भारत-बांग्लादेश के बीच व्यापार पर प्रतिकूल प्रभाव
भारत के खिलाफ व्यापार युद्ध को भड़काने के बजाय बांग्लादेश के व्यापारिक हलकों का मानना है कि हाल ही में उभरी कुछ छोटी-मोटी समस्याओं का समाधान निकालने के लिए द्विपक्षीय आधिकारिक स्तर की वार्ता तुरंत शुरू होनी चाहिए। वे जल्द ही ढाका स्थित अधिकारियों को अपनी चिंता से अवगत करायेंगे। ढाका को यह तर्क देते हुए कि इस तरह के किसी भी टकराव में बांग्लादेशियों को भारत की तुलना में कहीं अधिक नुकसान होगा। हाल के घटनाक्रमों को देखते हुए, दोनों देशों द्वारा दैनिक लेन-देन में प्रतिबंधात्मक कार्यात्मक उपायों के आदेश के साथ व्यापार के स्तर में पहले से ही भारी गिरावट आयी है। एकीकृत भूमि चौकियों के माध्यम से दोनों पक्षों से सामान की आवाजाही में कमी पहले से ही कम हो गयी है, जिससे सीमा के दोनों ओर स्थानीय आर्थिक गतिविधियां प्रभावित हुई हैं।
हाल के घटनाक्रमों पर चिंता और नकारात्मक प्रतिक्त्रियाएं ढाका में अधिक ध्यान देने योग्य हैं। असम स्थित मीडिया के कुछ हिस्सों ने बताया है कि सड़क मार्ग से आवाजाही/बिक्री में बड़ी कमी से परिवहन लागत में काफी वृद्धि हुई है और बांग्लादेश के परिधान निर्यात के प्रेषण में देरी के कारण भारत की तुलना में बांग्लादेश को कहीं अधिक नुकसान पहुंचा है। भारतीय व्यापारियों की प्रतिक्रिया स्पष्ट रूप से आक्रामक नहीं रही है, लेकिन सीमा व्यापार के साथ-साथ आयात और निर्यात के संबंध में ढाका द्वारा किये गये कुछ एकतरफा कदमों पर सामान्य रूप से सभी को आश्चर्य है, क्योंकि ऐसे कदम बिना किसी स्पष्टीकरण के उठाये गये हैं। उदाहरण के तौर पर वे बांग्लादेश द्वारा हाल ही में लिए गए निर्णय की ओर इशारा करते हैं कि वह विभिन्न प्रकार के परिधानों के उत्पादन के लिए आवश्यक यार्न (धागा) और अन्य संबंधित वस्तुओं का आयात नहीं करेगा, जो बांग्लादेश के कुल निर्यात का मुख्य आधार है।
बांग्लादेश सरकार के मुख्य सलाहकार एम. यूनुस के नेतृत्व वाली अंतरिम सरकार के सत्ता में आने से पहले बांग्लादेश इन आवश्यकताओं का कम से कम 25-30 प्रतिशत भारत से आयात करता था। अब यह बिना किसी स्पष्टीकरण के बंद हो गया है। तर्क के तौर पर यूनुस के नेतृत्व वाला प्रशासन इस बात पर ज़ोर देता है कि वह पाकिस्तान और तुर्की जैसे अन्य देशों के साथ अपने व्यापार और कारोबार का विस्तार और विविधता लाना चाहेगा ताकि विभिन्न वस्तुओं की आपूर्ति के लिए ढाका की किसी एक स्रोत पर निर्भरता कम हो सके। अधिकांश पर्यवेक्षकों ने समझाया है कि इस तरह के कदम, विशेष रूप से इस्लामी देशों के साथ अधिक व्यापार करने की टीम यूनुस की समग्र नीति के साथ बहुत अच्छी तरह से फिट बैठते हैं, लेकिन बांग्लादेश के लिए बहुत लाभप्रद नहीं हैं। इस तरह के कदम आम तौर पर भारत विरोधी आंदोलनों के साथ भी तालमेल बिठाते हैं, जो हाल ही में इस्लामी चरमपंथियों द्वारा भारत और उसके सामान के पूर्ण बहिष्कार का आह्वान करते हुए आयोजित किये गये थे।
अवामी लोग को भारत सरकार का समर्थन प्राप्त था और बदले में भारत को बांग्लादेश क्षेत्र के माध्यम से कुछ व्यापार पारगमन सुविधाओं और अन्य राहत की अनुमति दी गयी थी। यह कहने की ज़रूरत नहीं है कि चरमपंथी इस्लामी तत्वों ने कभी भी इस बात का उल्लेख नहीं किया कि बांग्लादेश ऐसी सुविधाओं का उपयोग करने के लिए भारत से कितना बड़ा पारगमन शुल्क कमा रहा था।
अपनी तरफ से बांग्लादेश ने भारत को पूर्व सूचना दिये बिना भारतीय वस्तुओं की आवाजाही को संभालने वाली कई छोटी चौकियों को फिर से बंद करने की घोषणा की। इस कदम ने भारत को बांग्लादेश में अपने सामान की आवाजाही के लिए या कोलकाता से त्रिपुरा और इसके विपरीत अपने सामान भेजने के लिए अपने पारगमन अधिकारों का उपयोग करने से रोक दिया है।
दूसरे शब्दों में ढाका ने यह सुनिश्चित किया है कि भारत को अपने सामान को अपने क्षेत्र के एक हिस्से से दूसरे हिस्से में ले जाने के लिए चिकन नेक का उपयोग करने की अपनी पिछली निर्भरता पर वापिस लौटना होगा! इन कदमों के बाद भारत सरकार ने घोषणा की कि अब से बांग्लादेश अपने परिधान निर्यात को केवल दो प्रमुख बंदरगाहों मुंबई और कोलकाता के माध्यम से भेज सकेगा। छोटे भारतीय चेकपोस्ट बांग्लादेशी निर्यात वस्तुओं को संभाल नहीं पायेंगे। इसका मतलब यह है कि बांग्लादेश को अपने परिधान निर्यात को अंजाम देना महंगा और समय लेने वाला लगेगा, क्योंकि वह दो प्रमुख भारतीय बंदरगाहों से आगे अन्य बन्दरगाहों तक नहीं पहुंच सकता।
इसके अलावा भारत द्वारा बांग्लादेश को अपने छोटे बंदरगाहों के चैनल का उपयोग करने की अनुमति न देने से बांग्लादेश को विशेष रूप से अनुकूल शर्तों पर भारतीय क्षेत्र का उपयोग करने के लिए अपने पारगमन अधिकार/रियायतें खोनी पड़ेंगी!
बांग्लादेशी व्यापारिक हलकों को ढाका जाने और भारत के साथ बातचीत शुरू करने का आग्रह करने के लिए मजबूर करने वाली बात यह है कि वस्त्रों से होने वाली आय उसकी कुल निर्यात आय का लगभग 80-85 प्रतिशत है। भारत की अर्थव्यवस्था बांग्लादेश की सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था की तुलना में अधिक मजबूत है और उसके निर्यात भी अधिक विविध और सुरक्षित हैं।
यह देखना अभी बाकी है कि बांग्लादेश इन मुद्दों और संबंधित मामलों पर भारत के साथ बातचीत फिर से शुरू करने में कितना समय लेता है। (संवाद)