विश्व भर की संस्कृति को जानने का अवसर—कान्स फिल्म समारोह
मई के दूसरे-तीसरे सप्ताह में होने वाले विश्व प्रसिद्ध कान्स फिल्म समारोह जिसमें फिल्म निर्माता और निर्देशक शामिल होकर अपनी बेहतरीन फिल्मों से दर्शकों को अपनी संस्कृति और सामाजिक जीवन का अनुभव कराते हैं, इस बार इसमें भाग लेना एक अच्छा अनुभव रहा। फिल्म समारोह शुरू हुआ और जितना संभव हुआ, संबंधित कार्यक्रमों और अपनी समझ तथा अन्य लोगों से चर्चा कर फिल्मों का चुनाव किया और देखना शुरू किया। छोटे बड़े दर्जनों ऑडिटोरियम थे, जिनमें विभिन्न वर्गों की फिल्में प्रदर्शित की जा रही थीं। अगर एक में पसंद नहीं आई तो दूसरे में चले जाओ।
विदेशी भाषा में बनी फिल्मों की अंग्रेज़ी में सबटाईटल होने से इन फिल्मों की कथा समझ में आती थी। फिल्मों के कथानक उस देश के सामाजिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक परिदृश्य को समझने के लिए काफी थे। कहा जा सकता है कि सभी देशों की समस्याएं लगभग एक जैसी ही हैं, हालांकि कुछ अपवाद हैं, लेकिन अधिकतर फिल्मों में नस्लीय भेदभाव, आर्थिक शोषण, महिलाओं के सम्मान, अमीरी और ़गरीबी के कारण होने वाली समस्याओं का चित्रण दिखाई दिया। लगता है कि दुनिया के तमाम देशों में एक जैसी ही फिल्में बनती हैं, यदि कुछ अलग है तो वह है फिल्म निर्माण के लिए इस्तेमाल की गई तकनीक और उनकी कलात्मकता। यूरोप के देशों में बनी फिल्में एशियाई सिनेमा से अलग हैं, इसका कारण भिन्न जीवन शैली है, प्राकृतिक सौंदर्य के अद्भुत दृश्य हैं और कहानी कहने का तरीका है। भारतीय सिनेमा की अपनी अलग पहचान है और क्षेत्रीय भाषाओं की फिल्मों की भागीदारी, विशेषकर दक्षिण भारतीय फिल्मों और उनमें भी मलयालम भाषा में बनी फिल्मों की लोकप्रियता अधिक है।
जो फिल्में पुरस्कृत हुईं, उनके विषय अन्याय का बदला और न्याय, भावनाओं की अभिव्यक्ति, राजनीतिक मुद्दे, सीक्रेट एजेंट, प्रेम संबंध, नैतिक मूल्यों की गिरावट और अपने ही देश के गलत कानूनों का फिल्म के ज़रिए विरोध, पारिवारिक उलझनों को कला के माध्यम से सुलझाने के प्रयत्न, लड़कियों की सुरक्षा, आधुनिकता के मापदंड, व्यक्तिव का निखार, तानाशाही का अंत जैसे थे। संवाद और संगीत किसी भी फिल्म पृष्ठभूमि हैं, इसलिए इन फिल्मों में इनके विभिन्न प्रयोग देखने को मिले।
जहां तक फिल्म व्यापार का संबंध है तो प्रत्येक देश अपने यहां फिल्म निर्माण की सुविधाएं, विभिन्न मदों में छूट और सब्सिडी देने की पेशकश करता है। सभी देशों के अपने छोटे-बड़े स्टाल और उनमें बैठे अधिकारी अपने यहां फिल्म व्यापार करने की संभावनाओं का प्रचार प्रसार करते मिले। भारत सरकार का भी स्टाल था जिसमें विदेशी काफी दिलचस्पी ले रहे थे। एक बात तो है कि अंतर्राष्ट्रीय सिनेमा के बाज़ार में इस महोत्सव के ज़रिए कारोबार करने के बहुत अवसर मिलते हैं। विदेशी भाषाओं में भारतीय फिल्मों की डबिंग का अपना अलग व्यवसाय है। सभी देशों में भारतीय रहते हैं और अपने देश की फिल्में देखना चाहते हैं। उनके लिए यहां व्यापारिक सुविधाएं मिलने से काफी फायदा है। फिल्मों का प्रदर्शन आसान हो जाता है और लागत वसूली जल्दी होती है। अपने देश में चाहे फिल्म न चले या कम कमाई करे, लेकिन विदेशों में सभी फिल्में अच्छी आमदनी प्राप्त करती हैं। सरकार भी सुविधाएं देती है। बहुत-से देश अपने यहां उपलब्ध सुविधाओं के उपयोग और भारत के साथ कारोबार करने के लिए उत्सुक दिखाई दिए। अधिकतर मामलों में ओवरसीज की कमाई देश में हुई आय से अधिक होती है और इस तरह निर्माता को घाटा नहीं होता।
इस समारोह में भारत के फिल्म निर्माता और निर्देशक तथा कलाकारों का अलग अंदाज़ देखने को मिला। शेखर कपूर, अनुपम खेर, करण जौहर तथा अनेक अभिनेता एवं अभिनेत्रियां भारतीय स्टाल में प्रेस कॉन्फ्रैंस तथा अपनी फिल्मों की झलक दिखाने पहुंचते रहे। किसी भारतीय फिल्म को चाहे कोई विशिष्ट पुरस्कार नहीं मिला हो लेकिन एक भारतीय महिला पायल कपाड़िया का निर्णायक मंडल में होना हमारे लिए गर्व की बात है। वह अक्सर भारतीय पवेलियन में दिखाई दे जाती थीं, स्वदेशी परिधान में उनका अलग ही व्यक्तित्व था। वैसे भी एक बात तो स्पष्ट है कि फेस्टिवल फिल्मों का निर्माण एक अलग ही तरह का व्यापार है। यहां फीचर फिल्म हो या डाक्यूमेंट्री, सभी के लिये बाज़ार उपलब्ध है। इन फिल्मों के विषय और बनाने की तकनीक सामान्य फिल्मों से अलग होती है, लेकिन व्यापार की दृष्टि से वे लाभकारी हैं। अनेक निर्माता केवल फेस्टिवल फिल्में ही बनाते हैं और अच्छी कमाई करते हैं। जहां बड़े-बड़े सितारों की फिल्में देश में अपनी लागत नहीं वसूल कर पातीं, वहीं छोटे बजट में बनी फिल्में विदेशों में आसानी से बिक जाती हैं। अगर कोई फिल्म पुरस्कृत होती है तो उसका दाम बढ़ना स्वाभाविक है।
फिल्म समारोह जहां एक ओर विश्व भर की सांस्कृतिक और सामाजिक गतिविधियों को जानने-समझने का अवसर प्रदान करते हैं, वहीं दूसरी ओर इनमें भाग लेने वाले देशों के साथ भावनात्मक रूप से जुड़ने का भी अवसर मिलता है। सभी देशों से आये लोग अपने जैसे लगते हैं। भाषा की समस्या होने के बावजूद उनसे बातचीत करना अच्छा लगता है। इन देशों के बहुत से निर्माताओं तथा कलाकारों से बातचीत करने के बाद लगा कि फिल्म व्यवसाय की दुनिया सब जगह एक जैसी ही है। इस प्रकार के समारोहों में अक्सर इस तरह की फिल्में देखने को मिल जाती हैं जो सामान्य तौर पर देखने के लिए नहीं मिलती, इसलिए कहना होगा कि इनकी उपयोगिता है। दर्शकों का सैलाब और विश्व प्रसिद्ध व्यक्तियों को निकट से देखने और मिलने का मौका अपने-आप में एक रोमांचक अनुभव है।
दिन भर फिल्में देखिए, सम्मेलनों में भाग लेकर इस क्षेत्र में जो हो रहा है, उसे जानिये। नई संभावनाओं को तलाशिये और फिर अगर आपका कार्यक्षेत्र फिल्म निर्माण है तो उसे किस प्रकार अंतर्राष्ट्रीय स्वरूप दिया जा सकता है, इस दिशा में अपने कदम बढ़ा दीजिए। यह क्षेत्र ऐसा है जिसमें नुकसान होने का बहुत बड़ा जोखिम है, लेकिन अगर इस बात का भय नहीं है कि यदि कोई फिल्म नहीं चली तो कोई बात नहीं, अगली फिल्म बनाते हैं, तब यह क्षेत्र बहुत अच्छा है क्योंकि फिल्मों में घाटा हमेशा नहीं होता, कभी कभार होता है जिसे अगर नज़र-अंदाज़ कर फिल्म बनाने में लगे रहे तब एक दिन सफलता ज़रूर मिलती है।