्ष विराम का उल्लंघन करने में हिचक नहीं होती, तो चीन की गतिविधियां भी भारत के लिए चिंता का कारण रही हैं। ऐसे में सीमा पर कब कैसी परिस्थितियां पैदा हो जाएं, यह तय कर पाना मुश्किल है। ऐसे में अगर लड़ाकू विमानों की खरीद का सौदा तय हो जाए, लेकिन उसकी आपूर्ति और तैनाती के समय को लेकर सजगता नहीं बरती जाए, तो इसके क्या नतीजे हो सकते हैं? पिछले कुछ वर्षों के दौरान युद्ध और तकनीकी के मोर्चे पर दुनिया भर में जिस तरह के बदलाव आए हैं, उसमें ज़रूरत इस बात की है कि सेना को सभी और नए ज़रूरी साज़ो-सामान से लैस किया जाए। रक्षा परियोजनाओं के तहत अगर किसी संदर्भ में वायदे किए जाते हैं, तो उन्हें समय पर पूरा करने को लेकर भी उतनी ही सजगता होनी चाहिए। रक्षा क्षेत्र में तकनीकी और संसाधनों के विकास के मामले में आत्मनिर्भरता सबसे बेहतर समाधान है, लेकिन तात्कालिक ज़रूरतों को तुरंत पूरा करने के मामले में कोई समझौता नहीं किया जाना चाहिए। सरकार को इस बात पर विशेष ध्यान देना चाहिए कि देश की आंतरिक एवं सीमा पर सुरक्षा के लिए वायु, थल और नौसेना के अलावा आंतरिक सुरक्षा बल में तैनात कार्मिकों को अत्याधुनिक तकनीक से लैस करना बहुत ज़रूरी है। 
 

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