मिनी स्विट्ज़रलैंड का एहसास दिलाता है कौसानी

उत्तराखंड और उसके सभी प्रमुख पर्यटक स्थलों पर तो मेरा जाना इतनी बार हुआ है कि मैं खुद गिनती भूल गया हूं। लेकिन मैं कौसानी कभी नहीं गया था। कौसानी के बारे में मैंने बहुत सुना था, विशेषकर इसकी सुंदरता व शानदार मौसम के बारे में, वहां अब तक न जाने का कोई विशेष कारण भी न था, बस यूं कहिये कि जाना हो ही न सका। बहरहाल, पिछले सप्ताह मैंने तय किया कि पांच दिन के लिए कौसानी जाया जाये। किसी भी हिल स्टेशन के लिए इतना समय पर्याप्त होता है। इसलिए मैंने दिल्ली से पंतनगर के लिए फ्लाइट पकड़ी और फिर कौसानी पहुंचने के लिए टैक्सी किराये पर ली। पंतनगर से कौसानी लगभग 178 किमी के फासले पर है। 
वैसे मैं बताता चलूं कि कौसानी रेल व सड़क मार्गों से भी पहुंचा जा सकता है। निकटतम रेलवे स्टेशन काठगोदाम है, जहां से अल्मोड़ा होते हुए कौसानी की चढ़ाई आरंभ हो जाती है। यहां से कौसानी की दूरी लगभग 141 किमी है और टैक्सी के ज़रिए आसानी से पहुंचा जा सकता है। अगर सड़क मार्ग की बात करूं तो कौसानी अन्य अनेक हिल स्टेशनों से सड़क के ज़रिये जुड़ा हुआ है। मसलन, कौसानी अल्मोड़ा से 51 किमी, रानीखेत से 60 किमी, पिथौरागढ़ से 107 किमी, ग्वालदम से 39 किमी और नैनीताल से 117 किमी की दूरी पर है। दिल्ली से कौसानी पहुंचने के लिए सड़क पर 431 किमी चलना पड़ता है। 
बहरहाल, मेरी टैक्सी ने जैसे ही कौसानी में प्रवेश किया तो मुझे एकदम से अपनी स्विट्ज़रलैंड यात्रा याद आ गई। ज़िला बागेश्वर की गोद में बसे इस सुंदर हिल स्टेशन में स्विट्ज़रलैंड में होने का एहसास होता है और इससे भी बढ़कर बात यह है कि लाखों रूपये खर्च करने की ज़रूरत नहीं, चंद हज़ार रुपयों में ही स्विट्ज़रलैंड का आनंद कौसानी में आ जाता है। मैंने अपने जीवन में कौसानी से सस्ता हिल स्टेशन नहीं देखा।
आपको सुनकर हैरत होगी कि मेरी पांच दिन की कौसानी यात्रा में सिर्फ 20,000 रुपये का ही खर्च आया। हालांकि कहीं भी घूमने का खर्च इस बात पर निर्भर करता है कि आप कितने समय वहां ठहरे, आपकी यात्रा शैली क्या है और आपने ठहरने के लिए किस स्तर की जगह का चयन किया है, लेकिन अगर आप कौसानी की बजट फ्रेंडली यात्रा करना चाहते हैं तो आप यहां 2 से 3 दिन तक मात्र 5,000 रूपये में भी घूम सकते हैं। 
बहरहाल, कौसानी में मुझे स्विट्ज़रलैंड में होने का एहसास अकारण नहीं हुआ। बाद में मुझे मालूम हुआ कि मन को लुभाने वाली ख़ूबसूरती के कारण लोग कौसानी को ‘मिनी स्विट्ज़रलैंड’ भी कहते हैं। मैंने होटल में अपने कमरे में अपना सामान रखा, स्नान करके फ्रेश हुआ और हल्का सा नाश्ता करने के बाद कौसानी के आसपास की पहाड़ी चोटियों की ओर टहलता हुआ निकल गया। चोटियों पर बादलों के रंगों के जादुई खेल को देखते हुए कब सुबह से शाम हो गई मुझे पता ही न चला। चीड़ और नीले देवदार के जंगलों से ढकी पहाड़ियों पर बसा यह गांव खासतौर से त्रिशूल, नंदा देवी और शक्तिशाली पंचाचूली जैसे हिमालय की चोटियों के मनमोहक नज़ारों के लिए भी विख्यात है। इसकी सुंदरता ने तो मेरा दिल ही जीत लिया। मुझे रोमांटिक कवि जॉन कीट्स की वह पंक्ति याद आ गई कि सुंदर चीज़ हमेशा के लिए आनंद का स्रोत होती है। कौसानी की यात्रा केवल उसकी ख़ूबसूरती के लिए भी की जा सकती है और मेरा तो मानना है कि कौसानी की यात्रा दिल के सुकून व रूह के आराम के लिए बार-बार की जा सकती है। 
अगर आप मेरी तरह प्रकृति प्रेमी हैं तो कौसानी का दौरा अवश्य करें। मुझे तो अफसोस हो रहा था कि मैं अपने परिवार के साथ क्यों नहीं आया। महानगर के कंक्रीट जंगल में रहते हुए मेरे बच्चे प्रकृति का अनुभव ही नहीं कर पाते हैं। अगली बार मैं उन्हें साथ लेकर कौसानी आऊंगा ताकि वो आसपास के जंगलों में घूमते हुए प्रकृति से जुड़ सकें, कल कल करती नदियों के किनारे बैठकर पक्षियों के गीत सुन सकें और जागती आंखों से सपने देख सकें। कौसानी में 50 से अधिक विभिन्न प्रजातियों के पक्षियों को तो मैंने देखा, जिनमें मैं कुछ की ही पहचान कर सका जैसे कठफोड़वा, बारबेट, तोता, रोबिन, फोर्क टेल आदि, लेकिन जिन परिंदों को मैं पहचान न सका उनकी सुंदरता ने भी मुझे मंत्रमुग्ध कर दिया। कौसानी के चाय के बागान भी देखने लायक हैं। ऋतिक रोशन की फिल्म ‘कोई मिल गया’ (2003) की शूटिंग नैनीताल व भीमताल के अतिरिक्त कौसानी में भी हुई थी। 
कौसानी से ट्रैकिंग करते हुए मैं पास के ही पिन्नाथ गांव पहुंचा जो गोपालकोट चोटी की तलहटी में बसा हुआ है। इस गांव में भगवान भैरों को समर्पित छोटा सा मंदिर भी है जिसके दर्शन करके मैंने धार्मिक लाभ अर्जित किया। ध्यान रहे कि कौसानी आदि कैलाश ट्रेक, बेस कौसानी ट्रेक और कफनी ग्लेशियर के ट्रेक के लिए शुरुआती बिंदु भी है, जो 3,853 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है।
-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर 

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