अमरीका की छवि को धूमिल कर रहे ट्रम्प के फैसले

हाल के अपने तमाम सनक भरे फैसलों की तरह अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने दुनियाभर में फैले अपने दूतावासों को नये छात्र वीज़ा इंटरव्यू पर तुरंत प्रतिबंध लगाने का मनमाना आदेश जारी किया है। इससे लाखों विदेशी छात्रों की तरह हज़ारों भारतीय छात्रों का भी ‘स्टडी इन अमरीका’ का सपना अधर में लटक गया है। एक अनुमान के मुताबिक इस साल लगभग 2 लाख 60 हज़ार के आसपास भारतीय छात्रों ने अमरीका में स्टडी वीज़ा के लिए आवेदन किया था। अमरीकी शैक्षिक संस्थानों पर दो बार दाखिले होते हैं पहला- दाखिला समर सीज़न में होता है, जो मई से अगस्त तक होता है और दूसरा फॉल सीज़न में जोकि सितम्बर से नवम्बर तक चलता है। अनुमान है कि समर सीज़न के लिए अब तक 50 फीसदी से ज्यादा दाखिले शुरु हो चुके हैं। इन छात्रों के वीज़ा इंटरव्यू काफी हद तक हो चुके हैं। लेकिन फॉल सीजन के लिए अभी बाकी हैं, लेकिन अब ट्रम्प प्रशासन ने विदेशी छात्रों के सोशल मीडिया प्रोफाइल की गहन जांच पड़ताल के बाद ही जारी करेगा। नये आदेशों से पहले शैड्यूल वीज़ा इंटरव्यू तो तय समय पर ही होंगे, लेकिन नये छात्र वीज़ा अब तारीखें जल्द नहीं घोषित होने वाली। पिछले साल अमरीका में लगभग 3 लाख भारतीय छात्र पढ़ने गये थे, जो करीब 11 लाख विदेशी छात्रों में किसी एक देश की सबसे बड़ी संख्या थे। भारत के बाद दूसरे नम्बर पर 2 लाख 77 हज़ार चीनी छात्र, जबकि तीसरे नंबर पर दक्षिण कोरिया के लगभग 43 हज़ार छात्र अमरीका पढ़ने गये थे।
अमरीकी अर्थव्यवस्था में विदेशी कभी भी अमरीका के लिए बोझ नहीं रहे बल्कि उल्टा संसाधन माने गये हैं। विदेशी छात्र हमेशा से अमरीकी अर्थव्यवस्था और अमरीकी समाज की बहुत बड़ी ताकत रहे हैं। ये न सिर्फ  आर्थिक दृष्टि से बल्कि तकनीकी, सांस्कृतिक और अकादमिक नवाचार की दृष्टि से भी अमरीका में अहम योगदान देते रहे हैं। 2023-24 में लगभग 11 लाख और 2022-23 में करीब 10 लाख विदेशी छात्र दुनिया के अलग-अलग हिस्सों से अमरीका में पढ़ने के लिए आये थे। इन छात्रों ने अमरीकी अर्थव्यवस्था में 38 से 40 बिलियन डॉलर तक का सीधा आर्थिक योगदान दिया था। इसमें इनकी ट्यूशन फीस, रहने खाने का खर्च, यात्रा, बीमा और अन्य खर्च शामिल रहे हैं। इससे सिर्फ  अमरीका के शैक्षिक संस्थानों को ही नहीं बल्कि उन शहरों को भी ज़बर्दस्त आर्थिक फायदा होता रहा है, जहां ये शैक्षिक संस्थान स्थित हैं। विदेशी छात्र जिन अमरीकी शहरों में पढ़ते हैं, वहां रीयल एस्टेट, ट्रांसपोर्ट, रेस्टोरेंट तथा रिटेल जैसे सभी क्षेत्रों में बाकी शहरों से मांग ज़्यादा रहती है। अमरीका के सरकारी विश्वविद्यालय और पब्लिक कॉलेज अपनी आय का एक बड़ा हिस्सा विदेशी छात्रों द्वारा दी जाने वाली फीस से अर्जित करते हैं। अमरीकी शैक्षिक संस्थानों को विदेशी छात्रों से जो ट्यूशन फीस मिलती है, वह फीस अमरीकी छात्रों के मुकाबले कई गुना ज़्यादा होती है। यह फीस अगर इन संस्थानों को न मिले, तो अमरीका के छोटे या ग्रामीण कॉलेजों के अस्तित्व पर खतरा मंडराने लगे।
अपने मौजूदा टर्म के चुनाव प्रचार के दौरान अमरीका के मौजूदा राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने खुद ‘स्टेम’ छात्रों को अमरीका के लिए एसेट्स कहा था। वास्तव में ये स्टेम छात्र साइंस, टेक्नोलॉजी, इंजीनियरिंग और मैथ्स जैसे विषयों में दाखिला लेने वाले विदेशी छात्र होते हैं। 2023 में कम्प्यूटर साइंस और इंजीनियरिंग में अमरीका में जितनी पीएचडी हुई थीं, उनमें 70 प्रतिशत से ज्यादा पीएचडी विदेशी छात्रों ने की थी। इससे अमरीका की इनोवेशन और रिसर्च क्षमता को जबरदस्त लाभ मिलता है। इससे अमरीका के मेडिकल क्षेत्र को बेहतरीन रिसर्च हासिल हो जाती हैं, अमरीका में इस समय जो दुनिया की टॉप टेक कंपनियां हैं जैसे- गूगल, माइक्रोसॉफ्ट ये सब इन्हीं विदेशी रिसर्च छात्रों की बदौलत हैं। यही नहीं एआई, बायोटेक और ग्रीन एनर्जी के क्षेत्र में अगर आज अमरीका दुनिया का नेतृत्व कर रहा है तो इसमें सबसे बड़ा योगदान विदेशी छात्रों का ही है। अमरीका में एक तिहाई से ज्यादा स्टार्टअप और रोज़गार का सृजन भी यही एच-1 बी वीजा या ऑप्शनल प्रैक्टिकल ट्रेनिंग (ओपीटी) के तहत पढ़ाई के बाद काम करने वाले छात्रों द्वारा ही शुरु किये जाते हैं। अमरीका की फॉर्च्यून फाइव हंड्रेड कम्पनियों में 25 प्रतिशत से ज्यादा कंपनियों की स्थापना अप्रवासियों या उनके बच्चों ने की है। इससे पता चलता है कि अमरीकी अर्थव्यवस्था में विदेशी छात्रों का कितना अहम योगदान है। 
यही नहीं जो छात्र अमरीका में पढ़कर अपने देश लौटते हैं, वे अपने साथ अमरीकी संस्कृति और अनुभव को लेकर भी जाते हैं। इस तरह पूरी दुनिया में अमरीका की सॉफ्ट पावर की कूटनीति भी कामयाबी से चलती है। अमरीका में पढ़ने वाले विदेशी छात्र अपने खुले विचारों, लोकतांत्रिक विशेषताओं और नवाचारी स्वभाव के कारण पूरी दुनिया में अमरीका की सॉफ्ट पावर का डंका बजाते हैं। 
इस तरह देखें तो विदेशी छात्र न सिर्फ  अमरीका की अर्थव्यवस्था के बहुत बड़े संसाधन हैं बल्कि अमरीका के समूचे अस्तित्व की जान हैं। आज अगर अमरीका दुनिया में सुपरपावर है, तो सिर्फ  अपनी सेना की बदौलत नहीं है, वह अमरीका की लोकतांत्रिक व्यवस्था, प्रेस की स्वतंत्रता और विभिन्न लोकतांत्रिक संस्थाओं की मजबूती व नागरिक अधिकारों की रक्षा के कारण है। यही अमरीका की ताकत है। ये वही मूल्य हैं, जिनके दम पर अमरीका दशकों से दुनिया की मॉरल ऑथरिटी बना हुआ है, लेकिन लगता  है राष्ट्रपति ट्रम्प अपने सनक भरे स्वभाव के कारण इन अमरीकी खूबियों को नष्ट करने पर तुल गये हैं। 
आज अमरीका उन्हीं सब चीजों की विरोध की दिशा में आगे बढ़ रहा है, जो एक जमाने में उसकी ताकत होती थी और यह सिर्फ  ट्रम्प के राजनीतिक स्वभाव के कारण हुआ है। ट्रम्प शक्तिशाली व्यक्ति की अपनी छवि हासिल करके अमरीका की सत्ता पर पूरी तरह से कब्ज़ा करना चाहते हैं ताकि उनकी मज़र्ी के बिना अमरीका में पत्ता भी न हिले, इससे उनका अपना इगो तो संतुष्ट हो जायेगा, लेकिन अमरीका की जो लोकतांत्रिक खूबियां रही हैं, जिनके कारण अमरीका विश्व में सुपरपावर रहा है, वे सारी खूबियां नष्ट हो जाएंगी। 
-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर 

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