वायु सेना प्रमुख की खरी-खरी

विगत दिवस भारतीय सेना के तीनों विंग (थल सेना, जल सेना और वायु सेना) ने ऑपरेशन सिंदूर के तहत, जिस तरह आपसी तालमेल से पाकिस्तान में आतंकवादियों के 9 ठिकानों पर सफलतापूर्वक हमला करके उन्हें तबाह कर दिया था और इसके बाद पाकिस्तान द्वारा सैकड़ों ड्रोनों और मिसाइलों से भारत पर किए गए हमले का जिस कुशलता के साथ भारतीय सेना ने मुकाबला किया और पाकिस्तान में जवाबी कार्रवाई करते हुए कई हवाई अड्डों को निशाना बनाया था, उसकी न केवल देश में, अपितु विदेशों में भी चर्चा हो रही है। केन्द्र में सत्तारूढ़ पार्टी भाजपा और विपक्षी पार्टियों के बीच इस सफल सैन्य कार्रवाई का राजनीतिक लाभ लेने के प्रश्न पर इस समय कुछ कशमकश भी चल रही है, परन्तु ऐसे समय में एक ऐसा समाचार आया है, जो केन्द्र सरकार को परेशान करने वाला है।
भारतीय वायु सेना के प्रमुख एयर चीफ मार्शल अमरप्रीत सिंह ने नई दिल्ली में कन्फैडरेशन ऑफ इंडियन इंडस्ट्री (सी.आई.आई.) के एक समारोह में भारतीय उद्योगपतियों को सम्बोधित करते हुए कहा कि भारत के सरकारी और ़गैर-सरकारी उद्योगों को सेना के साज़ो-सामान संबंधी जो ऑर्डर दिए जाते हैं, उनकी समय पर पूर्ति नहीं होती और इस कारण सेना के कामकाज पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। उन्होंने तो यहां तक भी कहा कि भारतीय औद्योगिक संस्थानों को जो भी ऑर्डर दिए जाते हैं, उनमें से एक भी समय पर पूरा नहीं होता। इस संबंध में उन्होंने लड़ाकू विमान तेजस की उदाहरण दी। उन्होंने कहा कि हिन्दुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड को 2021 में तेजस लड़ाकू विमान तैयार करके वायु सेना को देने के लिए ऑर्डर दिया गया था, 2024 में इन विमानों की सप्लाई की जानी थी परन्तु अभी तक यह सप्लाई नहीं दी गई। 
यह कोई पहली बार नहीं है कि भारतीय सेना के किसी विंग ने हथियारों और अन्य साज़ो-सामान की समय पर सप्लाई न होने की शिकायत की हो। इससे पहले भी सेना के तीनों विंगों द्वारा ऐसी शिकायतें आती रही हैं। एक लम्बी अवधि तक भारत की वायु सेना को नए पायलटों को ट्रेनिंग देने हेतु ज़रूरी ट्रेनी विमान उपलब्ध नहीं करवाए गए। इस उद्देश्य के लिए अपनी अवधि पूरी कर चुके मिग ट्रेनी विमानों का ही इस्तेमाल किया जाता रहा, जिस कारण बहुत-से पायलटों की जान भी जाती रही। इसके अतिरिक्त थल सेना और जल सेना द्वारा भी सेना के उपकरणों का आधुनिकीकरण करने और बढ़ रहीं आतंरिक और बाहरी चुनौतियों का सामना करने के लिए हथियारों और अन्य आवश्यक साज़ो-सामान की मांग की जाती रही है, जिसकी समय पर पूर्ति न होने की अक्सर शिकायतें मिलती रही हैं।
विगत दिवस हुए ऑपरेशन सिंदूर के सन्दर्भ में यह बात फिर उभर कर सामने आई है कि पाकिस्तान के साथ-साथ विश्व में एक महाशक्ति के रूप में उभर रहे हमारे पड़ोसी देश चीन से भी भारत को बड़ी सुरक्षा चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है, क्योंकि चीन भारत के लद्दाख से लेकर अरुणाचल प्रदेश तक  बहुत-से क्षेत्रों पर अपना दावा पेश कर रहा है। अनेक बार उसने भारतीय क्षेत्रों में घुसपैठ भी की है। बांग्लादेश के साथ भी भारत के संबंध कोई ज्यादा अच्छे नहीं चल रहे। बांग्लादेश की धरती पर भी पाकिस्तान की बदनाम खुफिया एजेंसी आई.एस.आई. की गतिविधियां बढ़ने के समाचार मिल रहे हैं। यदि विगत समय की तरह बांग्लादेश में उत्तर पूर्व के ब़ािगयों को ट्रेनिंग देने के लिए पुन: ट्रेनिंग केन्द्र खोले जाते हैं तो बांग्लादेश की सीमा के अतिरिक्त भारत के उत्तर पूर्व के 7 राज्यों की सुरक्षा के लिए भी चुनौतियां और बढ़ सकती हैं। देश की आतंरिक सुरक्षा चुनौतियां और प्राकृतिक आपदाओं के समय भी लोगों को राहत मुहैया करने के लिए सेना को समय-समय पर महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करनी पड़ती है। 
इन सभी स्थितियों के दृष्टिगत केन्द्र सरकार को थल सेना, वायु सेना और जल सेना प्रमुखों के साथ आवश्यक विचार-विमर्श करके उन्हें ज़रूरी हथियार और अन्य साज़ो-सामान उपलब्ध करने के लिए प्राथमिकता के आधार पर फैसले लेने चाहिएं। इस संबंध में कुछ फैसले लिए भी जा रहे हैं। इसी संबंध में सेना के लिए हथियार और अन्य साज़ो-सामान खरीदने के लिए देश-विदेश की जिन कम्पनियों को ऑर्डर दिए गए हैं, उनकी पूर्ति भी केन्द्र सरकार को समय पर करवानी चाहिए। यह अच्छी बात है कि सेना की सुरक्षा ज़रूरतों के दृष्टिगत ऑपरेशन सिंदूर के बाद देश के सुरक्षा बजट में 36000 करोड़ की और वृद्धि की जा रही है, परन्तु इस संबंध में करने वाला एक महत्त्वपूर्ण कार्य यह भी है कि सेना में 4 वर्षों की भर्ती के लिए आरम्भ की गई अग्निवीर योजना को बंद करके पुन: स्थायी भर्ती वाली पूर्व व्यवस्था को लागू किया जाए। चाहे वर्तमान युद्धों में हथियारों और आधुनिक तकनीकों की अहम भूमिका होती है, परन्तु फिर भी प्रतिबद्ध और बहादुर सैनिकों के बिना युद्ध जीतना सम्भव नहीं होता, इन हकीकतों पर भी केन्द्र सरकार को ध्यान देना चाहिए।

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