विलियम शेक्सपियर शब्दों के सम्राट युगों से जीवित एक चरित्र
विश्व साहित्य की भव्य परम्परा में यदि किसी एक नाम ने शाश्वत सत्य का सबसे सशक्त परिचय दिया है, तो वह नाम है— विलियम शेक्सपियर। वह केवल नाटककार नहीं थे, बल्कि मानवीय चेतना के सबसे गहरे अर्थों को भाषा में बांधने वाले शब्दों के सम्राट थे। समय, समाज व स्वभाव की जटिलताओं को जिस बारीकी से उन्होंने शब्दों के माध्यम से उकेरा, वह आज भी उतना ही प्रासंगिक, जीवंत और प्रेरणादायक है जितना 16वीं शताब्दी में था।
सन् 1564 में इंग्लैंड के हरे-भरे स्ट्रैट़फोर्ड-अपॉन-एवन नामक एक छोटे से कस्बे में जन्मे शेक्सपियर का आरंभिक जीवन सामान्य था, परन्तु उनकी प्रतिभा असाधारण थी। पिता जॉन शेक्सपियर एक स्थानीय व्यापारी थे और माता मैरी एक सम्पन्न कृषक परिवार से थीं। स्थानीय ग्रामर स्कूल में प्राप्त शिक्षा विशेष रूप से लैटिन साहित्य और इतिहास का ज्ञान उनके रचनात्मक मानस की नींव बना।
18 वर्ष की उम्र में ऐनी हैथवे से विवाह और शीघ्र ही तीन बच्चों का पालन-पोषण— इन पारिवारिक जिम्मेदारियों के बावजूद उनकी रचनात्मक ज्वाला कभी मंद नहीं पड़ी। जीवन की वास्तविकताओं से जूझते हुए वह लंदन पहुँचे, जहां से उनके रंगमंचीय जीवन की शुरुआत हुई।
1590 के दशक में उनके आरंभिक नाटकों ‘हेनरी षष्टम’, ‘टाइटस एंड्रोनिकस’, और प्रेम की अमर गाथा ‘रोमियो एंड जूलियट’ ने रंगमंच को एक नई दृष्टि दी। ‘रोमियो एंड जूलियट’ ने युवा प्रेम की पीड़ा और जुनून को इतनी संवेदनशीलता से चित्रित किया कि वह आज भी हर प्रेमी के दिल में गूंजता है।
1599 में प्रसिद्ध ग्लोब थिएटर की स्थापना उनके करियर का सबसे महत्वपूर्ण मोड़ बनी। यहीं उन्होंने विश्व नाट्य साहित्य की कालजयी रचनाएं ‘हैमलेट’, ‘ओथेलो’, ‘मैकबेथ’, ‘किंग लियर’ और ‘जूलियस सीज़र’ रचीं। ये नाटक सत्ता, प्रेम, प्रतिशोध, ईर्ष्या, महत्वाकांक्षा और जीवन की विडम्बनाओं का ऐसा गहन और सार्वभौमिक चित्र प्रस्तुत करते हैं, जो समय और भूगोल की सीमाओं से परे है। उनके पात्र हैमलेट का द्वन्द्व, ओथेलो की ईर्ष्या, मैकबेथ की लालसा और लियर का पश्चाताप आज भी हमारे मन के भीतर संवाद करते हैं। शेक्सपियर ने इन्हीं भावनाओं को कालजयी बनाया।
नाटकों के अलावा 1609 में प्रकाशित हुए उनके 154 सॉनेट्स भी उनकी साहित्यिक प्रतिभा का अद्भुत प्रमाण हैं। इंग्लैंड के छोटे से कस्बे स्ट्रैटफोर्ड-अपॉन-एवन की यात्रा के दौरान उनकी जन्म भूमि को छूने का भी सौभाग्य प्राप्त हुआ जहां शेक्सपियर का जन्म हुआ और जहां उन्होंने जीवन की अंतिम सांस ली। मन में एक अनोखी शांति और साहित्यिक आभा का अनुभव हुआ। यह स्थान आज भी अपनी पुरातन पहचान को सहेजे हुए है— पत्थरों से बनी संकरी गलियां, फूलों से सजे मकान, हवा में घुली शताब्दियों पुरानी संस्कृति और हर दिशा में बहती एक अदृश्य साहित्यिक ऊर्जा।
लाल ईंटों और पुरानी लकड़ी से बना यह भवन अब एक जीवंत संग्रहालय के रूप में संजोया गया है। दीवारों पर टंगे 16वीं शताब्दी के चित्र, खिड़कियों से छनती नरम धूप और पुराने फर्नीचर से सजी सादगीपूर्ण सजावट... यह सब किसी समय-संवाद की अनुभूति कराते हैं। सबसे विशेष अनुभव था उस कक्ष में पहुंचना जहां शेक्सपियर का जन्म हुआ था। सादा-सा कमरा, लकड़ी का पुराना पलंग, एक छोटी-सी खिड़की और एक अबूझ सी ऊर्जा... ऐसा लगा जैसे इसी स्थान पर शब्दों का पहला बीज अंकुरित हुआ हो, और यहीं से मानव भावनाओं को स्वर देने वाले संवादों की यात्रा शुरू हुई हो। घर के विभिन्न कमरों को संग्रहालय की तरह सजाया गया है। एक कक्ष में शेक्सपियर के नाटकों के मंचन के दुर्लभ चित्र, दूसरे में लंदन के 16वीं शताब्दी के रंगमंच की प्रतिकृतियां। एक दीवार पर उनके प्रसिद्ध सॉनेट्स के अंश अंकित हैं, और पास में लगे एक स्क्रीन पर ‘ञ्जहृ ड्ढद्ग शह्म् ठ्ठशह्ल द्यश ड्ढद्ग...’ जैसे संवादों की गूंजती आवाज़ वातावरण में गहराई घोल देती है। यह सब देख कर समझ आता है कि शेक्सपियर की रचनात्मकता मात्र लेखन नहीं, बल्कि आत्मा की भाषा थी, जो आज भी वहां जीवित है। इस घर का संरक्षण शेक्सपियर बर्थप्लेस ट्रस्ट द्वारा 1847 से किया जा रहा है।
आसपास की गलियों में घूमना किसी साहित्यिक तीर्थ में भ्रमण जैसा अनुभव था। नज़दीक ही स्थित ॥शद्य4 ञ्जह्म्द्बठ्ठद्बह्ल4 ष्टद्धह्वह्म्ष्द्ध में वह पवित्र पत्थर रखा है, जहां शेक्सपियर का अंतिम संस्कार हुआ था। सड़क किनारे बैठे पुस्तक विक्रेता, छोटे कैफे में बैठे रंगमंच-प्रेमी और पर्यटक जो शेक्सपियर के संवाद दिल से दोहराते हैं, इन सब में शेक्सपियर की छवि बसती है। यहां केवल इतिहास नहीं, एक जीवंत साहित्यिक चेतना बसती है, जो हर आगंतुक को भीतर तक छू जाती है। शेक्सपियर अपने जीवन के उत्तरार्ध में स्ट्रैटफोर्ड लौट आए और यहीं 23 अप्रैल 1616 को 52 वर्ष की आयु में उन्होंने देह त्याग किया। मो. 90412-95900