दिल्ली से देहरादून

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मीना जी, आप जो भी फैसला करें मैं उसे मानने को तैयार हूं।
- आप देहरादून एक दिन लेट पहुंचेंगे तो आपका कोई हर्ज तो नहीं होगा?
- अरे नहीं मेरी तो दिल्ली में कालेज की दो सप्ताह की छुट्टी है अत: दोस्त को मिलने के लिए निकल गया। उसे तो मैंने अभी तक बताया भी नहीं है कि मैं आ रहा हूं।
- ठीक है तो फिर आज किसी तरह यहां रुकने का इंतजाम करते हैं। कैश मेरे पास काफी है। फिर सुबह की ट्रेन से देहरादून चले जाएंगे।
- मैंने सकुचाते हुए पूछा - यहां होटल में क्या दो कमरों के लिए कह दूं।
मीना भी कुछ सकुचा गई और चेहरा शर्म से लाल हो गया। फिर उसने धीमें से कहा- इस हालत में तो डर के मारे एक पल भी न सो पाऊंगी। आप एक ही कमरे के लिए कहें।
खैर, कमरे का इंतजाम हो गया तो मीना ने कहा- अब मैं यहां से चाचा जी को फोन कर देती हूं कि मैं आज नहीं कल आऊंगी।
उन दिनों मोबाइल तो होते नहीं थे। एस.टी.डी. के लिए होटल के फोन का उपयोग किया। पर दूसरी ओर के फोन में कुछ गड़बड़ थी। कॉल लग नहीं सकी।
मीना कुछ परेशान तो हुई फिर कहा- कोई बात नहीं। इतना पक्का भी नहीं था कि मैं पर हालत आज ही पहुंचूंगी। आज नहीं पहुंचूंगी तो चाचा जी समझ जाएंगे कि कल आऊंगी।
दोनों ओर से कुछ संकोच था रात एक ही कमरे में, एक ही बिस्तर पर बिताने का, पर इस बीच विश्वास इतना बढ़ गया था कि बढ़िया का खाना खाने के बाद इधर-उधर की कई बातचीत करते हुए कब सो गए पता ही नहीं चला। पर सुबह उठने में देर हो गई और बहुत हड़बड़ाहट में तैयार होकर स्टेशन के लिए ऑटो किया। बस भागते-भागते ही टिकट खरीद कर ट्रेन पकड़ पाए नहीं तो ट्रेन छूटने वाली थी।
थोड़ी देर बाद एक छोटा सा स्टेशन आया तो मीना ने अचानक मुझे कहा- अपना सिर नीचे झुकाओ और बाहर मत देखो। यह कह कर वह नीचे झुक कर जैसे सीट के नीचे कुछ खोजने लगी। उसने नीचे झुके ही दबी आवाज में कहा - मैंने बाहर उन्हीं दोनों आदमियों को देखा है। समोसा खा रहे थे।
खैर हम दोनों ने मुंह मोड़ लिया और जब एक मिनट में गाड़ी चली तभी सामान्य हुए।
मैंने कहा- लगता है कि जब हमने इन्हें मेरठ में चकमा दिया तो यह दोनों भी वहीं रुक गए और हमें खोजते रहे। फिर सुबह इन्होंने देहरादून की यह ट्रेन पकड़ी है।
- शुक्र है हम स्टेशन देर से पहुंचे नहीं तो यह हमें वहीं देख लेते। पर अब हम क्या करें? देहरादून तक तो इनकी नज़र से बच नहीं सकेंगे। खासकर जब हम एक साथ वहां उतरेंगे तो नज़र में आ ही जाएंगे।
- तो ऐसा करते हैं अगले स्टेशन मुजफ्फरनगर पर चुपके से उतर जाते हैं और वहां से देहरादून के लिए टैक्सी कर लेते हैं।
- ठीक है।
हमने ऐसा ही किया। देहरादून हम दोपहर तक पहुंच गए। टैक्सी राजपुर रोड पर दौड़ रही थी। मीना ने ड्राइवर को बताया कि अगले मोड़ से दाईं गली में मोड़ लेना।
इतने में एक बड़ी सी कार बहुत तेज़ी से हमारे दाईं ओर से निकली (जिस ओर मीना बैठी थी) और अगले मोड़ से दाईं ओर मुड़ गई।
मीना के मुंह से हल्की सी चीख निकल गई।
- क्या हुआ? मैंने घबराकर पूछा।
- अरे! तुमने नहीं देखा? नहीं देखा?
- क्या?
- यह जो कार तेजी से गई है, इसमें वहीं दो आदमी बैठे थे।
मैं हैरान रह गया। अब तो हमारी टैक्सी भी अगले मोड़ से दाहिनी ओर जा रही थी।
मीना से ड्राईवर से कहा- प्लीज रोकिए।
गाड़ी रुक गई।
- प्लीज इसे बैक कर सीधा सड़क पर थोड़ा ओर आगे जाईए।
ड्राईवर ने ऐसा ही किया। मैं बिना कुछ समझे चुपचाप देखता रहा। गाड़ी तीन-चार मिनट सीधा चली।
मीना ने ड्राईवर को कहा - वह सामने रेस्त्रां देख रहे है न बड़ा सा? बस उसके सामने ही पार्किंग में रोक दीजिए।
हम रेस्त्रां में बैठे तो मीना ने बहुत परेशानी में कहा- देखो जिस गली में वे दोनों गुंडे मुड़े हैं उसमें बस दो-चार ही आलीशान से बंगले हैं और उन्हीं में से एक बंगला चाचाजी का है। हो न हो यह दोनों गुंडे चाचा जी के बंगले में ही गए हैं पर ऐसा क्यों, यह चक्कर क्या है?
इस नए घटनाक्रम से मैं खुद इतना हैरान था कि कुछ कह न सका।
खैर, भूख तो लगी ही थी। हमने कुछ खाना आरंभ किया व सोचते रहे।
अंत में मीना ने ही चुप्पी तोड़ी- सक्षम जी मुझे आपको एक और रहस्य की बात कहनी है जो मैंने आज तक किसी को नहीं बताई है।
मैं उत्सुक होकर इंतजार करने लगा।
- मेरे मामाजी मुझे बहुत प्यार करते हैं। एक्सीडैंट के बाद एक दिन उन्होंने मुझे कहा था कि बेटी, अपने चाचा जी से जरा सावधान रहना। इस सेठ धनराय की कई गलत बातें भी मैं सुनता रहा हूं। कहीं प्रापर्टी के मामले में तुमसे कोई धोखा न कर दे। खैर उस समय तो मैंने उनकी बात पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया। पर अब मुझे उनकी बात बहुत याद आ रही है। ज़रूर चाचा ने कोई गड़बड़ की है तभी तो जो गुंडे मेरे दिल्ली से पीछे लगे हैं वे अब चाचा से मिलने जा रहे हैं।
- चाचा के घर में और कौन-कौन है?
- और कोई नहीं, बस नौकर-चाकर। उनका तलाक काफी पहले ही हो गया था।
हम कुछ देर तक और सोचते रहे। अंत में मैंने कहा- तो फिर इस हालत में चाचा के घर जाने का तो कोई मतलब ही नहीं है। दोस्त के घर भी जाने का फायदा नहीं है क्योंकि इस मामले में वह कोई विशेष मदद नहीं कर सकेगा। पर मेरे एक मित्र हैं जो इस समय बहुत काम आ सकते हैं।  (क्रमश:)

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