टूरिज्म सेक्टर सकते में, अनहोनी से डरे पर्यटक !
पहलगाम में आतंकवादियों द्वारा की गई नृशंस हत्याओं के बाद से देश में पर्यटन उद्योग चरमरा रहा है। न सिर्फ पर्यटन से रोजी-रोटी कमाने वाले बल्कि पर्यटन के शौकीन पर्यटक तथा देश को अपनी नीतियों से आगे ले जाने वाले राजनेता भी डरे-सहमे हैं। पहलगाम से आरंभ हुआ यह डर चारधाम यात्रा, आदि कैलाश यात्रा में ही नहीं बल्कि हमेशा भीड़-भाड़ से भरे रहने वाले नैनीताल, शिमला और मनाली जैसे सदाबहार टूरिस्ट प्लेसों जाने वाले पर्यटकों में भी नजर आ रहा है। आतंकवाद को देखते हुए बरती जा रही सुरक्षा व्यवस्था के कारण भी जांच आदि की प्रक्रिया पहले से काफी सख्त हुई है, इसका असर भी आम पर्यटक पर सीधा हुआ है।
भले ही सरकारें कितनी भी सुरक्षा व्यवस्था कर लें, यात्री सुविधा जुटा लें, लेकिन पर्यटक अभी तक अपने दिल से यह डर नहीं निकाल पा रहे हैं कि कोई अनहोनी न हो जाए। इससे बड़ी बात और क्या होगी जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने स्वीकार किया है कि घाटी में पर्यटन उद्योग पूरी तरह चरमरा गया है और इसे अमरनाथ यात्रा के बाद पटरी पर लाने की कोशिश करेंगे। मतलब यह कि वह भी यह नहीं कह पा रहे हैं कि अब पर्यटक पहले की तरह आएंगे। अभी उनका ध्यान अमरनाथ यात्रा पर है। दरअसल पहलगाम से पहले पर्यटक-भक्तों पर कभी भी आतंकवादियों ने इस तरह से हमला नहीं किया था। अमरनाथ यात्रा में ज़रूर इस तरह की घटनाएं हुई पर पर्यटन का आनंद लेते हुए पहलगाम की तरह कभी भी पर्यटक मौत का शिकार नहीं हुए।
हालत यह है कि पर्यटकों में घबराहट या यह कह लें कि डर इतना अंदर तक समाया है कि वह पहाड़ों की ओर भी रूख नहीं कर पा रहे हैं। डर ही है कि चारधाम यात्रा में गत वर्ष जैसी भीड़ नहीं है। माना जा रहा है कि यहां पर अभी तक दस प्रतिशत पर्यटकों की संख्या गिरी है। दूसरे शहरों से जो भीड़ और मारामारी की खबरों से मीडिया पटा रहता था, वहां पर भी अभी तक ऐसी स्थिति नहीं आयी है कि कहा जा सके कि पर्यटक डर से निकलकर भीड़ पर्यटन का हिस्सा बन गया है। खुद कश्मीर के युवा कह रहे हैं उन्हें काम चाहिए, वह पत्थरबाजी में यकीन नहीं रखते। अब जब बच्चों की छुट्टियां हो गई हैं, उनकी परीक्षाओं के परिणाम आ गए हैं और मैदानी इलाके भट्टी जैसी गर्मी से तप रहे हैं, तब भी पर्यटन स्थलों पर पर्यटकों का कम आना बता रहा है कि वह डर से उबर नहीं पाए हैं। जिन व्यापारियों की रोजी-रोटी मई-जून माह की कमाई से सालभर चलती थी, वह भी कहने पर मज़बूर हैं कि पर्यटकों का जोश नहीं दिख रहा। आतंकवादियों को उनके कुकर्मों की सजा ज़रूर मिल गई है पर उन्होंने भारतीय पर्यटन उद्योग को जबर्दस्त नुकसान पहुंचाया है, डर के रूप में। आखिर पर्यटकों के मन में समाया डर कैसे निकले? यह प्रश्न अब सभी के सामने है। मनोचिकित्सक इस विषय में कहते हैं- पर्यटन के लिए जाने से पहले अगर यह विचार छोड़ दिया जाए कि कहीं कोई दुर्घटना नहीं हो जाए तो डर दूर हो सकता है। वह कहते हैं- ‘आनंद’ फिल्म का सदाबहार डायलॉग हमें जीवन जीने की ललक दिखाता है, इसमें राजेश खन्ना कहते हैं- जिंदगी और मौत ऊपर वाले के हाथ में जहांपनाह, उसे न तो आप बदल सकते हैं और न मैं, हम सब तो रंगमंच की कठपुतलियां हैं, जिनकी डोर ऊपर वाले की उंगलियों में बंधी है, कब कौन कैसे उठेगा यह कोई नहीं बता सकता। पर्यटन विशेषज्ञ भी कहते हैं- आप खुद को धीरे-धीरे ऐसी चीजों को करने के लिए प्रेरित करें कि आप अपने कंफर्ट जोन से बाहर आ जाएं। धीरे-धीरे अपने एक्सपोजर को बढ़ाएं जब तक कि आप असहजता, डर, चिंता और परेशानी की भावना से मुक्त न हों। यह एक ऐसी मनोवैज्ञानिक थैरेपी है जो आपको डर का सामना करने में मदद करती है। डर से बचने के लिए योग के कई आसन भी हैं, जो आपको घर से बाहर रिलैक्स फील कराएंगे।
पर्यटन विशेषज्ञ मानते हैं कि डर तो है पर इतना नहीं जितना कि हमें पहलगाम की घटना ने महसूस करवा दिया है। वह कहते हैं- आप जहां जा रहे हैं वहां की सुरक्षा व्यवस्था और उपायों को जांच लें तथा ऐसे स्थानों का चयन करें जहां पर इस तरह का खतरा कम से कम हो। समूह यात्रा इसका एक बेहतर मार्ग हो सकता है और टूर ऑपरेटर तथा स्थानीय मित्र-रिश्तेदारों से संपर्क भी आपको डरमुक्त यात्रा कराएगा। सकारात्मक सोच, संगीत का आनंद, प्रकृति से निकटता और पर्यटक साथियों से बातचीत ऐसी खासियतें हैं जो आपको डर से दूर रखकर एक आरामदायक यात्रा करा सकती हैं।
जहां तक देश में यात्रा के दौरान डर का प्रतिशत कितना है इस पर अगर थोड़ा गंभीरता से विचार करें तो हाल की सरकारों की सुरक्षा व्यवस्था,आतंकवादी समर्थक देशों से दूरियां तथा बेहतर पर्यटन व्यवस्थाएं ऐसी स्थितियां हैं, जिनसे डरमुक्त यात्रा संभव है। ध्यान दें जब मालदीव ने भारत से पंगा लिया तो उसकी टूरिज्म सेक्टर से होने वाली आय लगभग पच्चीस प्रतिशत कम हो गई थी। अब पाकिस्तान को समर्थन देने वाले तुर्की तथा अरजबैजान जैसे देशों का बहिष्कार भी आतंक की कमर तोड़ने के लिए कम नहीं है। पर्यटकों में डर कम करने के लिए एक तरीका यह भी हो सकता है कि कुछ नए पर्यटक स्थलों का विकास किया जाए। यूं भी जम्मू-कश्मीर के चार दर्जन से अधिक पर्यटन स्थलों को सुरक्षा एजेंसियों की सलाह पर केन्द्र सरकार ने प्रतिबंधित कर दिया है। ऐसे में नए पर्यटन स्थलों का विकास ज़रूरी है। हाल के वर्षों में आदि कैलाश-ओम पर्वत नया धार्मिक पर्यटन स्थल बने हैं, तो असम के चराइदेव मोइरदाम ऐसे पर्यटन स्थलों के रूप में सामने आए हैं, जहां धार्मिक-सांस्कृतिक-प्राकृतिक आनंद मिल सकता है। हाल में केन्द्र ने दो दर्जन से अधिक ऐसे स्थलों को विकसित करने की भी घोषणा की है जो नए पर्यटक स्थल बन सकते हैं। कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि पर्यटक डर भले ही रहा है, पर अगर थोड़ी सावधानी से घुमक्कड़ी का स्थान चयन करता है, तो वह डर के आगे जीत है जैसी स्थिति में देशाटन कर सकता है। -इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर