गाज़ा में हो रही जन-हानि को जल्द रोका जाना चाहिए
गाज़ा में चल रहा अभूतपूर्व मानवीय संकट बेहद परेशान करने वाला है। कोई भी समझदार और संवेदनशील व्यक्ति किसी भी बहाने से इसे बर्दाश्त नहीं कर सकता। केवल क्रूर प्रवृत्ति ही किसी को मासूम बच्चों को मारने के लिए मजबूर कर सकती है। आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार अब तक 55,000 से अधिक लोग मारे गये हैं, जिनमें से 70 प्रतिशत महिलाएं और बच्चे हैं। यह स्थिति निंदा से भी परे है।
थर्ड मिलेनियम इक्विपोइज के लेखक मेजर जनरल (सेवानिवृत्त) विनोद सहगल ने स्थिति पर टिप्पणी करते हुए कहा, ‘पूरी दुनिया में हर रोज भूख से तड़पती, दुबली-पतली महिलाओं और बच्चों की हवा में हत्या हो रही है और लदे-फटे, रेंगते हुए पुरुषों, महिलाओं और बच्चों को भोजन, पानी, दवा से वंचित किया जा रहा है जबकि उनसे लदे हुए काफिले कुछ ही दूरी पर खड़े हैं। दुनिया में किसी ने भी हस्तक्षेप नहीं किया है। ऐसा लगता है कि हिटलर ने नेतन्याहू के रूप में पुनर्जन्म लिया है। इज़रायली सेना को कभी दुनिया की सबसे पेशेवर लड़ाकू सेना माना जाता था। अब वह निहत्थे, दुबले-पतले, असहाय पुरुषों, महिलाओं और बच्चों की हत्या कर रही है। बहादुरी के नाम पर यह दुष्टता की पराकाष्ठा है।’
एक सदी, जो एआई जैसी अत्यधिक उन्नत तकनीकी क्रांति का दावा करती है, यह सुनिश्चित करने में असमर्थ है कि नये विकास का उपयोग मानव जाति के कल्याण के लिए किया जायेगा। आज सब कुछ इतना पारदर्शी हो गया है कि पृथ्वी पर कहीं भी होने वाली छोटी से छोटी हरकत भी पूरी दुनिया देख सकती है। हालांकि यह गंभीरता से सोचने का विषय है कि क्या ऐसी प्रगति ने हमारी संवेदनशीलता को अवरुद्ध कर दिया है? क्या यह कि घटनाओं को स्पष्ट रूप से देखने के बावजूद लोग झूठ और मनगढ़ंत विचारों पर विश्वास करने लगे हैं? वे धर्म, जातीयता या अन्य कारकों के आधार पर अति-राष्ट्रवाद और दूसरों के प्रति घृणा से बहक रहे हैं, इस प्रकार वे मूल मानवीय सार और सहानुभूति की प्रवृत्ति को खो रहे हैं। इसलिए समय आ गया है कि हम पूर्व-निर्धारित विचारों से छुटकारा पायें, संकीर्ण दृष्टि को त्यागें और चारों ओर की हर चीज़ को खुली आंखों और व्यापक सोच के साथ देखें।
एक भी अप्राकृतिक मौत को उचित ठहराने के बजाय, पूरी घटना को उचित परिप्रेक्ष्य में देखा जाना चाहिए। यदि हमास द्वारा 1200 से अधिक लोगों की हत्या और 250 निर्दोष लोगों को बंधक बनाना आतंकवादी कृत्य है, तो उस कृत्य को क्या कहा जाए जिसमें 17000 से अधिक बच्चों की हत्या हुई है। यरुशलम में कई सौ साल पहले विवाद हो सकते थे, लेकिन अगर हम आज उन घटनाओं को ध्यान में रखते हुए जीते हैं और एक-दूसरे से बदला लेने के बारे में सोचते हैं तो हम कभी भी शांति और सद्भाव प्राप्त नहीं कर पायेंगे। 26 मई, 2025 को यरुशलम में अल्ट्रा नेशनलिस्ट यहूदियों द्वारा किया गया मार्च एक अत्यधिक भड़काऊ कृत्य है। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि दुनिया भर की सरकारें इस स्थिति पर शायद ही कोई प्रतिक्रिया दे रही हैं। रूस और चीन केवल दिखावटी बातें कर रहे हैं। यूरोपीय देश जो पूरी दुनिया को नैतिकता का उपदेश दे रहे हैं, उन्होंने इज़रायल के रवैये का विरोध नहीं किया है। फ्रांस और ब्रिटेन की हालिया घोषणाएं स्वागत योग्य हैं। अमरीका तो अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय (आईसीजे) और अंतर्राष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय (आईसीसी) के फैसले का समर्थन करने के बजाय दोनों संस्थाओं का उपहास कर रहा है। वह इज़रायल को भारी मात्रा में हथियार मुहैया करा रहा है। इज़रायल सरकार पहले ही आईसीसी और आईसीजेके फैसलों को खारिज कर चुकी है।
कई अरब देश अमरीका के साथ हैं, जैसा कि डोनाल्ड ट्रम्प की मध्य पूर्व यात्रा के दौरान देखा गया, जो एक चिंताजनक बात है। उन्होंने फिलिस्तीनियों को पूरी तरह से नज़रअंदाज़ कर दिया है। विकासशील देश जो एक समय में गुटनिरपेक्ष आंदोलन (नैम) के तहत एकजुट थे, अब सक्त्रिय नहीं हैं। भारत सरकार जो फिलिस्तीनी मुद्दों की कट्टर समर्थक हुआ करती थी, उसके वर्तमान राजनीतिक नेतृत्व में अब उनके लिए कोई प्यार नहीं बचा है। इसके बजाय वह इज़रायल का पक्ष ले रही है। केंद्र में सत्तारूढ़ भाजपा द्वारा शासित राज्यों में फिलिस्तीन के पक्ष में सार्वजनिक विरोध प्रदर्शन, यहां तक कि इनडोर मीटिंग की भी अनुमति नहीं दी जा रही है। अब यह पूरी तरह से स्पष्ट हो चुका है कि नेतन्याहू सरकार को बंधकों में कोई दिलचस्पी नहीं है। गाज़ा का लगभग 80 प्रतिशत हिस्सा इज़रायली रक्षा बलों के नियंत्रण में है, फिर हमास कहां छिपा हुआ है? उन्होंने इतनी बड़ी संख्या में बंधकों को इतने लंबे समय तक सुरक्षित स्थानों पर कहां रखा था? सरकारें अपने कर्त्तव्य को समझने में विफल रही हैं। नागरिक समाज के सामने कार्य बहुत कठिन और जटिल है। अगर हम अभी नहीं बोलते हैं, तो जल्द ही बोलने के लिए कोई समय नहीं बचेगा। यह स्थिति अगर नियंत्रण से बाहर हो जाती है तो परमाणु हथियारों के इस्तेमाल का भी खतरा हो सकता है, जो विनाशकारी सिद्ध होगा। नागरिक समाज को सरकारों पर इज़रायल का विरोध करने के लिए दबाव डालना चाहिए। सभी अपने-अपने देशों में स्थित इज़रायली दूतावास को पत्र लिखना चाहिए।
अतीत में ऐसे उदाहरण रहे हैं जब अंतर्राष्ट्रीय शांति सेनाएं संघर्ष क्षेत्रों में गयीं और कई लोगों की जाने बचायीं। शांति समूहों और नागरिक समाज की मजबूत आवाज़ मायने रखेगी। (संवाद)